बरेली: लाखों जिंदगी पर भारी है कुत्ते-बंदरों का खौफ... हल्के में मत लीजिए
स्मार्ट सिटी बन रहे जिला मुख्यालय से लेकर ग्रामीण इलाकों तक में हर रोज तमाम लोग होते हैं हमलों का शिकार, तमाम जानें जा चुकी हैं अब तक
बरेली, अमृत विचार। कुत्तों और बंदरों का खौफ बढ़ते-बढ़ते किस हद तक पहुंच गया है, इसका अंदाजा शायद न अफसरों को है न जनप्रतिनिधियों को। स्मार्ट सिटी बन चुके जिला मुख्यालय से लेकर ग्रामीण इलाकों तक लाखों जिंदगियों पर यह खौफ भारी है। सड़कों पर कुत्तों और छतों पर बंदरों के झुंड कब किसे हमेशा के लिए अपंग बना दें या जान ही ले लें, कुछ अंदाजा नहीं है। एक-एक दिन में पचासों लग बंदरों और कुत्तों के हमलों के शिकार हो रहे हैं। तमाम जानें भी जा चुकी हैं। इसके बावजूद सियासी और प्रशासनिक सिस्टम की चुप्पी जता रही है कि उनकी नजर में यह कोई खास समस्या ही नहीं है।
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आवारा कुत्तों और बंदरों की बेतहाशा आबादी हर रिहायश में है। कई सालों से इस पर नियंत्रण के लिए कोई उपाय न किए जाने की वजह से यह तादाद और बढ़ती जा रही है। शहर के तमाम इलाकों में बंदरों की फौज लोगों के लिए बेहद दुखदायी साबित हो रही है। पुराने मोहल्लों के साथ पॉश इलाकों में भी बंदरों की भरमार है।
कई इलाकों में इतने ज्यादा बुरे हालात हैं कि लोगों ने छतों पर जाना छोड़ दिया है। खुली खिड़कियों पर लोहे का जाल लगवा दिया है और कपड़े तक खुले में डालने बंद कर दिए हैं। इसके बावजूद बंदरों के हमलों से बच नहीं पा रहे हैं। हर रोज अच्छी-खासी गिनती में लोग बंदरों के हमलों में घायल होते हैं, गाहे-बगाहे मौत तक की खबर आ जाती है।
नगर निगम में आवारा कुत्तों और बंदरों की समस्या पर की गई शिकायतों की भरमार है। यह अलग बात है कि इसके बावजूद काफी लंबे समय से कोई बड़ा अभियान नहीं चलाया गया है। कुछ समय पहले नगर निगम की ओर से कुछ सौ बंदरों को पकड़ने का ठेका मथुरा की एक फर्म को दिया गया था, लेकिन सिर्फ वीआईपी इलाकों में ही बंदर पकड़वाए गए।
रामपुर बाग और सिविल लाइंस में अफसरों के बंगलों के आसपास बंदर पकड़ने के बाद यह अभियान खत्म हो गया। आम जनता को कुछ समय बाद दोबारा अभियान चलाने का लॉलीपॉप देकर बहला दिया गया लेकिन अब तक अभियान चला ही नहीं।
हिंसक नस्ल के पालतू कुत्ते भी मुसीबत, नगर निगम इन पर भी बेपरवाह
आवारा ही नहीं, शहर में पालतू कुत्ते भी मुसीबत बने हुए हैं। तमाम लोगों ने पिटबुल डॉग समेत कई हिंसक नस्लों के कुत्ते पाल रखे हैं। इन कुत्तों के रहन-सहन पर हजारों रुपये खर्च करने वाले लोगों ने नगर निगम में उनका रजिस्ट्रेशन तक नहीं कराया है जबकि नगर निगम में कुत्तों के रजिस्ट्रेशन की फीस मात्र 10 रुपये है।
नगर निगम भी इस मामले में पूरी तरह बेपरवाह बना हुआ है। उसके पास यह तक रिकॉर्ड नहीं है कि शहर में कितने पालतू कुत्ते हैं। नगर निगम के अफसरों की सफाई है कि कुत्तों का रजिस्ट्रेशन न कराने वालों परजुर्माना डालने का अधिकार न होने की वजह से उनके लिए कोई कार्रवाई करना मुमकिन ही नहीं है।
दावा : आवारा कुत्तों को बधिया कर रहे हैं, बंदरों को भी पकड़वाएंगे
नगर निगम के पशु कल्याण अधिकारी डॉ. आदित्य तिवारी के मुताबिक आवारा कुत्तों को बधिया करने का काम जारी है। नगर निगम की टीम जहां से कुत्तों को पकड़ती है, बधिया कर वहीं छोड़ देती है। उन्हें दूर छोड़ने का अधिकार उनके पास नहीं है। इस कारण आवारा कुत्तों को पकड़ने के बाद दिक्कत आती है। 250 बंदरों को पकड़ने की अनुमति भी वन विभाग से मिल गई है लेकिन यह काम मार्च में होगा। वन विभाग ने नगर निगम से पूछा था कि वह बंदरों को कब से पकड़ना शुरू करेगा। ठंड में बंदर कम दिखाई देने की वजह से मार्च से शुरुआत करने का फैसला लिया गया था।
शहर में ये इलाके सबसे ज्यादा प्रभावित
शहर में राजेंद्रनगर, आवास-विकास, इंदिरा नगर, जनकपुरी, एकतानगर, डीडीपुरम, प्रेमनगर, सुभाषनगर, बदायूं रोड, जंक्शन परिसर, रामपुर बाग, कैंट, बागबिग्रटान,मुंशीनगर, कटरा चांद खां, जोगीनवादा, जगतपुर, शाहदाना, ब्रह्मपुरा, आलमगीरीगंज, करगैना, तिलक कॉलोनी, पटेल विहार, विश्वनाथपुरम, गंगानगर,वीरभट्टी आदि इलाकों में बंदरों का सबसे ज्यादा आतंक है। इसके अलावा जंक्शन और रोडवेज जैसे सार्वजनिक स्थानों पर भी बंदरों का भारी आतंक हैं। नगर निगम में बोर्ड की बैठक के दौरान कई बार यह मुद्दा उठ चुका है लेकिन कभी कोई प्रभावी कार्रवाई नहीं हुई।
इतनी विकराल है ये समस्या...
केस- 1
सीबीगंज के गांव बंडिया में रहने वाले कमलेश के तीन वर्षीय बेटे को आवारा कुत्तों का झुंड 30 जनवरी को घर के सामने से खींचकर 50 मीटर दूर खेतों में ले गया और उसे बुरी तरह नोच दिया। खेतों में काम कर रहे लोगों ने उसे बचाया। इसी गांव में पहले दो बच्चों की कुत्तों के हमलों में मौत हो चुकी है।
केस- 2
सीबीगंज के ही गांव चंद्रपुर काजियान में 10 फरवरी को पांच वर्षीय अमन को भी कुत्तों के झुंड ने घर के पास से खेतों में खींच लिया। लोगों के बचाने के लिए पहुंचने तक कुत्तों ने अमन के हाथ-पैर और चेहरे पर बुरी तरह नोच डाला। अमन को कई दिन से बुखार आ रहा था। उसकी मां ने उसे दवा पिलाने के बाद खेलने के लिए छोड़ दिया था।
मीरगंज के रइया नगला गांव में 27 फरवरी 2017 को 70 वर्षीय अहमद नूर को आदमखोर कुत्तों ने इतनी बुरी तरह नोचकर खा लिया कि उनकी मौत हो गई। अहमद नूर जानवरों को चारा डालने घर से निकले थे। इसी बीच कुत्तों के झुंड ने उन्हें घेर लिया और उनके गिरने के बाद गर्दन को जबड़े से दबा लिया।
केस- 3
शाही के दुनका कस्बे में 18 जुलाई 2022 को किसान निर्देश उपाध्याय गर्मी ज्यादा होने की वजह से चार महीने के बच्चे को लेकर रात में छत पर टहल रहे थे। इसी बीच बंदरों के झुंड ने उन पर हमला बोल दिया। बंदरों उनकी गोद से बच्चे को छीन लिया और भागने लगे। इसी दौरान बच्चे की छत से गिरकर मौत हो गई।
केस- 4
दुनका में ही 4 नवंबर 2022 की शाम 40 वर्षीय किसान मुकेश खेत से लौटे और खाना खाकर छत पर सोने चले गए। रात में उठे तो छत पर बैठे बंदरों ने उन पर हमला कर दिया। हमले से बचने के लिए वह भागे तो छत से नीचे जा गिरे। सिर में गंभीर चोट आने के साथ पैर भी फट गया। रात में ही उन्होंने अस्पताल में दम तोड़ दिया।
ये आंकड़े सरकारी हैं... 55 दिन में 2625 लोग बंदरों-कुत्तों के हमलों के शिकार
पिछले साल आठ लोगों की रैबीज से चली गई थी जान
शहर से लेकर देहात तक कुत्ते, बंदर और बिल्लियों के काटने के मामले बढ़ रहे हैं। तीन सौ बेड अस्पताल के एआरवी सेंटर में वैक्सीन लगवाने के लिए रोज मरीजों की भीड़ उमड़ रही है। सरकारी रिकॉर्ड के मुताबिक जनवरी से अब तक 2625 लोग इन हमलों के शिकार होने के बाद तीन सौ बेड अस्पताल में वैक्सीन लगवाने पहुंचे हैं।
पिछले साल रैबीज होने के बाद आठ लोगों की मौत भी सरकारी रिकॉर्ड में दर्ज है। वैक्सीन लगवाने वाले मरीजों में 152 बंदर, 2418 कुत्ता, 54 बिल्ली और एक मरीज सियार के काटने के बाद घायल हुआ था। दिसंबर में एआरवी लगवाने वालों की संख्या 3000 तक पहुंच गई थी। एआरवी केंद्र प्रभारी डा. वैभव शुक्ला के मुताबिक केंद्र पर रोज औसतन 150 मरीजों को टीका लगाया जा रहा है।
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