बरेली: सोशल मीडिया अनसोशल भी... ख्याल रखें कहीं, तबाह न कर डाले आपके बच्चों की जिंदगी
फेसबुक जैसी सोशल साइटों पर पोर्न कंटेंट की भरमार, युवा अपनी जिम्मेदारियां और बच्चे पढ़ाई भूलकर हो रहे हैं मानसिक रोगों के शिकार
बरेली, अमृत विचार: सामाजिक तानेबाने को गहरी चोट पहुंचाने वाली ऐसी बहुत सारी घटनाएं हो रही हैं, विशेषज्ञ जिनका कारण सोशल मीडिया का अनसोशल हो जाना मानते हैं। फेसबुक जैसी लोगों के सर्वाधिक जुड़ाव वाली सोशल साइट पर पोर्न कंटेंट की भरमार भारतीय कानून की सारी सीमाओं को पार कर गई है।
मानसिक रोग विशेषज्ञों के पास पहुंचने वाले केसों की बढ़ती संख्या साफ इशारा कर रही है कि फेसबुक जैसी सोशल साइटें अश्लीलता परोसकर युवाओं और बच्चों को मानसिक तौर पर किस हद तक तबाह कर रही हैं। युवा अपनी बेरोजगारी और पारिवारिक जिम्मेदारियां भूल बैठे हैं और बच्चे अपनी पढ़ाई। अकेले जिला अस्पताल के मनकक्ष का रिकॉर्ड देखा जाए तो दो साल में ऐसे केसों की संख्या दोगुनी से भी ज्यादा हो गई है।
कहां जा रहा है समाज... इन घटनाओं से लगाइए अंदाजा:
केस- 1 : शहर के एक प्रमुख कॉन्वेंट स्कूल में कुछ दिन पहले पांचवीं में पढ़ने वाले बच्चे के बैग में कंडोम मिला तो शिक्षकों के होश उड़ गए। बच्चे के माता-पिता को बुलाकर उन्हें इसकी जानकारी दी गई तो वे भी सकते में आ गए। बच्चे को भरोसे में लेकर पूछताछ की गई तो पता चला कि सोशल मीडिया ने ही उसे यह राह दिखाई है। उसके अभिभावकों ने भी स्वीकार किया कि बच्चा मोबाइल फोन में हद से ज्यादा व्यस्त रहता है।
केस- 2 : इज्जतनगर में रहने वाली 13 साल की किशोरी सोशल मीडिया के जरिए एक युवक के संपर्क में आई और फिर नौबत उसके गर्भवती होने तक पहुंच गई। युवक ने तो इसका पता लगने के बाद उससे किनारा कर लिया लेकिन मां-बाप के लिए उसकी बार-बार तबीयत बिगड़ना और गुमसुम रहना सिरदर्द बन गया। एक दिन वे उसे जिला महिला अस्पताल लेकर पहुंचे तो पता चला कि वह दो महीने की गर्भवती है। यह वाकया इसी महीने का है।
केस- 3: इसी महीने महिला अस्पताल में 15 साल की एक और किशोरी के गर्भवती होने का मामला पहुंचा। क्योलड़िया के एक गांव की इस किशोरी की दोस्ती फोन के जरिए गांव के ही एक युवक से हुई थी। पिछले दिनों लड़की गर्भवती हुई तो युवक दिल्ली चला गया। परिवार के लोगों को बताया तो उन्होंने उसकी जांच कराने के बाद थाने में रिपोर्ट दर्ज कराई। किशोरी ने बताया कि युवक उसे फोन पर अश्लील वीडियो दिखाता था।
ऑनलाइन गेम, यह खेल भी बहुत खतरनाक: ऑनलाइन गेम के बहाने बच्चों के हाथ में मोबाइल आना भी खतरे की घंटी है। विशेषज्ञ मानते हैं कि यह लत भी न सिर्फ बच्चों को पढ़ाई से दूर कर देती है बल्कि तमाम मानसिक रोगों का भी शिकार बना देती है। युवा होने तक यह लत उनका पीछा नहीं छोड़ती। वे जब जीवन की हर गतिविधि में पिछड़ने लगते हैं तो कई बार अवसाद में चले जाते हैं।
दिखें ये लक्षण तो हो जाएं सावधान: बात-बात में चिड़चिड़ापन, लड़ना-झगड़ना या गुमसुम रहना, अकेले रहने की आदत डाल लेना, बात-बात पर झूठ बोलना, दिन में सोना और रात में देर तक जागकर मोबाइल चलाना, संदेहास्पद कार्यों में लिप्त हो जाना, सिरदर्द, बेचैनी, घबराहट और नशे की लत का शिकार हो जाना।
मोबाइल बच्चों का दुश्मन: अगर बच्चों को समय रहते मोबाइल से दूर नहीं किया गया तो धीरे-धीरे वे परिवार से ही दूर हो जाएंगे। मोबाइल में व्यस्त रहने वाले बच्चे न तो अपने स्वास्थ्य पर ध्यान दे रहे हैं, न ही परिवार के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को समझ रहे हैं। - जयसहाय, अभिभावक
सोशल मीडिया और ऑनलाइन गेम पर बहुत से ऐसे विज्ञापन लगातार आ रहे हैं जो बच्चों के लिए किसी भी दशा में उचित नहीं हैं। इस तरह की सामग्री देखने से बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ता है। इसे रोकना चाहिए। - प्रिया परमार, अभिभावक
कानून है मगर बेअसर: सार्वजनिक अश्लीलता का कोई भी मामला आईपीसी की धारा 293 और 293 के साथ आईटी एक्ट की धारा 67 और 67 बी के तहत दंडनीय अपराध है। इसके बावजूद सरकार के स्तर पर कोई कार्रवाई न किए जाने से सोशल मीडिया पर अश्लीलता बढ़ती जा रही है।
बच्चे कम, अभिभावक ज्यादा जिम्मेदार: अगर माता-पिता भी अपनी कुछ आदतें सुधार लें और खुद मोबाइल पर ज्यादा व्यस्त रहने के बजाय बच्चों के साथ खेलने बात करने के साथ ज्यादा से ज्यादा समय बिताएं तो बच्चों की यह लत कम हो सकती है। दो साल में ऐसे केस दोगुने से भी ज्यादा हो गए हैं।
इसलिए जरूरी है बच्चों को मोबाइल न दिया जाए, दें भी तो उन पर नजर रखें। मोबाइल के ज्यादा इस्तेमाल से बच्चों में कई मानसिक बीमारियां होने का खतरा रहता है। इसलिए इस पर रोक जरूर लगाएं।- डाॅ. आशीष कुमार सिंह, मनोचिकित्सक मन कक्ष
सोशल मीडिया पैदा कर रहा है मनोविकार: सोशल मीडिया का बच्चों की मानसिक स्थिति पर दुष्प्रभाव डालने में अहम रोल है। किशोरियां समय से पहले शारीरिक और मानसिक रूप से सुदृढ़ हो रही है। इसलिए जरूरी है कि अभिभावक अपने बच्चों से खुलकर बात करें। खासतौर पर बेटियों को सही और गलत की जानकारी दें।
प्रेम संबंधों में जो जटिलताएं होती है, उसके बारे में भी बताएं। उन्हें खाली न रहने दें, उनका ध्यान कैरियर पर रखें। घर का माहौल ऐसा हो कि बच्चे बाहरी लोगों पर कम ध्यान दें। - डॉ. सुविधा शर्मा, विभागाध्यक्ष मनोविज्ञान विभाग, बरेली कॉलेज बरेली
