जैव विविधता संरक्षण, सुरक्षा पर कार्रवाई करने में भारत आगे है : प्रधानमंत्री मोदी

Amrit Vichar Network
Published By Ashpreet
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चेन्नई। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने शुक्रवार को कहा कि जैव विविधता के संरक्षण, सुरक्षा, बहाली एवं उनके संवर्धन पर कार्रवाई करने में भारत लगातार आगे रहा है और अपने अद्यतन लक्ष्यों के माध्यम से देश ने और भी ऊंचे मानक तय किए हैं।

जी-20 पर्यावरण एवं जलवायु स्थिरता पर यहां आयोजित मंत्रिस्तरीय बैठक को वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि उन्हें यह कहते हुए गर्व होता है कि भारत ने अपने महत्वाकांक्षी ‘‘राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान’’ के माध्यम से इस दिशा में नेतृत्व किया है। उन्होंने कहा, ‘‘भारत ने 2030 के लक्ष्य से नौ साल पहले ही गैर-जीवाश्म ईंधन स्रोतों से अपनी स्थापित विद्युत क्षमता हासिल कर ली है। हमने अपने अद्यतन लक्ष्यों के माध्यम से और भी ऊंचे मानक तय किए हैं।

आज स्थापित नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता के मामले में भारत दुनिया के शीर्ष पांच देशों में से एक है।’’ प्रधानमंत्री ने कहा, ‘‘हमने 2070 तक ‘‘शून्य उत्सर्जन’’ का लक्ष्य भी निर्धारित किया है। हमने अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन, सीडीआरआई (केंद्रीय औषधि अनुसंधान संस्थान) और ‘‘उद्योग परिवर्तन के लिए नेतृत्व समूह’’ सहित अन्य गठबंधनों के माध्यम से अपने भागीदारों के साथ सहयोग करना जारी रखा है।

उन्होंने कहा, भारत विशाल-विविधता से भरा देश है और देश जैव विविधता के संरक्षण, सुरक्षा, बहाली एवं उनके संवर्धन पर कार्रवाई करने में लगातार आगे रहा है। ‘गांधीनगर कार्यान्वयन खाका एवं मंच’ के माध्यम से आप जंगल की आग और खनन से प्रभावित प्राथमिकता वाले स्थानों पर इस संबंध में की गई प्रगति को देख सकते हैं।’’ उन्होंने कहा कि भारत ने बाघों के संरक्षण की दिशा में महत्वपूर्ण पहल की है।

उन्होंने कहा कि ‘प्रोजेक्ट टाइगर’ से मिली सीख के आधार पर हाल में धरती पर बाघों की सात प्रजातियों के संरक्षण के लिए देश ने इंटरनेशनल बिग कैट एलायंस नामक पहल शुरू की है। ‘प्रोजेक्ट टाइगर’ के नतीजतन आज दुनिया में बाघों की कुल आबादी में से 70 प्रतिशत बाघ भारत में हैं। उन्होंने कहा कि भारत प्रोजेक्ट लॉयन और ‘प्रोजेक्ट डॉल्फिन’ पर भी काम कर रहा है। उन्होंने मिशन अमृत सरोवर’’ की ओर इशारा करते हुए कहा कि भारत की पहल लोगों की भागीदारी से संचालित होती है।

मिशन अमृत सरोवर एक अनूठी जल संरक्षण पहल है। इस मिशन के तहत लगभग एक वर्ष में 63,000 से अधिक जलाशयों का विकास किया गया है। यह मिशन पूरी तरह से सामुदायिक भागीदारी के माध्यम से और प्रौद्योगिकी की सहायता से कार्यान्वित किया गया है। उन्होंने कहा, हमारे ‘कैच द रेन अभियान के भी उत्कृष्ट परिणाम सामने आए हैं।

जल संरक्षण के लिए इस अभियान के माध्यम से 2,80,000 से अधिक जल संचयन संरचनाओं का निर्माण किया गया है। इसके अलावा, लगभग 2,50,000 पुन: उपयोग एवं पुनर्भरण संरचनाओं का भी निर्माण किया गया है। उन्होंने कहा कि यह सब लोगों की भागीदारी और स्थानीय मृदा एवं जल की स्थिति पर ध्यान केंद्रित करके हासिल किया गया।

उन्होंने कहा कि गंगा नदी की सफाई के लिए नमामि गंगे मिशन में सामुदायिक भागीदारी का प्रभावी ढंग से उपयोग किया गया। इससे नदी के कई हिस्सों में ‘गंगा डॉल्फिन’ के संरक्षण में एक बड़ी उपलब्धि हासिल हुई है। प्रधानमंत्री ने कहा, आर्द्रभूमि संरक्षण में हमारे प्रयास भी सफल हुए हैं।

उन्होंने संत तिरुवल्लुवर द्वारा लिखित तिरुक्कुरल के एक दोहे का उल्लेख किया जिसमें कहा गया है कि अगर सागर से जल लेने वाले बादल बदले में वर्षा के रूप में इस पानी को नहीं लौटाएंगे तो सागर भी सिमट जाएगा। उन्होंने कहा कि भारत में प्रकृति और इसकी कार्य प्रणाली सीखने के नियमित स्रोत रहे हैं।

इन्हें कई धर्मग्रंथों और दंत कथाओं में भी पाया जा सकता है। उन्होंने कहा, हमें पता है कि ‘न तो नदियां अपना पानी खुद पीती हैं और न ही पेड़ अपने फल खुद खाते हैं। बादल भी अपने पानी से पैदा होने वाले अनाज को ग्रहण नहीं करते हैं।

मोदी ने कहा, प्रकृति हमारे लिए देती है। हमें भी बदले में प्रकृति को देना चाहिए। धरती मां की सुरक्षा एवं उसका ख्याल रखना हमारी मौलिक जिम्मेदारी है। प्रधानमंत्री ने कहा कि भारत के पारंपरिक ज्ञान के आधार पर उन्होंने जोर दिया कि समाज के आखिरी व्यक्ति के उत्कर्ष और विकास को सुनिश्चित करने के लिए जलवायु कार्य में निश्चित रूप से अंत्योदय का पालन करना चाहिए।

विश्व के दक्षिणी देश विशेष रूप से जलवायु परिवर्तन और पर्यावरण से संबंधित मुद्दों से प्रभावित हैं और संयुक्त राष्ट्र जलवायु सम्मेलन एवं पेरिस समझौते के तहत प्रतिबद्धताओं पर कार्रवाई में तेजी लाने की आवश्यकता है। यह वैश्विक दक्षिण की विकास की आकांक्षाओं को जलवायु अनुकूल तरीके से पूरा करने में मदद पहुंचाने में अहम होगा। उन्होंने ‘टिकाऊ और लचीली सागर एवं महासागर आधारित अर्थव्यवस्था के लिए जी-20 के उच्च स्तरीय सिद्धांत’ को स्वीकृत करने का अनुरोध करते हुए कहा कि सागर दुनिया की तीन अरब आबादी की आजीविका में मदद पहुंचाते हैं और व्यापक जैवविविधता के अलावा यह अहम आर्थिक संसाधन है। इसका जिम्मेदारीपूर्ण उपयोग और प्रबंधन अत्यंत महत्वपूर्ण है।

उन्होंने प्लास्टिक से होने वाले प्रदूषण को कम करने के लिए जी-20 के सदस्य देशों से प्रभावी अंतरराष्ट्रीय कानूनी रूप से बाध्यकारी उपकरण का रचनात्मक तरीके से उपयोग करने का आह्वान किया। पिछले साल वैश्विक स्तर पर शुरू की गई ‘मिशन लाइफ लाइफस्टाइल फॉर एनवायरनमेंट’ का जिक्र करते हुए मोदी ने कहा कि वह पर्यावरण की रक्षा और संरक्षण के लिए व्यक्तिगत और सामूहिक कार्रवाई को बढ़ावा देंगे।

प्रधानमंत्री ने कहा, आइए दोहराएं कि हम प्रकृति मां के लिए अपने कर्तव्यों को नहीं भूलें। प्रकृति मां खंडित दृष्टिकोण को पसंद नहीं करती। वह वसुधैव कुटुंबकम - एक धरती, एक परिवार, एक भविष्य को प्राथमिकता देती है।

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