प्रयागराज: लंबित मुकदमे के तथ्यों को छिपाकर याचिका दाखिल करने पर लगाया 25 हजार रुपए का जुर्माना

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Published By Virendra Pandey
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प्रयागराज, अमृत विचार। इलाहाबाद हाईकोर्ट में लंबित मुकदमे के तथ्यों को छिपाकर जनहित याचिका दाखिल करने वाले याची को कोर्ट के साथ आंखमिचौली करना तब भारी पड़ गया, जब उसके इस कृत्य के कारण कोर्ट ने उस पर 25 हजार रुपए का जुर्माना लगा दिया। 

दरअसल याची ने अधिकारियों द्वारा पूर्व में पारित विध्वंस आदेश के अनुपालन की मांग करते हुए जनहित याचिका दाखिल की, जिसमें उसने बताया कि विचाराधीन भूमि पार्क थी, जहां विपक्षियों द्वारा निर्माण किया गया है। याची ने कोर्ट को यह भी बताया कि भले ही विध्वंस आदेश पारित किया गया था, लेकिन इसे बहुत लंबे समय से लागू नहीं किया गया है, जबकि विपक्षियों ने कोर्ट के समक्ष तथ्य प्रस्तुत करते हुए बताया कि विचाराधीन भूमि उनके नाम पर दर्ज है और उनके नाम पर भूमि दर्ज किए जाने के खिलाफ याची ने विभिन्न स्तरों पर आवेदन किया जिन्हें खारिज कर दिया गया, इसके बाद याची ने हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की, जो लंबित है। विपक्षियों ने कोर्ट को यह भी बताया कि याची ने लंबित मुकदमे के तथ्यों को छिपाकर वर्तमान जनहित याचिका दाखिल की है। 

कोर्ट ने याची से जब इस विषय में पूछा तो उसने बताया कि वह अलग भूमि है जबकि अभिलेख से कुछ अलग तथ्य ही सामने आते हैं। कपटपूर्ण उद्देश्य के साथ रामसूरत द्वारा दाखिल जनहित याचिका को मुख्य न्यायाधीश अरुण भंसाली और न्यायमूर्ति विकास बुधवार की खंडपीठ ने यह कहते हुए खारिज कर दिया कि मौजूदा याचिका का उपयोग उस आदेश के कार्यान्वयन की मांग करने के लिए किया जा रहा है, जिसके विरुद्ध अपील लंबित है और सक्षम न्यायालय द्वारा पहले ही आदेश पारित किए जा चुके हैं। निश्चित रूप से याची का उक्त आचरण स्वीकार्य नहीं है।

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