बाराबंकी की तराई बेल्ट में बुढ़वल शुगर मिल बना बड़ा चुनावी मुद्दा, कई सरकारें आईं और गईं, लेकिन मतदाताओं को मिले सिर्फ वादे
विवेक शुक्ला/रामनगर, बाराबंकी, अमृत विचार। विश्व प्रसिद्ध महादेव की धरती रामनगर की तराई बेल्ट में दशकों से बंद पड़ी बुढ़वल शुगर मिल हर चुनाव में बड़ा मुद्दा बनकर उभरता रहा है। तमाम सरकारें आईं और चली गईं, लेकिन बुढ़वल चीनी मिल को शुरू कराने के नाम पर जनता के हाथ सिर्फ वादे लगे। इस लोकसभा चुनाव में एक बार फिर बुढ़वल चीनी मिल का मुद्दा रामनगर व यहां की तराई बेल्ट के मतदाताओं ने उठाया है।
इस बात को लेकर लोगों में बेहद नाराजगी भी देखी जा रही है। क्योंकि बीते कई चनावों से लगातार बड़े नेताओं के द्वारा शुगर मिल को चलाये जाने का ऐलान किया गया। विगत वित्तीय वर्ष में अनपुरक बजट पास किए जाने की घोषणा के बावजूद मिल का ना चलना इस क्षेत्र में भाजपा के गले की फांस बना हुआ है। ऐसे में इस लोकसभा चुनाव में भी यह मुद्दा भाजपा के सामना के सामने बड़ी मुसीबत खड़ी कर सकता है।
साल 1930 में कानपुर के एक व्यवसायी द्वारा बुढ़वल शुगर मिल की स्थापना की गई थी। मिल की पेराई क्षमता प्रतिदिन 50 हजार कुंतल तथा चीनी उत्पादन 5 हजार कुंतल थी। मिल से लगभग एक हजार लोगों को रोजगार भी मिला था। रामनगर क्षेत्र के हजारों गन्ना किसानों को इसका सीधा लाभ मिलता था। मिल कई वर्षों तक मुनाफे में रही, लेकिन चीनी निगम में अधिग्रहित होने के चलते वर्ष 2007 से मिल फायदे के बजाय घाटे की तरफ जाने लगी।
नतीजा यह रहा की साल 2013 में यहा ताला लग गया।
जिसके चलते क्षेत्र के हजारों लोग बेरोजगार हो गए व गन्ना किसानों का भी भारी नुकसान हुआ। साल 1990 में सपा सरकार बनने पर चीनी मिल के विस्तारीकरण के नाम पर कई दर्जन किसानों की लगभग 85 एकड़ भूमि शासन द्वारा अधिग्रहित कर ली गई। मौजूदा मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने बुढ़वल आकर एक समारोह में मिल के विस्तारीकरण व मिल चलाए जाने की घोषणा की और हवन पूजन के बाद विस्तारीकरण का शिलापट्ट भी लगवा दिया।
मिल के विस्तारीकरण के लिए तमाम निर्माण सामग्री भी परिसर में आ गयी। जिससे क्षेत्र के लोगो मे खुशी की लहर दौड़ गयी। लेकिन लोगों की यह खुशी ज्यादा दिन तक टिक नहीं पाई, पूरा सामान उठकर कहीं और चला गया और मिल चालू होने का काम अधर में रह गया। वर्ष 2007 में बसपा सरकार बनने पर तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती ने इस बंद पड़ी चीनी मिल के कारखाने को ओने पौने दामों में नीलाम करवा दिया।
उसके बाद 2017 के विधानसभा चुनाव की जनसभा में योगी आदित्यनाथ ने घोषणा करते हुए कहा कि प्रत्याशी जीतने व सरकार बनते ही चीनी मिल की चिमनी से धुआं निकलेगा। प्रत्याशी भी जीता और सरकार भी बनी, लेकिन कार्यकाल पूर्ण हो जाने के बाद भी मिल चालू नहीं हुई। 2022 के विधानसभा चुनाव की जनसभा में भी सीएम योगी ने दोबारा मिल को चालू करवाने का वादा यहां की जनता से किया।
फिर सरकार बनी और अन्नपूरक बजट में चीनी मिल चालू करने के लिए 50 करोड़ रूपये देने की घोषणा भी की गई। कुछ दिनों के बाद प्रशासन द्वारा मिल के विस्तारीकरण के लिए अधिग्रहित की गई भूमि के चारों ओर खंभे व तार लगाकर जमीन सुरक्षित की गई। यह देख लोगो में फिर खुशी की लहर दौड़ी। लोगों ने माना मिल अब हर हाल में चलेगी।
लेकिन महीनों बीत जाने के बाद जब कोई निर्माण कार्य शुरू नहीं हुआ, तो क्षेत्रीय लोगों ने जनसूचना के द्वारा विभागीय अधिकारियों से बजट के बारे में जानकारी की। तब पता चला कि मिल चलाने के लिए कोई भी बजट नहीं मिला है। इस बात पर क्षेत्रीय लोगों में काफी आक्रोश व्याप्त हो गया।
अब चुनाव में जनमानस में जोरों पर चर्चा है कि तमाम वादों व घोषणाओं के बाद भी मिल चालू न होने का खामियाजा भाजपा को भुगतना ही पड़ेगा। लोगों का कहना है कि जब बस्ती की बंद पड़ी मुंडेरवा चीनी मिल व छाता मथुरा की बंद चीनी मिल प्रदेश सरकार द्वारा चालू कर दी गई है। तो अब तक यहां की क्यों नहीं।
हेतमापुर गांव के पास सरयू नदी पर पुल निर्माण किए जाने का आश्वासन भी चुनावी मुद्दा बना है। क्षेत्रीय लोगों का कहना है कि अगर इस पुल का निर्माण हों जाता तो उन्हें कई किलोमीटर की दूरी कम तय करनी पड़े। इसके अलावा आवागमन भी आसान हो जाए।
इसे लेकर नेताओं ने जनता से वादे तो बहुत किये लेकिन धरातल पर उतारने का उनका भागीरथ प्रयास अधूरा रहा। इस बात को लेकर स्थानीय स्तर पर आम मतदाओं में सत्ता पक्ष के प्रति नाराजगी साफ देखी जा रही है। इस नाराजगी का असर लोकसभा चुनाव में कितना पड़ेगा। यह तो समय ही बताएगा। लेकिन एक बात तय है कि इस चुनाव में नाताओं की वादाखिलाफी के चलते यहां के लोगों में आक्रोश बहुत है।
ग्राम बिछलखा निवासी रमाशंकर का कहना है कि बुढ़वल चीनी मिल क्षेत्र में एक बार फिर बड़ा चुनावी मुद्दा बनकर खड़ा हुआ है। तमाम वादों के बाद भी आज तक मिल शुरू नही हुई है। ऐसे में हम लोग सरकार की बात और जनप्रतिनिधियों के आश्वासन पर विश्वास कैसे करें। चचरी निवासी रविंद्र का कहना है कि पहले हम लोग गन्ने की फसल पैदाकर अच्छी रकम पैदा करते थे। जबसे मिल बंद हुई।
क्षेत्र के किसानों में मायूसी छाई है। तमाम सरकारे आईं और वादा करके चली गईं, लेकिन मिल आज तक बंद पड़ी है। वहीं बिछलखा निवासी भवानी शंकर का कहना है कि क्षेत्र में मिल बड़ा चुनावी मुद्दा है। यदि मिल शुरू हो जाए तो लोगों को रोजगार मिलेगा। क्योंकि सालों से मिल बंद होने के चलते यहां के गन्ना किसानों को काफी समस्याएं हो रही हैं।
वहीं हेतमापुर सुंदर नगर निवासी ओमकार राजपूत और सूरतगंज के मनीष गुप्ता का कहना है कि अगर सरयू नदी पर पुल बन जाए तो बहराइच की कई किलोमीटर दूरी कम हो सकती है। इसके लिए जनप्रतिनिधियों से ग्रामीणों ने सैकड़ों बार मांग की लेकिन सिर्फ आश्वासन ही मिला।
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