Behmai Kand: डकैत फूलन देवी ने 20 लोगों की लाइन से गोली मारकर की थी हत्या... इतने साल बाद आया फैसला, पढ़ें- पूरा मामला

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Published By Nitesh Mishra
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कानपुर देहात में डकैत फूलन देवी ने 20 लोगों की लाइन से गोली मारकर की थी हत्या

कानपुर देहात, अमृत विचार। बेहमई कांड में वादी रहे राजाराम ने फूलन देवी समेत 35 डकैतों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कराई थी। वर्ष 2012 में फूलन देवी, भीखा, पोसा, विश्वनाथ, श्यामबाबू व राम सिंह पर आरोप तय किए गए थे। मामले की सुनवाई विशेष न्यायाधीश दस्यु प्रभावित अदालत में चल रही थी। हत्याकांड के 43 साल पूरे होने पर 14 फरवरी को बरसी पर बेहमई कांड का फैसला आ गया।

पोसा को कभी नहीं मिली जमानत

बचाव पक्ष के अधिवक्ता गिरीश नारायण दुबे ने बताया कि बेहमई कांड में जितने भी आरोपी थे। उसमे विश्वनाथ, भीखा व श्यामबाबू को जमानत मिली थी। बाद में भीखा की मौत हो गई। जिसमे आरोपी विश्वनाथ व श्यामबाबू अधिक उम्र के हैं। वहीं पोसा को पकड़े जाने के बाद कभी भी जमानत नहीं मिली। पूर्व में उसकी भी बीमारी के चलते मौत हो चुकी है।

फैसले के बाद भी तीन आरोपी रहे फरार

बेहमई कांड के आरोपी रहे भीखा, श्यामबाबू, विश्वनाथ उर्फ पूतानी को जमानत मिली थी। बुधवार को आए फैसलने में श्यामबाबू को सजा सुनाई गई है। जबकि नामजद डकैत विश्वनाथ उर्फ अशोक व रामकेश अभी तक फरार हैं। वहीं गवाही के दौरान अभियोजन के पत्र पर मान सिंह को भी आरोपी बनाया गया था। तब से वह भी फरार रहा।

बेहमई कांड 1

बेहमई कांड के वादी राजाराम व गवाह जंटर की रहेगी कमी

बेहमई नरसंहार के गवाह व मुकदमे के वादी राजाराम सिंह की 13 दिसंबर 2020 को बीमारी के चलते मौत हो चुकी है। राजाराम 40 सालों तक मुकदमे की पैरवी करते रहे। उनके पुत्र रामकेश सिंह उर्फ खिल्लन ने बताया कि नरसंहार कांड के बाद उनके पिता ने गांव के बाहर स्मारक स्थल बनवाया था। वहीं 14 फरवरी 1981 को बेहमई नरसंहार का मंजर देखने वाले घटना के चश्मदीद गवाह जंटर सिंह की भी 21 अक्तूबर 2021 को लंबी बीमारी के चलते मौत हो चुकी है। बेहमई कांड की बरसी व आए फैसलने पर राजाराम व जंटर की कमीं जरूर रही।

क्या था बेहमई कांड

राजपुर थाना थाना क्षेत्र के यमुना किनारे बसे बेहमई गांव में 14 फरवरी 1981 को डकैत फूलन देवी ने लाइन से खड़ा करके 20 लोगों की गोली मारकर हत्या कर दी थी। मरने वाले सभी ठाकुर थे। इस घटना के बाद देश व विदेश में इस घटना की चर्चा थी। कई विदेशी मीडिया ने भी जिले में डेरा डाला लिया था और जब सारा ज़िला इस घटना से कांप रहा था। तब बेहमई के ही राजाराम मुकदमा लिखावाने के लिए आगे आए थे। उन्होंने फूलन देवी और मुस्तकीम समेत 14 को नामजद कराते हुए 35 डकैतों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराया था, लेकिन पूरे देश को दहला देने वाला बेहमई कांड लचर पैरवी और कानूनी दांव पेंच में ऐसा उलझा कि 43 साल बाद पीड़ितों को न्याय मिल सका।

फैसले पर बोले अधिवक्ता

बेहमई हत्याकांड में 43 साल बाद आया निर्णय इस बात को चरितार्थ करता है कि न्याय में विलंब न्याय से इंकार है। इस वीभत्स हत्याकांड ने देश ही नहीं, बल्कि विश्व को हिलाकर रख दिया था। इसके बाद भी वादी ने हिम्मत जुटाकर दोषियों के विरुद्ध मुकदमा लिखाया, लेकिन आरोपियों ने न्यायालय दर न्यायालय देश के कानून और दूषित राजनैतिक व्यवस्था का सहारा लेकर मुकदमे को निर्णय तक पहुंचने में दांवपेंच के बाड़ लगाए।- जितेंद्र प्रताप सिंह चौहान वरिष्ठ अधिवक्ता माती कचेहरी

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