इलाहाबाद हाईकोर्ट ने खारिज की कुलपति की नियुक्ति के मामले में दाखिल याचिका, जानें क्या कहा...

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Published By Deepak Mishra
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प्रयागराज। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने राजा महेंद्र प्रताप सिंह राज्य विश्वविद्यालय, अलीगढ़ में अंतरिम (प्रथम) कुलपति की नियुक्ति को लेकर दाखिल याचिका को खारिज करते हुए कहा कि यूपी राज्य  विश्वविद्यालय 1973 की धारा 4 (1-बी) के प्रावधानों के अनुसार न तो अवैध है और न ही वैधानिक प्रावधानों के विपरीत है, इसलिए क्वो वारंटो की रिट जारी नहीं की जा सकती है। उक्त टिप्पणी न्यायमूर्ति सूर्य प्रकाश केसरवानी और न्यायमूर्ति अनीश कुमार गुप्ता की खंडपीठ ने डॉ. रक्षपाल सिंह की याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया है।

राज्य सरकार के शासनादेश दिनांक 28.06.2019 में विशेष रूप से प्रावधान है कि उत्तर प्रदेश राज्य विश्वविद्यालय अधिनियम, 1973 के तहत कुलपति और प्रतिकुलपति की नियुक्ति की प्रक्रिया यथावत लागू रहेगी। उपरोक्त सरकारी आदेश यूजीसी रेगुलेशंस, 2018 के संदर्भ में जारी किया गया था। इस प्रकार कुलपति और प्रति-कुलपति की नियुक्ति की प्रक्रिया में रेगुलेशंस 2018 का पालन नहीं किया गया और राज्य सरकार ने राज्य विश्वविद्यालय अधिनियम, 1973 के प्रावधानों को लागू रखा।

वर्तमान मामले में उक्त विश्वविद्यालय में विपक्षी की अंतरिम (प्रथम) कुलपति के रूप में नियुक्ति की गई। याची के अधिवक्ता ने तर्क देते हुए कहा कि यूजीसी रेगुलेशंस, 2010 के प्रावधानों के अनुसार कुलपति के रूप में नियुक्त होने वाले व्यक्ति को अन्य योग्यताओं के साथ विश्वविद्यालय प्रणाली में प्रोफेसर के रूप में कम से कम दस वर्ष का अनुभव होना चाहिए। चूंकि नियुक्ति की तिथि के अनुसार विपक्षी के पास एक विश्वविद्यालय में प्रोफेसर के रूप में दस वर्ष से कम का अनुभव था, इसलिए उनकी नियुक्ति प्रारंभ से ही शून्य है।

यूजीसी रेगुलेशंस, 2010 के तहत यह केन्द्रीय, प्रांतीय या राज्य अधिनियम द्वारा स्थापित या निगमित प्रत्येक विश्वविद्यालय, आयोग द्वारा मान्यता प्राप्त घटक या संबद्ध कॉलेज सहित प्रत्येक संस्थान पर लागू होगा। इसके अलावा यह भी  प्रावधान है कि रेगुलेशंस तत्काल प्रभाव से लागू होंगे। अधिवक्ता ने आगे यह भी कहा कि यूजीसी रेगुलेशंस, 2018 और यूजीसी रेगुलेशंस, 2010 दोनों समान है और इस प्रकार यदि यूजीसी रेगुलेशंस, 2018 के प्रावधान लागू होते हैं, तब भी विपक्षी की नियुक्ति अवैद्य होगी, क्योंकि उनके पास कुलपति के पद के लिए न्यूनतम आवश्यक योग्यता नहीं है।

दूसरी ओर विपक्षी की ओर से प्रस्तुत वरिष्ठ अधिवक्ता आरके ओझा ने तर्क दिया कि यूजीसी रेगुलेशंस, 2010 और यूजीसी रेगुलेशंस, 2018 के प्रावधानों के बीच एक बड़ा अंतर है। इसके अलावा क्वो वारंटो की रिट केवल तभी होती है, जब नियुक्ति किसी अपात्र व्यक्ति की हो और प्रासंगिक नियमों/क़ानून के विरोध में होती है।

चूंकि उत्तर प्रदेश राज्य विश्वविद्यालय अधिनियम, 1973 के प्रावधानों के अनुसार विपक्षी की नियुक्ति की गई है और उक्त अधिनियम, 1973 की धारा 4(1-बी) में ऐसा कोई प्रावधान नहीं दिया है कि विश्वविद्यालय के प्रथम कुलपति की नियुक्ति के लिए अनुभव होना चाहिए और अंत में यह भी कहा गया कि याचिका यूजीसी रेगुलेशंस, 2010 पर आधारित है, जबकि वर्तमान में यूजीसी रेगुलेशंस, 2018 लागू हैं।

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