तमिलनाडु: दलित ईसाइयों को मिलेगा अनुसूचित जाति का लाभ, विधानसभा में प्रस्ताव पारित

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Published By Om Parkash chaubey
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चेन्नई। तमिलनाडु विधानसभा ने बुधवार को एक प्रस्ताव पारित कर केंद्र से अनुरोध किया कि ईसाई धर्म अपनाने वाले अनुसूचित जाति (एससी) के लोगों को भी एससी को मिलने वाले लाभ दिये जाएं। मुख्यमंत्री एम. के. स्टालिन द्वारा सदन में रखे गये प्रस्ताव को काफी विरोध के बीच पारित कर दिया गया, लेकिन इससे पहले भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के सदस्यों ने बर्हिगमन किया।

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प्रस्ताव में केंद्र सरकार से यह मांग की गयी है कि वह दलित ईसाइयों को शिक्षा और नौकरियों में आरक्षण का लाभ प्रदान करने के लिए संविधान में संशोधन करे। स्टालिन ने दलित ईसाइयों को एससी को मिलने वाले आरक्षण का लाभ प्रदान करने का प्रस्ताव रखते हुए कहा कि आदि द्रविड़ों के ईसाई धर्म अपना लेने मात्र से उन्हें विशेषाधिकारों से वंचित नहीं किया जाना चाहिए।

मुख्यमंत्री ने कहा, ‘‘अगर उन्हें शिक्षा और रोजगार में आरक्षण का लाभ दिया जाता है तो उनका सामाजिक उत्थान होगा। महज, इसलिए कि उन्होंने दूसरा धर्म अपना लिया है, उन्हें सभी लाभों से वंचित करना उचित नहीं है। यह हमारा रुख है।’’ उन्होंने तर्क दिया कि लोगों को अपनी पसंद के धर्म के पालन का अधिकार है, लेकिन उन्हें जाति के आधार पर अलग करना सामाजिक बुराई है।

प्रस्ताव का विरोध करते हुए भाजपा की सदस्य वनथी श्रीनिवासन ने इस तरह का प्रस्ताव लाने के आधार पर सवाल उठाया, खासकर जब केंद्र ने इस मुद्दे पर एक आयोग का गठन किया हुआ है। विधानसभा अध्यक्ष एम अप्पावु ने उनकी टिप्पणियों को कार्यवाही से हटा दिया और आगाह किया कि उन्हें किसी गुप्त मंशा के साथ विरोध करने की आवश्यकता नहीं है।

अध्यक्ष ने कहा, ‘‘मुख्यमंत्री को प्रस्ताव पेश करने का पूरा अधिकार है। आप केवल अपना यह विचार व्यक्त कर सकते हैं कि आप इसे स्वीकार करते हैं या नहीं।’’ विपक्षी ऑल इंडिया अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कषगम (अन्नाद्रमुक) के के. पलानीस्वामी और ओ. पन्नीरसेल्वम दोनों ही गुटों ने प्रस्ताव का समर्थन किया, जबकि भाजपा ने बहिर्गमन किया।

बाद में, विधानसभा के बाहर पत्रकारों से बात करते हुए श्रीनिवासन ने कहा कि विधानसभा का प्रस्ताव ‘संविधान के खिलाफ’ है, क्योंकि पहले ही उच्चतम न्यायालय में एक रिट दायर की जा चुकी है। उन्होंने दावा किया कि मामले की सुनवाई जुलाई में होनी है। उन्होंने पूछा, ‘‘भाजपा जानना चाहती है कि यह प्रस्ताव क्यों लाया गया, जब केंद्र ने पहले ही एक आयोग का गठन कर दिया है और मामला अदालत में लंबित है।

क्या यह प्रस्ताव परोक्ष रूप से स्वीकार करता है कि धर्मांतरण के बावजूद ईसाई और मुस्लिम धर्मों में अस्पृश्यता मौजूद है?’’ भाजपा महिला मोर्चा की राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं कोयम्बटूर (दक्षिण) की विधायक श्रीनिवासन ने दावा किया कि द्रमुक सरकार राजनीतिक कारणों से यह प्रस्ताव लेकर आई है।

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