इलाहाबाद हाईकोर्ट: अंतरिम आदेश के खिलाफ पुनरीक्षण याचिका सुनवाई योग्य
प्रयागराज। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने भरण- पोषण के एक मामले में अपनी महत्वपूर्ण टिप्पणी में कहा कि सीआरपीसी की धारा 125(1) के तहत पारित आदेश को अंतरिम आदेश नहीं कहा जा सकता है, क्योंकि यह आवेदन के लंबित रहने के दौरान अंतरिम भरण पोषण देने के अधिकारों का निर्णय करता है। अतः उक्त धारा के अंतर्गत पारित अंतरिम या अंतिम आदेश के खिलाफ आपराधिक पुनरीक्षण का उपाय उपलब्ध है।
उक्त आदेश न्यायमूर्ति पंकज भाटिया की एकलपीठ ने श्रीमती अंजना मुखोपाध्याय की याचिका पर सुनवाई करते हुए पारित किया। कोर्ट ने मामले के गुण-दोष के आधार पर यह सुनिश्चित किया कि अपर प्रधान न्यायाधीश, परिवार न्यायालय, गौतमबुद्ध नगर द्वारा दिया गया अंतरिम भरण-पोषण अपर्याप्त है।
चूंकि पति की आय एक लाख प्रतिमाह से अधिक है, इसलिए उन्हें प्राप्त राशि का 25% तक अंतरिम रखरखाव के रूप में देना होगा, साथ ही कोर्ट ने विपक्षी को पत्नी का स्वास्थ्य कार्ड नवीनीकृत कराने का भी निर्देश दिया जो जीवन साथी होने के नाते पत्नी को सैन्य अधिकारी से मुफ्त चिकित्सा उपचार का अधिकार देता है। मामले के अनुसार संशोधनवादी (पत्नी) बतौर शिक्षिका एक निजी संस्था में कार्यरत होने के साथ-साथ ट्यूशन भी करती थी।
कोविड के बाद वह बीमारी से पीड़ित होने के कारण ट्यूशन जारी नहीं रख सकी जबकि विपक्षी (पति) एक सेवानिवृत्त सेना अधिकारी है, जिसकी पेंशन 1,50,000 रुपए प्रतिमाह से अधिक है। अपर प्रधान न्यायाधीश, परिवार न्यायालय, गौतमबुद्ध नगर ने सीआरपीसी की धारा 125(1) के तहत 15,000 प्रति माह का अंतरिम भरण-पोषण प्रदान करने का अंतरिम आदेश पारित किया था, जिसे वर्तमान पुनरीक्षण याचिका के माध्यम से हाईकोर्ट में चुनौती दी गई।
याचिका का विरोध करते हुए विपक्षी के अधिवक्ता ने तर्क दिया कि इसी न्यायालय के पूर्ववर्ती आदेशों के अनुसार अंतरिम भरण-पोषण देने के लिए सीआरपीसी की धारा के अंतर्गत पारित आदेश एक अंतरिम आदेश है और इसके खिलाफ आपराधिक पुनरीक्षण बरकरार रखने योग्य नहीं है, लेकिन कोर्ट ने इस तर्क को अमान्य करार देते हुए अंतरिम आदेश के खिलाफ पुनरीक्षण को सुनवाई योग्य माना।
