कासगंज: सोरों मेले की पहचान, नारंगी और खजला, बिकती है सिर्फ मेले के दौरान तीर्थ नगरी में
दूसरे राज्यों से आने वाला यह फल बना लोगों की पसंद
कासगंज, सोरोंजी अमृत विचार : नारंगी फल की उत्पत्ति दक्षिणी चीन , पूर्वोत्तर भारत और म्यांमार, पंजाब के क्षेत्र में हुई। लेकिन कासगंज जिले के लोगों की नारंगी पसंद बनी हुई है। तीर्थनगरी सोरों के मेले में नारंगी अलग पहचान बनाए हुए हैं और खजला की भी अपनी अलग पहचान है। इस मेले में वर्ष में सिर्फ एक बार ही नारंगीं पहुंचती है और जब तक मेला चलता है। जमकर इसकी बिक्री होती है। यह फल लोगों की पसंद बना हुआ है।
उत्तर भारत की प्रसिद्ध तीर्थ नगरी सोरों में लगने वाले मेले की पहचान खजला और नारंगी से होती है। दूर दराज से खजला और नारंगी के कारोबारी इस मेले में पहुंचते हैं। इस बार भी खजला नारंगी की बिक्री जमकर हो रही है। नारंगी वर्ष में सिर्फ मार्गशीर्ष मेले में ही बिकने के लिए लाई जाती है। सोरों के मार्गशीर्ष मेले में लगीं खजले की दुकानों पर खरीदारों की खासी भीड़ है। यहां बता दें कि मार्गशीर्ष मेले में खजले की दर्जनों दुकानें लगाई गई है।
यह दुकानें परंपरागत रूप से मेले के अवसर पर ही लगाई जाती हैं। इसके अलावा धार्मिक नगरी सोरों के पारंपरिक मार्गशीर्ष मेले में तरह-तरह के खान-पान के स्टाल लगाए जाते हैं, उन स्टालों में नारंगी का स्टाल अनूठा होता है। नारंगी ही एक ऐसा फल है जो इस क्षेत्र में केवल मार्गशीर्ष मेले पर बिकने के लिए आता है।
प्रतिकूल मौसम के बावजूद भी लोग इस फल की जमकर खरीदारी करते हैं और इसकी सर्वाधिक बिक्री होती है। महंगाई के बावजूद भी नारंगी अधिक महंगी नहीं बिकती। वर्तमान में मेले में नारंगी 15 से से 20 रुपए प्रति किलो तक बिक रही है। इस तरह सोरों में लगने वाला पारंपरिक मेला खजला और नारंगी के लिए अपनी अलग पहचान रखता है।
क्या बोले व्यापारी: - पंजाब से नारंगी लेकर आते हैं। नारंगी ठंडा फल होता है, लेकिन सर्दी के मौसम में यह लोगों की पसंद होता है। सोरों में मेले वर्ष में एक बार आते हैं। - अकरम, नारंगी विक्रेता
नारंगी एक अच्छा फल है। इसकी सोरों मेले में बिक्री अच्छी होती है। यह अपने यहां पैदा नहीं होती है। बाहर लाते हैं। महंगाई में भी इसकी दर कम रहती है। - अनीस, नारंगी विक्रेता
ये भी पढ़ें -गंगा नदी में होगी डॉल्फिन की तलाश, पानी बनेंगे घरौंदे, अलीगढ़ से कासगंज तक जगह जगह लगाए जाएंगे वॉच टॉवर
