हिंसा रोकने के लिए

Amrit Vichar Network
Published By Om Parkash chaubey
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दो महीने से भी अधिक समय हो चुका है। जातीय हिंसा के चलते मणिपुर सुलग रहा है। अब राज्य की हिंसा के मामले में उच्चतम न्यायालय ने कड़ा रुख अपनाया है। शीर्ष अदालत ने कहा कि कानून-व्यवस्था राज्य का मसला है। यह सुनिश्चित करना होगा कि राजनीतिक मशीनरी वहां की कानून व्यवस्था की स्थिति पर आंखें बंद न करे।

भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली बेंच ने कहा कि वह मणिपुर उच्च न्यायालय में लंबित आरक्षण के मुद्दे में नहीं जाएंगे। यह मामला मानवीयता से जुड़ा हुआ है। कुकी समुदाय और अन्य जनजाति की सुरक्षा को लेकर चिंता है। अदालत ने राज्य की हिंसा के मामले में राज्य सरकार से रिलीफ, सुरक्षा और पुनर्वास को लेकर उठाए गए कदम के बारे में स्टेटस रिपोर्ट दाखिल करने को कहा है।

हालांकि मणिपुर सरकार की ओर से अदालत को बताया गया कि राज्य में स्थिति धीरे-धीरे सही हो रही है। सोमवार को एक गैर सरकारी संगठन द्वारा दायर याचिका पर उच्चतम न्यायालय  मणिपुर हिंसा से संबंधित याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा था। सुनवाई के दौरान एक पक्षकार के वकील ने कहा कि सीएम के अधिकारिक ट्विटर हैंडल से ट्विट हुए थे जो कथित तौर पर भड़काऊ थे।

अदालत ने कहा कि कोई भी अथॉरिटी भड़काने वाली बात न करे। विश्लेषकों के मुताबिक पूर्वोत्तर में भाजपा की चुनाव में सफलता भारतीय राजनीति में एक उल्लेखनीय परिघटना थी लेकिन मणिपुर में वह सफलता खतरे में नजर आ रही है।

गौरतलब है कि मणिपुर की कुल आबादी मे मैतेई लोगों की संख्या लगभग 53 प्रतिशत है और वे ज्यादातर इंफाल घाटी में रहते हैं। आदिवासी नागा और कुकी आबादी का 40 प्रतिशत हिस्सा हैं और पहाड़ी जिलों में रहते हैं। राज्य के मैतेई और कुकी समुदायों के बीच जातीय हिंसा में अब तक 100 लोगों की मौत हो चुकी है। मैतेई अनुसूचित जनजाति का दर्जा चाहते हैं। कुकी समुदाय की मांग स्वायत्त क्षेत्र की है।

नगा समुदाय अलगाव चाहता है लेकिन भारत से नहीं केवल मणिपुर से। वह व्यापक नगालैंड या नगालिम से जुड़ना चाहता है। ऐसे में मणिपुर में किसी समूह को शत्रु घोषित नहीं किया गया है। दीमापुर में स्थित विद्रोहियों से निपटने में कुशल सैन्य टुकड़ी अब मणिपुर में तैनात है। उनकी मदद के लिए सीआरपीएफ और असम राइफल्स की कुछ बटालियन हैं लेकिन वे

लड़ नहीं सकतीं। इन बलों की भूमिका संयुक्त राष्ट्रीय शांति बल जैसी रह गई है। राज्य में संघर्षरत समूहों के साथ बातचीत के जरिए विवादित मुद्दों को हल करने के प्रयास शांति बहाली की दिशा में कारगर हो सकते हैं।