रामपुर : पुरातन चनदोआ साहिब को संरक्षित करने दिल्ली से पहुंची राष्ट्रीय संग्राहलय की टीम
महाराजा रणजीत सिंह काल के चंदोआ साहिब मोर के पंख से बनाये धागे से बना है, दो सौ साल पुरानी धरोहर को दिल्ली की टीम ने कैमिकल के स्प्रे से किया संरक्षित
चंदोआ साहिब के संरक्षण के लिए मरम्मत करते टीम के सदस्य।
बिलासपुर/रामपुर, अमृत विचार। नई दिल्ली स्थित राष्ट्रीय संग्रहालय के पूर्व निदेशक एसपी सिंह सोमवार को नगर के माठखेड़ा मार्ग स्थित भाई हरिंदर सिंह के आवास पर अपनी टीम के साथ पहुंचे। जहां उन्होंने महाराजा रणजीत सिंह जी के समय काल के बताये जा रहे चंदोआ साहिब के संरक्षण के लिए जरूरी कदम उठाये। जोकि देखरेख न हो पाने की वजह से काफी खराब हो गया था।
गुरु ग्रन्थ साहिब का प्रकाश करने से पूर्व चंदोआ साहिब को छत पर लगाया जाता है। भाई हरिंदर सिंह ने बताया जाता है कि ये चंदोआ साहिब काफी पुरातन है और इसे करीब 200 वर्ष पुराना बताया जा रहा है। यह भी बताया कि ये चंदोआ साहिब मोर के पंख से बनाये गये धागे से बना है। सजावट के लिए इसके चारों और शुद्ध तिल्ले की कड़ाई की गई है। नगर के माठखेड़ा मार्ग निवासी भाई हरिंदर सिंह और उनका परिवार खुद को भाई मतिदास जी का वंशज बताता है। बता दें कि भाई मतिदास जी इतिहास के सर्वश्रेष्ठ शहीदों में गिने जाते हैं।
भाई मतिदास जी तथा उनके छोटे भाई सती दास और भाई दयालदास नवें गुरु तेगबहादुर साहिब जी के साथ शहीद हुए थे। भाई मतिदास जी को औरंगजेब के आदेश से दिल्ली के चांदनी चौक में 09 अगस्त 1675 को आरे से चीर दिया गया था। वह गुरु तेग बहादुर साहिब जी के प्रिय शिष्य थे। भाई हरिंदर सिंह के अनुसार उनके पास श्री गुरु गोविन्द सिंह जी द्वारा उनके परिवार को पांच हुक्मनामा लिखे थे। जो आज भी उनके परिवार के पास मौजूद हैं।
एसपी सिंह ने बताया कि ये चंदोआ साहिब काफी पुरातन है। देखभाल न होने की वजह से काफी खराब हो चुका था। टीम द्वारा चंदोआ साहिब के संरक्षण के लिए उसकी मरम्मत कर कैमिकल का स्प्रे किया गया है। ताकि आने वाली पीढ़ी को इतिहास से जोड़े रखने के लिए इसका संरक्षण किया जा सके। उन्होंने कहा कि तराई क्षेत्र में ये पहली बार किया गया है।
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