रायबरेली: सर्द रात में मुंशी प्रेमचंद्र के 'हलकू' खेत पर काट रहे रात
छुट्टा मवेशियों ने किसानों को कर रखा परेशान
प्रदीप गुप्ता, सलोन, रायबरेली। हिंदी के प्रसिद्ध उपन्यासकार मुंशी प्रेमचन्द्र की कहानी पूस की रात का मुख्य किरदार हल्कू आज भी गांवों में जीवित है और इस कड़ाके की ठंड में भी खेत की रखवाली करने को विवश है। मुंशी प्रेमचंद ने पूस की रात कहानी करीब सौ साल पहले सन 1921 में लिखी थी। उस दौर में कृषि और किसानों की स्थिति को जानने समझने के लिए यह एक दुर्लभ कहानी थी। मुंशी प्रेमचंद के रचनाकाल और मौजूदा दौर में किसानों की स्थिति का तुलनात्मक अध्ययन किया जाए तो एक बात तो स्पष्ट हो जाएगी कि किसानों के लिए स्थितियां आजादी के बाद बहुत अच्छी नहीं हुई हैं। किसानों की इस समय क्या हालत है इसकी लाइव तस्वीर तो यही बयां करती हैं कि सर्दी की रात उनके लिए मुसीबत सरीखी है। मजबूरी जो न कराए वह छोड़ा है।

सलोन क्षेत्र के किसान निराश्रित पशुओं से अपनी फसलों को बचाने के लिए खेतों में सर्द रात काटने को मजबूर हैं। गेंहू मटर और आलू की फसलों को इन निराश्रित पशुओं से सबसे अधिक नुकसान है।सलोन तहसील में बैठे साहब की तरफ से बड़े बड़े दावे किए जा रहे हैं कि निराश्रित पशुओं को आश्रय दिया जा रहा है, लेकिन धरातल की हकीकत कुछ अलग ही बयां कर रही है।पूस की रात में हल्कू की हकीकत जानने निकले हमारे अमृत विचार टीम के समवाददाता को पूरे विशेषन गांव के किसान हरिपाल से पत्रकार ने पूंछा की दादा इतनी रात में घर मे क्यो नही सोते,जवाब मिला की साहब घर मे सोने जायेगे तो सुबह खेत सूना हो जाएगा।

मटका गांव में 5 डिग्री सर्द रात में किसान श्यामजी अपने खेतों में आग के सहारे बैठे फसलों की रखवाली करते नजर आये। खेत में जैसे ही कोई आहट होती है तो हो...हो... हई... हई... की आवाज देकर के आवारा पशुओं को दौड़ाते हैं।इसी तरह पूरे डीगुर निवासी किसान माता प्रसाद कड़ाके की ठंड में पूरी रात खुले आसमान के नीचे ठिठुरते कांपते नजर आए।रात जागने की वजह बताते हुए कहते है कि घर पर सोएंगे तो फसल से राम-राम हो जायेगी। छुट्टा गाय-बछड़े और साड़ और नीलगाय अन्न का एक दाना भी नहीं छोड़ेंगे। फसल बचानी है तो इसी सर्दी में रातों को जागना पड़ेगा।ये कहानी एक किसान की नहीं बल्कि उनके आस-पड़ोस में ऐसे सैकड़ो किसान हैं जो अपनी फसलों की रखवाली के लिए खेत में टार्च की रोशनी के सहारे रात बिताने को मजबूर हैं।
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