प्रयागराज : फर्जीवाड़ा करने वाले सहायक अध्यापकों पर लगाया 5 हजार का जुर्माना

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Published By Jagat Mishra
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प्रयागराज, अमृत विचार। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने वर्ष 2018 में बेसिक शिक्षा विभाग द्वारा  68500 सहायक अध्यापकों की भर्ती परीक्षा में अनियमितता के मामले में कहा कि निष्पक्षता किसी भी प्रतियोगी परीक्षा की आत्मा है। योग्यता के साथ कोई भी समझौता मेधावी उम्मीदवारों के विश्वास को हिला देता है और अगर परीक्षा प्रक्रिया में कुछ अनियमितता मिलती है तो न्याय के हित में तथा निष्पक्षता बनाए रखने के लिए उसे ठीक करने का प्रयास करना चाहिए। उक्त टिप्पणी न्यायमूर्ति सौरभ श्याम शमशेरी की पीठ ने उर्वशी व अन्य की याचिका को खारिज करते हुए याचियों को पांच हजार रुपए का जुर्माना उच्च न्यायालय कानूनी सेवा समिति के पक्ष में जमा करने का निर्देश दिया है। 

कोर्ट ने आगे कहा के मेधावी उम्मीदवारों की कीमत पर कम मेधावी उम्मीदवारों को सेवा में बने रहने की अनुमति नहीं है और निष्पक्षता बनाए रखने के लिए विभाग द्वारा अपनाई गई प्रक्रिया को अवैध नहीं कहा जा सकता है। दरअसल याचियों को सितंबर 2018 में परीक्षा परिणाम के आधार पर सहायक अध्यापक के पद पर नियुक्त किया गया था और 1 वर्ष बाद यानी सितंबर 2019 में शासनादेश के तहत उन्हें सेवा से बर्खास्त कर दिया गया था। जिसे वर्तमान याचिका में चुनौती दी गई है। 

मामले के अनुसार याचियों की उत्तर पुस्तिका और पुनर्मूल्यांकन तथा सारणीबद्ध चार्ट में अलग-अलग अंक प्रदान किए गए। याचियों के खिलाफ प्राथमिकी भी दर्ज की गई थी, हालांकि जांच का कोई परिणाम रिकॉर्ड में उपलब्ध नहीं है। कोर्ट ने मामले के तथ्यों को देखते हुए निष्कर्ष निकाला कि याचियों को अनुचित लाभ पहुंचाने के उद्देश्य से बड़े स्तर पर धोखाधड़ी की गई है। उत्तर पुस्तिकाओं का प्रथम मूल्यांकन और पुनर्मूल्यांकन दोनों असंगत है।

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