हल्द्वानी: राज्य बनने के बाद बदहाल हुई पहाड़ की LIfeline माने जाने वाली केमू बस सेवा, कई मार्गों पर बसों का संचालन बंद
हल्द्वानी, अमृत विचार। पर्वतीय मार्गों में लोगों को बेहतर यातायात सुविधा देने के लिए गठित कुमाऊं मोटर ऑनर्स यूनियन लिमिटेड (केमू) की हालत दिन प्रतिदिन खराब होती जा रही है। राज्य गठन के बाद भी बस सुविधा देने वाली इस प्रमुख कंपनी की हालत सुधारने के लिए ठोस उपाय नहीं किए गए हैं। हालत यह है कि देश की सबसे पुरानी ट्रांसपोर्ट कंपनी केमू की बस सेवाएं पहाड़ के कई प्रमुख रूटों पर बंद हो चुकी हैं।
पहाड़ के लोगों को बेहतर सुविधाएं मिलें इसके लिए पर्वतीय राज्य का गठन हुआ था। लेकिन अधिकांश क्षेत्रों में परिणाम निराशाजनक रहे हैं। कुमाऊं की प्रमुख निजी बस सेवा कंपनी केमू को ही देखें तो राज्य स्थापना के 23 साल बाद इसकी हालत और भी बदतर हो गई है।
राज्य स्थापना के बाद भी न तो केमू का बस बेड़ा बढ़ा और ना ही रूट बढ़े। कुमाऊं के घाट-पनार, अस्कोट, रानीखेत, टनकपुर सहित कई प्रमुख रूटों पर लंबे समय से केमू की बसें चलाने की मांग की जा रही है। लेकिन यूनियन की यह मांग आज तक पूरी नहीं हो पाई है।
केमू के अध्यक्ष सुरेश डसीला ने बताया कि टनकपुर में केमू के संचालन के लिए अनुमति मिल गई थी लेकिन देहरादून के किसी व्यक्ति ने गढ़वाल के किसी रूट पर केमू के संचालन के खिलाफ कोर्ट में याचिका लगा दी। कोर्ट से स्टे मिलने के कारण मामला लटका हुआ है। वहीं, किराया बढ़ाने को लेकर यूनियन लंबे समय से संघर्ष कर रही थी जो 1 साल पहले पूरी हो पाई। सुरेश ने बताया कि शासन-प्रशासन स्तर से प्रत्येक 6 माह बाद बैठक करने की बात की गई थी लेकिन इससे अधिक बीतने के बाद भी बैठक नहीं हुई।
बस बेड़ा घटने से कई रूटों पर बस संचालन बंद
नये रूटों पर केमू बसों के संचालन के बजाय पूर्व में जिन रूटों पर केमू बसें चलाई जा रही थी, वहां भी संचालन बंद कर दिया गया है। जिनमें लोहाघाट-चंपावत, मुनस्यारी, रीमा, सामा-भराड़ी, कपकोट-भराड़ी, बेरीनाग सहित कई अन्य प्रमुख रूट शामिल हैं। बस बेड़े की बात करें तो राज्य स्थापना के समय लगभग 450 केमू की बसें थी। वर्तमान में केमू की 250 बसों का संचालन होता है।
केमू का दायरा धारचूला, मुनस्यारी, ग्वालदम, झूलाघाट और पिंडारी ग्लेशियर तक है। 360 किमी. दूरी तक के रूट जिसमें रोडवेज की एक भी बस नहीं चलती, वहां भी केमू की बसों का संचालन होता है। केमू पहाड़ के लोगों के लिए यात्रा के सबसे सुगम माध्यम के तौर पर काम करती है लेकिन शासन-प्रशासन की संवेदनहीनता से केमू की स्थिति बदतर होती जा रही है।
80 साल पहले हुआ था केमू का गठन
आजादी से भी पहले साल 1943 में केमू की स्थापना हुई थी। देश आजाद होने व विकास की धारा आगे बढ़ने के साथ ही केमू का दायरा भी बढ़ता गया। उत्तर प्रदेश सरकार के समय केमू के लिए कई काम हुए। राज्य स्थापना के बाद सरकारों की संवेदनहीनता के कारण केमू बदहाली की ओर जाती रही।
राज्य स्थापना के बाद किसी भी सरकार ने केमू को सहयोग नहीं किया। शासन-प्रशासन से सहयोग मिलता तो केमू पर्वतीय मार्गों के लिये सबसे बड़े परिवहन सुविधा के तौर पर काम करती।
- सुरेश डसीला, अध्यक्ष, केमू
