प्रतिकूल पक्ष

Amrit Vichar Network
Published By Om Parkash chaubey
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हम सोशल मीडिया के युग में काम कर रहे हैं। देश की कई अदालतों की कार्यवाही का सीधा प्रसारण किया जाता है। सीधा प्रसारण अदालती कार्यवाही के प्रति आम आदमी का भरोसा बढ़ा रहा है वहीं मुख्य न्यायाधीश डी वाईचंद्रचूड़ ने शनिवार को कटक में कहा कि अदालती कार्यवाही के सीधे प्रसारण का उल्टा असर भी हुआ है।

कार्यवाही के सीधे प्रसारण के कारण अदालत में की गई टिप्पणियों के अब दूरगामी परिणाम होते हैं। कोर्ट में हम जो भी कहते हैं वह एक-एक शब्द सार्वजनिक बहस के लिए मौजूद है। ऐसी परिस्थिति में अदालतों के लिए यह आवश्यक है कि वे शामिल पक्षों के खिलाफ प्रतिकूल टिप्पणी करते समय अत्यधिक सतर्क रहें।

सीजेआई ने कहा कि यूट्यूब पर अदालती कार्यवाही की कई सारी मजाकिया क्लिप्स मौजूद हैं, जिसे नियंत्रित करने की जरूरत है। यानि सीधे प्रसारण का प्रतिकूल पक्ष भी है। मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि जज के रूप में हमें भी प्रशिक्षण की जरूरत है। जहां तक न्यायाधीशों के प्रशिक्षण का सवाल है उच्चतम न्यायालय ने 2 मई को इलाहाबाद उच्च न्यायालय से एक सेशन जज के न्यायिक अधिकार वापस लेने का आदेश जारी करते हुए उन्हें प्रशिक्षण के लिए ज्युडिशियल एकादमी ट्रेनिंग में भेजने को कहा।

गौरतलब है उच्चतम न्यायालय ने 2018 में सुनवाई के सीधे प्रसारण के मुद्दे पर कहा था कि संविधान के अनुच्छेद 21 के अनुसार न्याय का अधिकार तभी सार्थक हो सकेगा, जब अदालतों के सामने होने वाली कार्यवाही तक आम जनता की पहुंच होगी।

उसी वर्ष एक मामले की सुनवाई के दौरान वकील के अगली तारीख मांगने पर सुप्रीम कोर्ट ने नाराजगी जाहिर करते हुए कहा था कि इस समस्या का एक ही समाधान है कि अदालत की कार्यवाही का सीधा प्रसारण किया जाए, जिससे जनता को भी पता चल सके कि अदालतों में आखिर इतने मामले क्यों लंबित पड़े हैं। वास्तव में सीधे प्रसारण की वजह से पूरी न्यायिक प्रक्रिया में पारदर्शिता तो बढ़ती ही है, सुनवाई भी बेहतर होती है।

साथ ही खुली अदालत की अवधारणा को भी बल मिलता है। दोनों तरफ के वकील सुनवाई सार्वजनिक होने की वजह से पहले की अपेक्षा कहीं अधिक तैयारी कर आते हैं। इस व्यवस्था से अदालतों में चल रहे उन मुकदमों के बारे में लोगों को विस्तृत जानकारी मिल जा रही है जिसका सीधा वास्ता आज के समाज में व्याप्त कुरीतियों और व्यवस्थागत खामियों से है।

न्यायिक कुशलता में सुधार की कोशिश व पारदर्शिता की दृष्टि से मुख्य न्यायाधीश का न्यायाधीशों को अपने शब्दों के प्रति अधिक जिम्मेदार होने की जरूरत पर बल देना उचित ही है।