राहत की बात

राहत की बात

मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा का वादा संविधान में किया गया है। राहत की बात है कि कोरोना महामारी के बाद देश में शिक्षा का विकास फिर से शुरु हो गया है। शिक्षा की वार्षिक स्थिति पर एएसईआर की रिपोर्ट के अनुसार देश भर में स्कूलों में सुविधाएं बेहतर हुई हैं मगर कुछ राज्य अब भी पीछे हैं।

रिपोर्ट के अनुसार कक्षाओं में उपस्थिति के मामले में मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और बिहार सबसे पीछे है। भारत में स्कूल न जाने वाली लड़कियों का अनुपात चार प्रतिशत से घटकर 2022 में अब तक के सबसे निचले स्तर दो प्रतिशत पर आ गया है। 2006 में 11-14 आयु वर्ग की स्कूल से बाहर लड़कियों के प्रतिशत के लिए राष्ट्रीय आंकड़ा 10.3 फीसदी था, जो अगले दशक 2018 में गिरकर 4.1 फीसदी हो गया और यह अनुपात लगातार गिरता जा रहा है।

यह रिपोर्ट पिछले वर्ष 616 जिलों के लगभग सात लाख बच्चों का सर्वेक्षण कर तैयार की गई थी। रिपोर्ट के जरिये हमें देश में मूलभूत साक्षरता और संख्यात्मकता की स्थिति और स्कूलों में सीखने के परिणामों के बारे में पता चलता है। भारत में सरकारी स्कूल शिक्षा के सबसे बड़े प्रदाता हैं।

हालांकि आंकड़े इंगित करते हैं कि अभिभावक तेजी से अपने बच्चों को निजी स्कूलों में दाखिला दिला रहे हैं। सरकार ने सरकारी तंत्र के भीतर नवीनता लाने और गुणवत्ता के मॉडल बनाने के लिए सार्वजनिक-निजी भागीदारी के लिए अपने दरवाजे खोल दिए हैं। उधर यूनीसेफ की एक नई रिपोर्ट के अनुसार कई देशों की सरकारें, उन बच्चों में पर्याप्त संसाधन निवेश नहीं कर रही हैं जिन्हें शिक्षा की सबसे ज्यादा जरूरत है।

आंकड़ों से पता चला है कि ग़रीब शिक्षार्थियों की तुलना में, धनी परिवारों के बच्चों को सार्वजनिक शिक्षा निधि की राशि का छह गुना अधिक लाभ मिलता है। इस रिपोर्ट में प्रत्येक शिक्षार्थी तक शिक्षा संसाधनों की पहुंच सुनिश्चित करने के लिए तत्काल कार्रवाई का आह्वान किया गया है।

ध्यान रहे यूनिसेफ भारत सरकार, नागरिक समूहों और निजी क्षेत्र के साथ मिलकर 17 राज्यों में काम कर रहा है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि सभी बच्चे, विशेषकर वंचित समुदाय के बच्चों को गुणवत्तापूर्ण प्रारंभिक व माध्यमिक शिक्षा का लाभ मिल सके।

चिंता की बात है कि सरकार की ओर से कई तरह की सुविधाएं देने के बावजूद धरातल पर स्थिति में बहुत बदलाव नजर नहीं आता। ग्रामीण क्षेत्रों में शैक्षणिक स्तर ऊंचा उठाने के लिए हर हाल में प्राथमिक शिक्षा का स्तर बढ़ाना होगा। लेकिन इस दिशा में न तो जनप्रतिनिधि पर्याप्त रुचि दिखाते हैं और न ही शिक्षा विभाग के अधिकारी। जरूरत है कि सभी राज्य अपनी परिस्थितियों के अनुसार शिक्षा की चुनौतियों को अपने ढंग से हल करें।

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