Ram Mandir : बकरियों के बीच गुजारी 22 लोगों ने रात, कोठारी बंधु भी थे साथ, जानिये गोली खाने वाले संजय कुमार की कहानी

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Published By Virendra Pandey
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वीरेंद्र पाण्डेय/लखनऊ, अमृत विचार। साल 1990 में 30 अक्टूबर की रात माझे (सरयू नदी का किनारा) में एक फूस की कोठरी में 22 लोगों ने रात गुजारी थी। यह सभी लोग देश के अलग- अलग इलाकों से आये हुये कारसेवक थे, जो अयोध्या में प्रवेश करने की राह में सुबह होने का इंतजार कर रहे थे।  इन कारसेवकों में बाबरी पर भगवा फहराने वाले कोठारी बंधु भी साथ थे। जिस कोठरी में हम लोग रुके थे। उसमें बकरियों को रखा जाता था। यह बातें आरएसएस के इतिहास विभाग के सह-संगठन मंत्री संजय कुमार ने केजीएमयू में आयोजित खिचड़ी भोज में चिकित्सकों को संबोधित करते हुये कहीं। मकर संक्रांति के अवसर पर खिचड़ी भोज का आयोजन धनवंतरी सेवा केंद्र की तरफ से किया गया था।

संजय कुमार ने बताया कि कारसेवा के लिए लाखों कारसेवक अयोध्या पहुंचे थे। वहीं दूसरी तरफ अयोध्या को सुरक्षाबालों ने घेर रखा था। जिससे कोई अन्दर प्रवेश न कर सके, लेकिन पहले से यह तय हुआ था कि जो भी कारसेवका अयोध्या पहुंचेगा। वह रात के समय जहां जगह मिले वहीं छुप जायेगा। हमलोग भी माझे में बकरियों के लिए बनी कोठरी में छुपे हुये थे। वहीं खिचड़ी बनाई और खाई गई। सभी लोग सुबह अयोध्या में प्रवेश के लिए इंतजार करने लगे।

पीएसी की बस बनी मददगार

संजय कुमार ने बताया कि कारसेवा के लिए पहले से यह तय हुआ था कि सुबह 9 बजे शंख बजाया जायेगा। उसकी आवाज सुनने के बाद ही सभी कारसेवक विवादित ढांचे की तरफ बढ़ेंगे। सुबह 9 बजे जो कारसेवक जहां पर छुपा हुआ था वह अपनी-अपनी जगह से निकल कर विवादित ढांच के तरफ बढ़ चला। हमलोग महंत रामदास के नेतृत्व में आगे बढ़ रहे थे, लेकिन कोई रास्ता नहीं सूझ रहा था। तभी एक पीएसी की बस आकर रुकी। हमारे बीच एक साधू ने बस के ड्राइवर को ड्राइवर सीट से हटाया और बस चलाने लगा। बस में करीब 200 लोग सवार हो गये और बस बैरिकेडिंग को तोड़ते हुये विवादित ढांचे तक पहुंच गई। इस दौरान भारी जनसमूह भी बस के पीछे-पीछे चलता हुआ पहुंच गया था। इस दौरान सुरक्षाबलों ने लाठी चार्ज कर रखी थी, फायरिंग भी हो रही थी।

गोली लगी और लगा स्वर्ग पहुंच गये

संजय कुमार बताते हैं कि सुबह 11 बजे हमलोग विवादित ढांचे पर भगवा फहरा चुके थे, लेकिन तभी एक रबर की गोली मुझे लगी और मैं नीचे आ गिरा। मुझे लगा मेरा काम खत्म हो गया। जब मुझे होश आया तो लगा स्वर्ग में हूं,लेकिन मैं जीवित था। उन्होंने बताया कि इस सेवाकार्य में ही 2 नवंबर को शरद कोठारी और राम कुमार कोठारी को लालकोठी के पास गोली मार दी गई।

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