मोक्षदा एकादशी पर भगवान वराह का रखें उपवास, जानें पूजन-विधि

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Published By Vikas Babu
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मोक्षदा एकादशी विधि-विधान से पूजन अर्चन की ज्योतिषाचार्य ने दी सलाह

सोरोंजी, अमृत विचार। सभी व्रतों में खास एकादशी व्रत में मोक्षदा एकादशी का खास महत्व है। मार्गशीर्ष माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को लेकर इस बार असमंजस है। कुछ लोग शुक्रवार को एकादशी बता रहे हैं तो कुछ लोग शनिवार को शुभ मुहूर्त बता रहे है। ज्योतिषाचार्य ने भी शनिवार को ही विधि-विधान पूर्वक पूजन अर्चन की सलाह दी है। तीर्थ नगरी सोरों में पहुंचकर यहां पूजा का महत्व बताया है। 

आदितीर्थ शूकरक्षेत्र धाम, सोरों जी के पुराणेतिहासाचार्य राहुल वाशिष्ठ ने बताया कि ब्रह्मांडपुराण के अनुसार मोह का क्षय करने वाली एकादशी ही मोक्षदा एकादशी कही जाती है। मोह का क्षय होने पर ही प्राणी को मोक्ष प्राप्त होता है। यह मार्गशीर्ष शुक्ल एकादशी मोह का क्षय करने वाली है। मोक्ष की कामना रखने वाले मनुष्यों को विधानानुसार मोक्षदा एकादशी का व्रत रखना चाहिए। 

मार्गशीर्ष शुक्ल दशमी को मध्याह्न में जौ की रोटी और मूँग की दाल का एकबार भोजन करके एकादशी को प्रातः शूकरक्षेत्र सोरों जी स्थित हरि की पैड़ी कुंड में स्नानादि करके उपवास रखें। भगवान् वराह और भगवती पृथिवी का यथोपचार पूजन करें तदोपरांत शूकरक्षेत्र की पंचकोसी परिक्रमा करने का विधान है, जिसे करने से मनुष्य सातद्वीपों वाली पृथिवी की परिक्रमा का फल प्राप्त करता है। उसके बाद रात्रिजागरण करके द्वादशी को एकभुक्त पारण करें। 

वाराहपुराण के अनुसार सतयुग में इसी दिन भगवान् वराह ने संतान की कामना रखने वाले सूर्यदेव को सूकरक्षेत्र में गीता सुनाई थी, जिसके श्रवण फल से सूर्यदेव को यम और यमुना नामक दो संतानें प्राप्त हुईं। द्वापरयुग में इसी दिन भगवान् कृष्ण ने अर्जुन को कुरुक्षेत्र में गीता सुनाई थी। अतः इस दिन गीता जयंती का उत्सव मनाना चाहिए। इस वर्ष की मोक्षदा एकादशी ‘त्रिस्पृशा है, जोकि महाफल प्रदायक है। यह ‘त्रिस्पृशा’ धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष चारों पुरुषार्थों को देने वाली है।

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