‘भारत जोड़ो यात्रा’: 2024 के लिए अब भी कठिन है कांग्रेस की डगर

‘भारत जोड़ो यात्रा’: 2024 के लिए अब भी कठिन है कांग्रेस की डगर

नई दिल्ली। ‘कांग्रेस की ‘भारत जोड़ो यात्रा’ से भले ही पार्टी की उम्मीदों को पंख लगा हो और राहुल गांधी की छवि से जुड़ी धारणा में बदलाव आया हो, लेकिन अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव के मद्देनजर अब भी देश के सबसे पुराने दल की राह मुश्किल भरी नजर आती है।’ विश्लेषकों और विशेषज्ञों का ऐसा कहना है।

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उनका कहना है कि उसके सामने एक बड़ी चुनौती यह है कि वह उत्तर प्रदेश, बिहार और कई अन्य प्रमुख राज्यों में संगठन को मजबूत करे और साथ ही भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) विरोधी किसी भी विपक्षी गठबंधन की अगुवाई करने की अपनी वाजिब दावेदारी पेश करे।

कांग्रेस ने ‘भारत जोड़ो यात्रा’ के समापन समारोह के लिए लगभग सभी प्रमुख विपक्षी दलों को न्यौता दिया और इससे कहीं न कहीं विपक्षी खेमे में उसकी स्थिति मजबूत हुई है, लेकिन वह अब भी उस टीम का ‘कप्तान’ बनने से दूर नजर आती है जो 2024 में भाजपा का मुकाबला कर सकती है। विपक्ष के नेतृत्व करने की कांग्रेस की मंशा को तृणमूल कांग्रेस और आम आदमी पार्टी जैसे कुछ राजनीतिक दलों से कड़ी चुनौती मिल सकती है।

विशेषज्ञों का कहना है कि ‘भारत जोड़ो यात्रा’ से राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस की स्थिति को मजबूत बनाने में मदद मिली है, लेकिन इसका सही अंदाजा इस साल होने वाले कई राज्यों के विधानसभा चुनावों में पार्टी के प्रदर्शन के आधार पर होगा। कांग्रेस के पूर्व प्रवक्ता संजय झा के अनुसार, भाजपा का मुकाबला करने के लिए खुद को तैयार करने का असली काम कांग्रेस के लिए अब शुरू हुआ है तथा अब कांग्रेस के पक्ष में हवा बन रही है।

उन्होंने कहा, ‘‘कार्यकर्ताओं में उत्साह आ गया है। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे आक्रामक भाषण दे रहे हैं जो भाजपा पर चोट करते नजर आ रहे हैं।’’ उन्होंने यह भी कहा कि कांग्रेस के लिए 2023 सेमीफाइनल है और ‘करो या मरो’ की स्थिति वाला है। इस साल कर्नाटक, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, तेलंगाना और कुछ अन्य राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं।

‘सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसायटीज’ (सीएसडीएस) में सह-निदेशक (लोकनीति) संजय कुमार का कहना है कि कांग्रेस अगर 2024 में गंभीर चुनौती पेश करना चाहती है तो उसे इस सवाल का जवाब ढूंढते रहना होगा कि ‘अब आगे क्या?’’ उन्होंने कहा, ‘‘कांग्रेस के लिए बड़ी चुनौती उन राज्यों में संगठन को मजबूत करने की है जहां वह पिछले कई वर्षों में कोई खास ताकत नहीं रह गई है।

इनमें उत्तर प्रदेश, बिहार और पश्चिम बंगाल जैसे राज्य शामिल हैं। हिंदीभाषी राज्यों और गुजरात में भी पार्टी के संगठन को मजबूत करने की जरूरत है।’’ कांग्रेस के लिए दूसरी बड़ी चुनौती विपक्षी एकता है और विपक्षी दलों के एकसाथ आने पर गठबंधन के नेतृत्व की दावेदारी की है।

जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के ‘सेंटर फॉर पोलिटकल स्टडीज’ के एसोसिएट प्रोफेसर मणींद्र नाथ ठाकुर ने से कहा, ‘‘यह कांग्रेस के लिए बड़ी चुनौती होगी क्योंकि उसे अब भी 2024 के लिए विपक्षी खेमे के अगुवा के तौर पर नहीं देखा जा रहा है। उसे जमीनी स्तर पर संगठन को मजबूत करना होगा क्योंकि इससे ही चुनावी रूप से मदद मिलेगी।’’

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