Kanpur News: तीन ड्रेस लेना जरूरी...निजी स्कूल बता रहे दुकानों का नाम, वहीं से खरीदना जरूरी

कानपुर में निजी स्कूलों में बच्चों के लिए तीन यूनीफॉर्म खरीदना जरूरी

Kanpur News: तीन ड्रेस लेना जरूरी...निजी स्कूल बता रहे दुकानों का नाम, वहीं से खरीदना जरूरी

कानपुर, अमृत विचार। नए सत्र के शुरू होते ही अभिभावक परेशान हो गए हैं। निजी स्कूलों की ओर से अभिभावकों को कॉपी किताबों की लिस्ट और दुकान का नाम सौंप दिया गया है जहां मनमाने दाम पर सामान दिया जा रहा है। और तो और बच्चों के लिए तीन यूनीफॉर्म लेनी पड़ रही हैं। 

अचानक से यूनीफॉर्म के लोगो ‘बैज’ बदल जाने से ड्रेस की खरीद अभिभावकों के लिए मजबूरी बन गई है। इस खेल में शहर के सभी निजी स्कूल शामिल हैं।अभिभावकों ने बताया कि स्कूलों में बच्चों को तीन तरह की ड्रेस सामान्य, क्लास के ‘हाउस’ व योगा व स्पोर्ट्स की ड्रेस लेनी पड़ रही है। दो या तीन तरह के जूते भी खरीदने पड़ रहे हैं। यदि वे शिकायत विभाग में करते हैं तो उनके बच्चे के भविष्य के साथ खिलवाड़ हो सकता है। 

24 घंटे के भीतर किताबें

हाल ही में किदवई नगर स्थित मर्सी मेमोरियल स्कूल में अभिभावकों ने किताबों की लिस्ट मांगी थी। स्कूल की ओर से लिस्ट तो उपलब्ध करा दी गई है लेकिन इसके बावजूद भी अभिभावकों को 24 घंटे के भीतर किताबें लेकर बच्चों को स्कूल आने का नियम भी बताया गया है। अभिभावकों को स्कूल की ओर से बताई गई दुकान से किताबें खरीदना मजबूरी बन गया है। 

बाजार से महंगी किताबें

अभिभावकों का निजी स्कूलों पर यह भी आरोप है कि निश्चित पब्लिकेशर की किताबें बाजार से अधिक मूल्य पर मिलती हैं। वहीं एनसीईआरटी की कक्षा 6 की सभी किताबें 16 सौ रुपये के आस-पास बाजार में उपलब्ध हैं जो महंगे पब्लिशर की 45 सौ रुपये से 6 हजार रुपये तक के मूल्य के मुकाबले काफी कम हैं। बावजूद इसके उन्हें महंगी किताबों को खरीदना पड़ता है।

20 फीसदी फीस में इजाफा

अभिभावकों ने यह भी बताया कि निजी स्कूलों की ओर से हर कक्षा की लगभग बीस फीसदी फीस का इजाफा हुआ है। कक्षा 5 की जो फीस पिछले वर्ष 73 सौ रुपये के आस-पास थी वह अब बढ़कर 88 सौ रुपये के आस-पास पहुंच गई है।

कोई भी निजी स्कूल अभिभावकों को स्कूल व चयनित दुकानों से सामान खरीदने के लिए बाध्य नहीं कर सकता। यदि स्कूल ऐसा कर रहे हैं तो उन्हें शिक्षा विभाग में इसकी शिकायत करनी चाहिए। स्कूलों के खिलाफ नियामानुसार कार्रवाई की जाएगी।- अरुण कुमार, जिला विद्यालय निरीक्षक 

निजी स्कूलों को मनमानी की आदत हो गई है। लोग चाह कर भी उनका विरोध नहीं कर सकते हैं। यदि वे ऐसा करते हैं तो उनके बच्चे का भविष्य सामने आ जाता है। कुछ दिन पहले मैने विरोध किया था तो सभी अभिभावकों को उसका फायदा हुआ। स्कूल को लिस्ट देनी पड़ी।- अमित श्रीवास्तव

स्कूल शिक्षा का मंदिर कम अब दुकान ज्यादा हो गए हैं। कपड़ों से लेकर किताबें तक, सब स्कूल की बताई दुकानों से खरीदना अभिभावकों की मजबूरी बन गया है। हर साल किताबे बदल दी जाती हैं। अभिभावकों को नए सिरे से सब खरीदना ही होगा।- धीरज श्रीवास्तव

ड्रेस में हर साल थोड़ा सा बदलाव स्कूल की ओर से कर दिया जाता है। इससे अभिभावकों को हर साल नई ड्रेस खरीदनी पड़ती है। इसके अलावा स्कूलों में होने वाले रंगारंग कार्यक्रमों में भी स्कूलों की बताई दुकानों से ही कपड़े और सामग्रियां खरीदनी होती हैं।- विनय मिश्रा

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