बरेली: अपने ही पैसों के लिए कुसुमलता को 36 साल से चक्कर कटवा रहा है बैंक

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Published By Moazzam Beg
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शिवांग पांडेय, बरेली, अमृत विचार। करीब 80 साल की बुजुर्ग कुसुमलता को इंडियन बैंक से अपना ही पैसा नहीं मिल रहा है। वह करीब 36 साल से भागदौड़ कर रही हैं, कोर्ट का दरवाजा भी खटखटा चुकी हैं लेकिन अब तक कामयाब नहीं हो सकी हैं। 

कुसुमलता ने 25 हजार रुपये की धनराशि का फिक्स डिपॉजिट 1978 में तत्कालीन इलाहाबाद बैंक में किया था जो अब इंडियन बैंक में मर्ज हो चुकी है। उनका कहना है कि पैसा जमा करते समय सोचा था कि बुरे समय में काम आएगा लेकिन बैंक ने उन्हें कोर्ट-कचहरी के चक्कर में उलझा दिया है। दावे के मुताबिक कुसुमलता की रकम अब 40 लाख से ऊपर हो चुकी है।

फरीदपुर में स्टेशन रोड पर रहने वाली कुसुम लता ने अपने पति की मृत्यु के दो साल बाद 1978 में 25 हजार रुपये का फिक्स डिपॉजिट था। इसकी मैच्योरिटी अवधि आठ साल थी और इसके बाद उन्हें 51 हजार 750 रुपये का भुगतान होना था। कुसुमलता बताती हैं कि फिक्स डिपॉजिट की अवधि पूरी होने के बाद 1986 वह बैंक से अपना पैसा लेने पहुंची तो तत्कालीन बैंककर्मियों ने टालमटोल करनी शुरू दी। उन्होंने बैंककर्मियों पर दबाव डालना शुरू किया तो उन्होंने उनसे एफडी का बांड लेकर उन्हें एक पर्ची दे दी। कहा, इसी पर्ची को दिखाकर भुगतान मिलेगा।

वह बैंक के चक्कर काटती रहीं, कुछ समय बाद पता चला कि बैंक शाखा में फर्जीवाड़ा किया गया है। जांच में सामने आया कि इस फर्जीवाड़े में उनके पैसे की हेराफेरी भी हुई है। बैंक शाखा में तैनात तीन कर्मचारियों के खिलाफ सीबीआई में केस दर्ज किया गया। कुसुमलता ने भी इस मामले में लखनऊ जाकर गवाही दी। उन्हीं की गवाही के आधार पर सीबीआई ने बैंक कर्मचारी वीरेंद्र नाथ मेहरोत्रा, कृष्ण नाथ टंडन और कालीचरन के खिलाफ दोष तय किया। तीनों को सजा भी मिली लेकिन फिर भी बैंक की ओर से भुगतान नहीं किया गया।

अदालत ने भुगतान का आदेश किया तो अपीलों में उलझा दिया मामला
कुसुमलता के बेटे अनिल तोमर ने बताया कि 1989 में उनकी मां ने मुकदमा कर दिया था, तीन साल बाद जिसका फैसला उनके पक्ष में हुआ। सिविल जज सीनियर डिविजन एससी मंगला ने आदेश दिया कि कुसुमलता की 51,750 रुपये की धनराशि पर भुगतान होने तक 10 प्रतिशत चक्रवृद्धि ब्याज देगा। मगर बैंक ने कोर्ट के आदेश को चुनौती देते हुए 13 जुलाई 1992 को अपील दायर कर दी। इसे भी कोर्ट ने खारिज कर दिया। 

इसके बाद बैंक की ओर से 23 जुलाई 1992 को दायर रेस्टोरेशन वाद को भी 28 जुलाई 1997 को खारिज कर दिया गया। इसी तरह यह मामला कानूनी दांव-पेच में उलझा रहा। इस बीच कोर्ट का आदेश मई 2013 में तत्कालीन शाखा प्रबंधक को तामील कराया गया। मगर भुगतान नहीं हुआ। अब सीनियर डिवीजन सिविल जज के कोर्ट में बुधवार को इस मामले में सुनवाई होनी है।

न्याय की दुहाई... 80 साल की उम्र का हवाला देकर भुगतान की फरियाद
बैंक से अदालत तक तमाम भागदौड़ के बाद भी न्याय न मिलने पर कुसुमलता ने जिला विधिक सेवा प्राधिकरण सचिव को पत्र लिखा है। इसमें कहा है कि उनकी उम्र 80 साल हो चुकी है। उन्हें शुगर, हाई ब्लड प्रेशर जैसी बीमारियां हैं। आंखों से दिखना भी कम हो गया है। उन्होंने फरियाद की है कि सिविल जज सीनियर डिवीजन के 11 मई 1992 के आदेश के मुताबिक जल्द उनकी धनराशि का भुगतान उनके खाते में कराकर न्याय दिलाया जाए।

यह मामला लंबे समय से कोर्ट में लंबित है। मेरी नौकरी से पहले का मामला है लिहाजा बहुत ज्यादा जानकारी मुझे नहीं है। - हरीश चंद्र, मैनेजर इंडियन बैंक कुतुबखाना शाखा

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