मुरादाबाद : '10वीं-12वीं के अंक भविष्य निर्धारित नहीं करते, मन की बात सुनें और लक्ष्य साधें'

Amrit Vichar Network
Published By Bhawna
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मुरादाबाद, अमृत विचार। बोर्ड परीक्षा में अच्छे अंक आना अच्छी बात है, लेकिन यह ज्यादा मायने रखाते। असल में 12वीं कक्षा के बाद जिंदगी की कसौटी का दौरा शुरू होता है। प्रतियोगिता के इस दौर में कड़ी प्रतिस्पर्धा की वजह से कई विद्यार्थी हतोत्साहित होने लगते हैं। ऐसे में सफल वे हो पाते जो हौसला और हिम्मत नहीं हारते। कई बार ऐसा होता है कि हम मेहनत बहुत करते हैं, लेकिन हमारी योजना में कहीं कमी रह जाती है। हम अपना लक्ष्य निर्धारित कर उसके लिए रणनीति के साथ तैयारी करेंगे तो सफलता को पाने से कोई रोक नहीं सकता।

मुख्य विकास अधिकारी सुमित यादव का कहना है कि हाईस्कूल, इंटर में हम टॉपर रहे थे। आईएएस, पीसीएस अधिकारी बनने के लिए 10वीं और 12वीं के अंक से ज्यादा उसके आगे की पढ़ाई और अपनी आत्मनिर्भरता जरूरी है। यह जिंदगी के दोनों पड़ाव से समाज और परिवार के लोग बच्चों से जितने अंक लाने की अपेक्षा करते हैं, वास्तविकता में उसकी इतनी जरूरत नहीं है। जरूरत है बच्चे के तय लक्ष्य में परिवार के लोगों का साथ देना। 12वीं के बाद आप अपने लक्ष्य के प्रति ईमानदारी से मेहनत करें और पढ़ाई को गंभीरता से लेने के साथ उसका आनंद भी लें।

पढ़ाई के साथ समाज की और चीजों देश-दुनिया और अपने इतिहास के बारे में भी जानकारी रखें। जरूरी नहीं है हाईस्कूल और इंटर में टॉप करने वाले बच्चे आईएएस व पीसीएस बन ही जाए। इस दौर में ऐसे बहुत से उदाहरण है, जो आईएएस, पीसीएस के पद पर बैठने के बाद देश और समाज को अपनी सेवाएं दे रहे हैं। हाईस्कूल व इंटर में कम अंक लाने वाले बच्चों को हिम्मत नहीं हारनी चाहिए।

डीपीआरओ बोले-समाज, परिवार की सुनने के बाद मन की बात सुनें और लक्ष्य साधें
बच्चों के साथ मां-बाप अपनी मर्जी न थोपे। उनके के मन की बात भी सुनें। कम अंक आने पर बच्चे खुद दूसरों से कमजोर न समझें। जिंदगी की परीक्षा तो 12वीं के बाद ही शुरु होती है। 10वीं और 12वीं में कम अंक प्राप्त करने वाले बच्चे अपने आप को दूसरों से कमजोर समझने लगते हैं, जो कि बिल्कुल गलत है। एक परीक्षा के आपके पूरे जीवन को फैसला नहीं करती।  इस पर जिला पंचायत राज अधिकारी अभय कुमार यादव ने अपना उदाहरण दिया। उन्होंने बताया कि इससे यह तय नहीं होता कि जीवन में आप क्या कर सकते हैं और क्या नहीं कर सकते। मैंने हाईस्कूल 2001 में किया और 74 प्रतिशत अंक प्राप्त किए।

2003 में 12वीं में 69 प्रतिशत अंक प्राप्त किए। स्नातक में पहले साल में छात्र नेता बने। इसके कारण प्रथम वर्ष फेल हो हुए, मात्र 48 प्रतिशत अंक मिले थे। इसके बाद अपने लक्ष्य पर ध्यान केंद्रित किया। लक्ष्य आईएएस की परीक्षा पास करना था, हालांकि माता-पिता चिकित्सक या अध्यापक बनाना चाहते थे। जिस दिन मेरा आईएएस में चयन हुआ। उस दिन पिता ने मुझसे बीएड करने के लिए कहा। जब मैंने बताया कि आईएएस में चयन हो गया है तो पिता की आंखें खुशी के आंसुओं से भर आईं। इस तरह ही अक्सर मध्यम वर्ग के लोग भी अपने बच्चों के लिए उच्च पद की नौकरी का सपना देखते हैं। इसे देखते हुए बच्चा किसी भी हाल में जल्द से जल्द सरकारी नौकरी पाने के प्रयास में रहता है। ऐसे में इन दोनों पढ़ाव पर सफलता प्राप्त होने से बच्चे मायूस न हों। बल्कि अपने लक्ष्य के प्रति और संजीदा मेहनत करें।

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