मंथन की जरुरत

मंथन की जरुरत

भारत 74 वां गणतंत्र दिवस मना रहा है। भारत एक देश नहीं कई धर्मों व जातियों का संगम है। समानता के अधिकार से लेकर धर्म की स्वतंत्रता, विचारों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और अपने अधिकारों के लिए आवाज उठाने की स्वतंत्रता से हमने संविधान की मर्यादा को बरकरार रखा है।

दुनिया में सबसे बड़ी लोकतांत्रिक प्रणाली के अंतर्गत देश के प्रत्येक नागरिक को असीम शक्ति प्रदान करने वाले हमारे संविधान ने रंग, जाति और ऊंच-नीच के भेद को मिटाते हुए सभी को समान अधिकार प्रदान किए। यानि दैदीप्यमान विविधता हमारी विरासत का प्रतीक है। हमारे गणतंत्र की आधार शिला हमारा संविधान ही है।

जब संविधान बना तब इसमें सामाजिक-आर्थिक-राजनीतिक समानता की अवधारणा केंद्र में थी और उदार प्रजातांत्रिक मूल्यों की स्थापना इसका लक्ष्य था। यह हमारे संविधान की शक्ति ही थी कि दूसरे विश्व युद्ध के बाद अस्तित्व में आने वाली 35 संवैधानिक शासन व्यवस्थाओं में से केवल भारत ही अपने संविधान और लोकतांत्रिक स्वरूप को अक्षुण्ण रख सका, शेष सभी देश तानाशाही, सैन्य शासन और गृह युद्ध की मार से जूझते रहे।

हमारे संविधान की प्रस्तावना यह घोषित करती है कि भारत लोकतांत्रिक गणराज्य होगा। पिछले कुछ समय में भारतीय गणतंत्र की चमक दुनिया में और मजबूती से फैली है। वैश्विक मंचों पर आज भारत को विशेष प्रतिष्ठा मिलती है, उसकी बातों को  गंभीरता से लिया जाता है।

देश की पहचान एक उभरती हुई अर्थव्यवस्था और ताकतवर देश की बनी है। भूख और रोग पर विजय यकीनन गणतंत्र की सबसे बड़ी उपलब्धि है। भूमंडलीकरण ने राष्ट्र के समुदाय में अपना ठीक स्थान लेने के लिए भारत के लिए अप्रत्याशित अवसर खोल दिए हैं और भूमंडलीय क्षेत्र में उभरती शक्ति के रूप में इसकी क्षमता को व्यापक रूप से मान्यता दी जाती है। यह सत्य है कि आबादी का एक बड़ा हिस्सा अब भी गरीबी रेखा से नीचे रहता है, लेकिन जीवन की गुणवत्ता में समग्र सुधार देखा गया है।

हमने पिछले 75 वर्षों में पर्याप्त दूरी तय कर ली है, लेकिन संघर्ष के दिन समाप्त नहीं हुए हैं। आज पर्यावरणीय क्षरण और जलवायु परिवर्तन वैश्विक चिंताएं हैं। आतंकवाद मानवता के लिए सबसे गंभीर सुरक्षा खतरा है। इसे समाप्त करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के प्रयासों से ठोस कार्रवाई आवश्यक है। गणतंत्र दिवस के दिन हमें संविधान पर सार्थक चर्चा और मंथन करने की महती जरुरत है। आज दलगत-भावना से ऊपर उठ कर राष्ट्र के संबंध में ईमानदारी से सोचने का दिवस है।