फ्रैंच नागरिक माइकल हुए पंचतत्व में विलीन, हिंदू रिति रिवाज के साथ हुआ अंतिम संस्कार, फ्रांस जाएंगी अस्थियां
वाराणसी। वाराणसी के हरिश्चंद्र घाट पर काशी के समाजसेवी फ्रेंच नागरिक माइकल को अमन कबीर ने मुखाग्नि दी। हिंदू रीति रिवाज से अपने बाल भी मुंडवाए, मारकीन पहनकर गंगा स्नान किया। साथ ही घाट तक कंधा भी दिया। अब माइकल की अस्थियां फ्रांस भेजेंगे, जहां उनके परिजन रहते हैं। साथ ही अगले साल पितृपक्ष पर पिंडदान भी करेंगे। अमन ने कहा कि काशी में मोक्ष की चाह लिए माइकल बनारस आए थे। स्टमक कैंसर के लास्ट स्टेज में थे।
उन्होंने जीवन का अंत हिंदू धर्म शास्त्रों के आधार पर किया। मोक्ष की चाह लेकर वह 7300 किलोमीटर दूर फ्रांस के पेरिस से काशी आए माइकल की मौत 4 दिन पहले अपना घर आश्रम में हो गई थी। 2 दिन तक माइकल की बॉडी BHU ट्रॉमा सेंटर की मर्चुरी में ही रखी थी। 11 नवंबर को शाम तक शिवपुर में पोस्टमार्टम की प्रक्रिया चली।
इसके बाद वाराणसी के युवा समाज सेवी अमन कबीर अपने एंबुलेंस से लेकर हरिश्चंद्र घाट आए। अंतिम यात्रा के तौर पर कंधा दिया और फिर मुखाग्नि। बाकायदा, माइकल की शुद्धिकरण कर, सफेद मारकीन और चमकीले कफन से ओढ़ाकर, लकड़ी, चंदन और घी-अगरबत्ती आदि से विधि-विधान पूर्वक अंत्येष्टि की गई। साथ में माइकल की फ्रेंच सहयोगी एमी भी मौजूद रहीं।
बेसहारा अस्पताल में मिले थे माइकल
अमन ने कहा कि उनकी जिंदगी में यह अनोखा केस है। मंडलीय अस्पताल में बेसहारा पड़े माइकल को देख कुछ अलग सी फीलिंग आई। जब बातचीत की तो पता चला कि वो मोक्ष के लिए वाराणसी आए हैं। लेकिन 10 दिन से अस्पताल के एक बेड पर पड़े हैं। इससे पहले वो 10 दिन एक गेस्ट हाउस में रहे क्योंकि विदेशी होने के चलते उन्हें किसी मुमुक्ष भवन में जगह नहीं मिली।
अमन ने कहा कि अस्पताल में देखरेख से लेकर माइकल का पूरा ध्यान रखा गया। उनके जीवन के अंतिम 8 दिन काफी शांति से गुजरे। दरअसल, प्रशासन से गुहार लगाने के बाद माइकल को अपना घर आश्रम में रहने को मिल गया। लेकिन, यहां पर 8वें दिन उन्होंने दम तोड़ दिया।
नॉवेल में पढ़ी थी हैवेन की बात
पेरिस के माइकल स्टमक कैंसर के लास्ट स्टेज में थे। जब उन्हें इस बात का पता चला तो वे इसी साल अक्टूबर में वाराणसी आ गए। उन्होंने किसी नॉवेल में ये बात पढ़ी थी कि ' इफ यू डाई इन काशी, यू गेट हैवेन'। जीवन के नर्क से मुक्ति मिल जाएगी। माइकल ने शादी तो नहीं की, लेकिन बाकी का अपना पूरा परिवार छोड़कर पेरिस से वाराणसी आ गए।
लेकिन, काशी में मोक्ष भी इतना आराम से नहीं मिलता। एक विदेशी नागरिक होने के चलते काशी के किसी मुमुक्षु भवन में इन्हें पनाह नहीं मिला। कोई ये जिम्मेदारी नहीं लेना चाहता था। एंबेसी को भी चैनल नहीं बनाया। मजबूरन, माइकल को एक गेस्ट हाउस में रहना पड़ा। 10 दिन बाद काफी बीमार पड़े और कमरे में ही बेहोश होकर गिर पड़े। गेस्ट हाउस मालिक गोपाल झा ने पुलिस बुलाकर कबीरचाैरा स्थित मंडलीय अस्पताल में भर्ती करा दिया। इसके बाद उन्हें उनके हाल पर छोड़ दिया गया।
10 दिन तक बेड पर ही सिमटे रहे माइकल
माइकल 10 दिन तक अस्पताल के एक बेड पर ही 2 नॉवेल के साथ सिमटे रहे। डॉक्टर समय-समय पर दवा दे जाते थे। ऐसे समय में अस्पताल पहुंचे समाजसेवी अमन कबीर ने देखा कि माइकल ने बेड पर ही शौच कर दिया है। पहले उसे साफ कराया, फिर डाइपर पहनाया। इसके बाद खाने-पीने को कुछ दिया।
माइकल का तिथिवार घटनाक्रम
- 8 अक्टूबर - फ्रांस के पेरिस से वाराणसी आए। 3 दिन तक भटकते रहे, जगह नहीं मिली तो फिर गेस्ट हाउस में लिया कमरा।
- 21 अक्टूबर - तबियत बिगड़ने पर वाराणसी के कबीरचौरा अस्पताल में भर्ती कराए गए।
- 1 नवंबर - वाराणसी के कमिश्नर और पुलिस ने अपना घर आश्रम में कमरा दिलवाया।
- 3 नवंबर - फ्रेंच नागरिक से मिलने पहुंची फ्रांस के एंबेसी की टीम।
- 8 नवंबर - सामने घाट स्थित अपना घर आश्रम में सुबह 8 बजे माइकल की मौत हो गई।
- 11 नवंबर - माइकल के शव का पोस्टमॉर्टम और मुखाग्नि दी गई।
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