बरेली: भोर में हुआ क्रांति का आगाज, शाम से पहले जीत लिया था मैदान

Amrit Vichar Network
Published By Vishal Singh
On

31 मई को बरेली में भड़की थी 1857 की क्रांति की ज्वाला

बरेली, अमृत विचार। यूं तो 1857 की क्रांति का आगाज 10 मई को हो गया था, लेकिन बरेली में क्रांति की ज्वाला 21 दिन बाद यानी 31 मई को भड़की थी। यहां कंपनी राज के खिलाफ रूहेला सरदार हाफिज रहमत खान के पोते नवाब खान बहादुर खान ने मोर्चा खोला था। सुबह 4 बजे एक अंग्रेज अफसर का घर जलाने से शुरू हुई क्रांति शाम होते-होते स्वाधीनता ध्वज फहराने में तब्दील हो गई थी। अगले दिन नवाब खान बहादुर खान की भूड़ स्थित उनके आवास पर ताजपोशी की गई। बरेली में हुई क्रांति सफल रही और करीब 11 महीने तक शहर अंग्रेजों के चंगुल से आजाद रहा।

मेरठ से शुरू हुई क्रांति की सूचना बरेली के क्रांतिकारियों तक 14 मई को पहुंच गई थी। जबकि अंग्रेज अफसरों तक भी बरेली में संभावित बगावत की गुप्त सूचनाएं पहुंच रहीं थीं, लिहाजा वे सतर्क तो रहे मगर अंत तक क्रांतिकारियों के मंसूबों से अंजान थे।

नवाब खान बहादुर खान और उनके सहयोगी मुंशी शोभाराम चाहते थे कि पूर्व नियोजित तरीके से क्रांति का बिगुल फुंके, इसके लिए अंग्रेज अफसरों से व्यवहार सौहार्द पूर्ण रखा गया। 30 मई की रात नवाब खान बहादुर खान और मुंशी शोभाराम ने ब्रिटिश तोपखाने में तैनात सूबेदार बख्त खां को गोपनीय पत्र भेजा। जिसमें बख्त खां को बरेली में क्रांति का संचालक और संगठनकर्ता नियुक्त कर 31 मई को क्रांति का दिन तय किया।

शाम होते-होते यूनियन जैक उतारकर फेंक दिया
पूर्व नियोजित तरीके से 31 मई को तड़के 4 बजे सबसे पहले अंग्रेज अफसर कैप्टन ब्राउनली का बंगला जलाया गया। पूर्वाह्न 11 बजे तोपखाना लाइन में एक तोप छूटी, जो क्रांति के आगाज का सूचक थी। इसके बाद तो पूरे शहर में खलबली मच गई। चुन-चुनकर अंग्रेज अफसर मार दिए गए। दोपहर 4 बजे तक तत्कालीन मजिस्ट्रेट पाउंडर, बरेली काॅलेज के प्राचार्य सी बक के अलावा सिविल सर्जन और जेल अधीक्षक के कत्ल कर दिए गए। शाम को 5 बजे तक तमाम जगह से यूनियन जैक उतारकर फेंक दिया गया। स्वाधीनता ध्वज फहराया गया।

सांप्रदायिक सौहार्द की मिसाल थे खान बहादुर
नवाब खान बहादुर खान अपने दौर में सांप्रदायिक सौहार्द की मिसाल रहे। उनके द्वारा गोवध पर प्रतिबंध और फरीदपुर के ठाकुर रघुनाथ सिंह के माथे पर तिलक करना इसका एक उदाहरण है। उन्हें रुहेलखंड में क्रांति के दौरान हिंदू और मुस्लिम दोनों का साथ मिला। सूबेदार बख्त खां, हकीम अजीमुल्ला, मौलवी अहमद उल्लाशाह, मौलवी सरफराज अली, महमूद अहसन, फिरोजशाह के अलावा पंडित शोभाराम और पंडित तेगनाथ जैसे लोग उनके कंधे से कंधा मिलाकर चले।

नोट- उपरोक्त तथ्य बरेली कॉलेज में इतिहास विभाग के विभागाध्यक्ष रहे डॉ. जोगा सिंह होठी व उनके सहयोगियों डॉ. रूपानी सोना और नवीन गुप्त की पुस्तक महान क्रांति नायक नवाब खान बहादुर खां से लिए गए हैं।

ये भी पढ़ें- बरेली: बीमारी सही करने के नाम पर महिला से उतरवा लिए डेढ़ लाख के जेवर, रिपोर्ट दर्ज

 

संबंधित समाचार