मुरादाबाद : क्रांतिकारियों के शौर्य-पराक्रम का गवाह है इमली का पेड़, जानें...

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Published By Bhawna
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तमाम कब्रों के बीच शहीदे आजम नवाब मज्जू खां की मजार समेटे है शौर्य-पराक्रम, आजादी की जंग के इस हीरो को ब्रिटिश सरकार ने दी थी दर्दनाक मौत

मुरादाबाद, अमृत विचार। गलशहीद कब्रिस्तान में इमली का वह पेड़ आज भी हरा-भरा खड़ा है। 1857 की क्रांति में अंग्रेजों से भारत को आजाद कराने की जो चिंगारी फूटी थी, उसका गवाह यही इमली का पेड़ है। नीचे से खोखला हो गया, पर ऊपर पूरी तरह से हरा-भरा है। इसी पेड़ में आजादी के वीरों को अंग्रेजों ने लटकाकर कत्लेआम किया था। 

देशवासियों में दहशत फैलाने को नवाब मजीदुद्दीन अहमद मज्जू खां के शव को अंग्रेजों ने हाथियों के पैर से बांधकर शहर की सड़कों पर घसीटा था। गलशहीद के कब्रिस्तान में शहीदे आजम नवाब मज्जू खां की मजार बनी है, जिसे देख आजादी के आंदोलन का अतीत ताजा होने लगता है। शहीद मज्जू खां की पारिवारिक पृष्टभूमि देखें तो इनके दो बेटे नवाब मोहम्मद वजीरुद्दीन अहमद खां और नवाब मोहम्मद अमीरुद्दीन अहमद खां थे। बड़े बेटे वजीरुद्दीन अहमद खां के एक बेटा मोहम्मद जमीलुद्दीन खां और छोटे बेटे मोहम्मद अमीरुद्दीन अहमद खां के तीन बेटे नवाबजदा सिराजुद्दीन अहमद, मो. हसन खां, नजीरुद्दीन अहमद खां उर्फ कमालुद्दीन थे। इसी तरह मज्जू खां का परिवार बढ़ा और वर्तमान में इनके परिवार में जीवित लोगों की संख्या 28 है। इसमें अधिकांश लोग दिल्ली में बसे हैं।

मजार का सौंदर्यीकरण नहीं
बुधवार दोपहर के दो बजे गलशहीद कब्रिस्तान पहुंचे तो यहां पर हर तरफ कब्रें बनी हैं। आजादी की जंग की कहानी सुनाने वाला इमली का पेड़ भी खड़ा है। कब्र व पेड़ों पर बंदर उछल-कूद कर रहे थे। कब्र की सुगंधित मिट्टी में हरी काई लग गई है। शहीद नवाब मज्जू खां की मजार पर कोई सौंदर्यीकरण नहीं है। यहां कब्रिस्तान के चारों ओर बनी बाउंड्री पर भी शहीदों (गलशहीद) की पहचान वाला कोई अंकन नहीं है। साज-सज्जा, रंग-रोगन, लाइटिंग की बात दूर, यहां फूल-फुलवारी तक नहीं है।

नवाब की बहादुरी देख पीठ दिखाकर भाग गए थे अंग्रेज
सम्राट बहादुर शाह जफर ने 8 जून 1857 को मज्जू खां को मुरादाबाद का हाकिम घोषित किया था। मज्जू खां की बहादुरी से पीठ दिखाकर अंग्रेजी टुकड़ियां नैनीताल भाग गई थीं। मज्जू खां और अन्य आजादी के दीवानों ने जेल तोड़कर साथियों को आजाद कराया था। फिर काफी समय तक मज्जू खां की हुकूमत रही। फिर अंग्रेजों का दोबारा कब्जा होने पर गलशहीद जिगर पार्क के सामने वतनपरस्तों को फांसी दे दी थी। भारतीयों का हौसला तोड़ने को शहीदों के शरीर को इमली के पेड़ (अब गलशहीद कब्रिस्तान) पर लटका दिया था। 25 अप्रैल 1858 का दिन था, जब मज्जू खां को अंग्रेजों ने गोली से उड़ा दिया था। अंग्रेजी हुकूमत का खौफ भरने के लिए मज्जू खां के शव को चूने में डाला गया और हाथी के पांव में बांधकर मुरादाबाद की सड़कों पर घसीटा गया। फिर उनके शव को गलशहीद कब्रिस्तान में अंग्रेजों ने लावारिस तरीके से डाल दिया था।

पूर्व पाषर्द ने नगर आयुक्त से की है सौंदर्यीकरण की मांग 
पूर्व पार्षद सुहेल खां ने बताया कि नवाब मज्जू खां की मजार का सौंदर्यीकरण व गलशहीद चौराहा का फाउंटेन बनाने के संबंध में उन्होंने 19 जुलाई को नगर आयुक्त को मांग पत्र दिया है। इसमें थाना गलशहीद की पुलिया निर्माण, जिगर पार्क का सुंदरीकरण कराने की भी मांग उन्होंने कर रखी है लेकिन, अभी तक कोई कार्य प्रारंभ नहीं हो सका है।

परिवार को अभी तक नहीं पड़ी सरकारी सेवा की जरूरत 
नवाब मज्जू खां के परिवार की पांचवीं पीढ़ी के प्रपौत्र अदनान और उनके बड़े भाई अब्दुल रहमान, मां व बहन दिल्ली में ओखला जामिया में रहते हैं। अदनान ने बताया कि वह कंस्ट्रक्शन का काम करते हैं। मुरादाबाद आना बहुत कम हो पाता है। वैसे जब मुरादाबाद आते हैं तो दीवान का बाजार में बहेरिया में अपने घर रुकते हैं। अदनान ने बताया कि वह और उनका परिवार स्वतंत्रता संग्राम सेनानी का उत्तराधिकारी है लेकिन, उन्हें अभी तक सरकारी सेवा की जरूरत नहीं पड़ी। लेकिन, हां  दादा की मजार के सुंदरीकरण के लिए उन्होंने थोड़ा-बहुत कार्य कराया है। यहां के सौंदर्यीकरण के लिए 26 जनवरी को उन्होंने डीएम से जरूर मांग की थी। लेकिन, अभी मौके पर कुछ नहीं हुआ है। अदनान ने बताया कि चार दिन पहले फिर डीएम शैलेंद्र कुमार सिंह से मिलने का समय मांगा है तो अब उन्हें मुरादाबाद आना है। 

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