Kanpur: बड़े-बड़ों ने टांग खींचकर भोले को छकाया फिर भी जीते, अपनों ने बनाई दूरी, इन 2 क्षेत्रों के मतदाताओं ने बचाया...

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Published By Deepak Shukla
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कानपुर, अमृत विचार। अकबरपुर संसदीय सीट पर इस बार भाजपा को कड़े मुकाबले का सामना करना पड़ा। पार्टी उम्मीदवार देवेंद्र सिंह भोले भले ही चुनाव जीत गए पर उन्हें तीन विधानसभा क्षेत्रों में उनके अपनों ने ही खूब छकाया। भोले को घाटमपुर, बिठूर और अकबरपुर- रनिया में नुकसान हुआ पर महाराजपुर और कल्याणपुर विधानसभा क्षेत्रों के मतदाताओं ने बचाया। 

अकबरपुर- रनिया में भितरघात से पिछड़े 

अकबरपुर- रनिया विधानसभा क्षेत्र में देवेंद्र सिंह भोले इंडिया गठबंधन के उम्मीदवार राजाराम पाल से पिछड़े। यहां उन्हें भितरघात का भी जबरदस्त सामना करना पड़ा। कहा जा रहा है कि यहां दलित मतदाताओं के साथ ही ब्राह्मण मतदाता भी सपा के राजाराम पाल के साथ गए। 

इस वजह से यहां भोले को मात्र 79046 मतों से संतोष करना पड़ा, जबकि पाल ने 108489 मत पाकर भोले पर जबरदस्त बढ़त बनाई। 2017 और 2022 में इस विधानसभा सीट से जीत दर्ज करने वाली भाजपा को 2022 के विधानसभा चुनाव के मुकाबले भी कम वोट मिले। अकबरपुर सीट पर पूर्व सांसद अनिल शुक्ल वारसी भी टिकट के दावेदार थे तो भोले से उनकी दूरी किसी से भी नहीं छिपी है।

महाना के क्षेत्र में तय हुई जीत 

देवेंद्र सिंह भोले की जीत की इबारत महाराजपुर विधानसभा क्षेत्र में लिखी गई। इस क्षेत्र से विधानसभा अध्यक्ष सतीश महाना विधायक हैं और यहां न तो भोले को किसी भितरघात का सामना करना पड़ा और न ही क्षेत्रीय विधायक की दूरी का। महाना के साथ ने भोले को यहां मजबूत किया और उन्होंने 142358 वोट पाकर राजाराम पाल से 48670 मतों से आगे निकल गए। पाल को यहां 93688 मत मिले। भोले को यहां मिले जबरदस्त वोट ने पूरे चुनाव का पासा पलट दिया। हालांकि 2022 के विधानसभा चुनाव के मुकाबले यहां भोले को कम वोट मिले हैं। तब महाना को यहां से 1.52 लाख वोट मिले थे।

विधायक की नाराजगी परेशानी का सबब बनी 

घाटमपुर विधानसभा से मौजूदा विधायक सरोज कुरील भाजपा के सहयोगी दल अपना दल सोनेलाल के टिकट पर जीतीं थीं। बताते हैं कि उनकी भोले से नाराजगी पुरानी है। ऐसे में चर्चा है कि विधायक और उनके समर्थकों ने भोले के लिए कुछ खास प्रचार नहीं किया। इस विधानसभा से गठबंधन उम्मीदवार राजाराम को 18946 मतों से बढ़त मिली। भाजपा को 74951 वोट मिले, जबकि राजाराम को 93897 मत मिले। हालांकि यहां की बढ़त को पाल कल्याणपुर और महाराजपुर में बरकरार नहीं रख सके। भोले को यहां भी विधानसभा चुनाव के मुकाबले कम वोट मिले। 

शहरी मतदाता बने बड़ा सहारा 

कल्याणपुर विधानसभा को भाजपा का गढ़ भी कहा जाता है। 2012 के चुनाव को छोड़ दें तो लगातार यहां से भाजपा ही जीत रही है। ऐसे में यहां के मतदाताओं ने भाजपा का साथ लोकसभा चुनाव में भी नहीं छोड़ा। कल्याणपुर विधानसभा में शहरी मतदाताओं की संख्या ज्यादा है। अगर इस सीट पर भोले को मिले मतों को देखें तो शहरी क्षेत्र में आते ही भोले ने एक अच्छी लीड बनाई। यहां भोले को 114672 और गठबंधन उम्मीदवार राजाराम को 60066 वोट मिले। यहां और महाराजपुर में मिली बढ़त का लाभ भोले को हुआ और वे जीत गए। 

बिठूर में भितरघात से पिछड़े 

इस विधानसभा क्षेत्र में भाजपा को गठबंधन उम्मीदवार से 10397 वोट कम मिले। ऐसा तब है, जब इस सीट पर मौजूदा विधायक भाजपा से हैं। वे 2017 में भी जीते थे। इसके पीछे भाजपाई भितरघात की बात कह रहे हैं। कहा जा रहा है कि भोले का नामांकन होने के बाद तक क्षेत्रीय विधायक अभिजीत सिंह सांगा उनसे दूरी बनाए रखे। जुबानी जंग भी जारी रही। जब इस मुद्दे पर चर्चा तेज हुई तो अचानक सांगा ने बेमन मंच साझा किया पर इसका लाभ यहां भोले को नहीं मिला। नतीजा यह हुआ कि विधानसभा क्षेत्र में गठबंधन उम्मीदवार राजाराम पाल आगे रहे।   

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