WORLD ELDER ABUSE AWARENESS DAY: आंखों को बच्चों की तलाश, यादों के सहारे जी रहे जिंदगी
लखनऊ, अमृत विचारः दिखावा लोगों की पहचान बन गया है। हर कोई चेहरे पर चेहरा लगा के घूम रहा है। जब तक काम है सिर्फ तब तक ही एक दूसरे का साथ है। कुछ ऐसा ही आजकल के बिजी युवा बच्चे अपने माता-पिता के साथ कर रहे हैं। जिन माता-पिता ने उंगली पकड़कर चलना सिखाया, कुछ भी कहने से पहले दुनिया की हर खुशियां देने की कोशिश दी, पढ़ा-लिखाकर बड़ा किया और हर वो चीज करने की कोशिश की जिससे उनका बच्चा अपने कदमों पर खड़े हो सके आगे बढ़ सके, लेकिन आज उन्हीं मां-बाप को बच्चों ने बेसहारा छोड़ दिया। जिस उम्र में मां-बाप को अपने बच्चों के प्यार और सहारे की सबसे ज्यादा जरूरत थी उस उम्र में वे ओल्ड एज होम में रहने को मजबूर हैं। कुछ ऐसे ही बुजुर्गों से अमृत विचार रिपोर्टर ने बात की, तो उन्होंने अपना दर्द बयां किया।
यादों के सहारे ही जी रहे
ओल्ड एज होम में रह रहे कई बुजुर्ग से बात कि तो उन्होंने अपनी दर्द भरी कहानी सुनाई तो कई लोगों ने चुप्पी साध ली। एक ऐसी ही महिला ने अपना नाम प्रकाशित न करने पर बताया कि उन्हें घर की बहुत याद आती है, लेकिन शरीर का निचला हिस्सा पैरालाइज होने की वजह से वे घर वालों के लिए एक बोझ बन गई थीं. ऐसे में उनका ख्याल करने वाला कोई नहीं था। उनके कोई बेटा नहीं है बस एक लड़की और दमाद है। बेटी भी कुछ समय से बीमार थी। वह भी उनका ख्याल नहीं रख पा रही थी। इस लिए उन्हें वृद्ध आश्रम भेज दिया। बच्चों की याद आने पर उन्हें कॉल कर लेती हूं। वो घर जिसमें उम्र गुजारी कभी सोचा नहीं था कि उसे ऐसे छोड़ना पड़ेगा। वहीं एक और महिला से बात कि तो उनकी आंखों में बच्चों से दूर होने का दर्द झलक रहा था। उन्होंने कहा कि बच्चों के पास मेरे लिए टाइम ही नहीं है। वे सब मुझे भूल गए हैं। न ही कोई कॉल करता है और न ही कभी मिलने आता है। ऐसे में बस इस वृद्ध आश्रम का ही सहारा है। जिसने मेरा पूरा ख्याल रखा हुआ है। यह सब बताते वक्त उस महिला की आंखों में आंसू झलकने लगे।
नहीं जाना चाहते हैं वापस
अपना घर आश्रम के कोऑर्डिनेटर राजेंद्र अग्रवाल ने बताया कि आजकल लोग एक-दूसरे की सुनना कम पसंद करते हैं और धीरे-धीरे ज्वाइंट फैमली की जगह न्यूक्लियर फैमली ले रही है। बच्चों को माता-पिता का टोकना अच्छा नहीं लगता है। हमारे यहां 30 प्रतिशत ऐसे लोग हैं जिनके बच्चे उन्हें लेने नहीं आते है। हम लोग उन्हें संपर्क करने का प्रयास करते हैं तो वे अपनी ओर से रिस्पॉन्स देना बंद कर देते हैं।
अब्यूज सिर्फ फिजिकल नहीं होता
हैप्पी पेरेंट्स होम की संचालिका इंदिरा तालुकदार ने बताया कि उनके पास कई बार ऐसी कॉल आते हैं जिसमें लोग उनसे मदद मांग रहे होते है साथ ही पास रखने के लिए कह रहे होते हैं। ऐसे में उन्होंने बताया कि वे संबंधित लोगों को पुलिस की मदद लेकर उनकी मदद करती हैं। एक उम्र के बाद माता-पिता बच्चों की श्रेणी में जाते हैं। जहां उन्हें उसी प्यार और केयर की जरूरत होती है, जो वो अपने बच्चों को बचपन में देते थे, लेकिन बच्चे आजकल अपने सिवा किसी की सुनते कहां हैं। वे बस अपने हिसाब से चलते हैं। जिन लोगों के पास पैसा है वो पैसा देकर किसी न किसी आश्रम या फिर घर पर केयर टेकर लगा लेते हैं। वहीं कुछ लोग ऐसे भी होते हैं, जिनके पास पैसे नहीं होते हैं और वो अपने माता-पिता के बोलने या डिमांड के चक्कर में उग्र हो जाते हैं। उनसे अभद्र भाषा का प्रयोग करते हैं, उनपर फिजिकली वायलेंट हो जाते है. इसके साथ ही मानसिक रूप से माता हो या पिता को प्रताड़ित करते हैं। लोग अपने माता-पिता की सुनना ही नहीं चाह रहे हैं।
इसके साथ ही उन्होंने बताया कि उनके पास कुछ समय पहले एक केस आया था जहां दो बहनों को उनका भतीजा उनके पास छोड़ कर चला गया। ताकी दोनो का अच्छे से ख्याल रखा जा सके। फिर एक महीने बाद वो गायब हो गया कुछ महिनों तक उसकी कुछ तलाश की गई. जिससे उन महिलाओं को उसके सुपूर्द किया जा सके। काफी तलाश के बाद वह मिल भी गया और दोनो महिलाओं को उसे सौंप दिया गया। उन्होंने बताया कि उनका ओल्ड एज होम पेड है जहां जो बच्चे अपने माता-पिता को टाइम नहीं दे पाते। ऐसे में वे उन्हें प्रॉपर केयर और हर वो सुविदा मोहिया कराती है जिसकी उन्हें जरूरत है। इंदिरा ने बताया कि अभी उनके पास 20 वृद्ध रह रहे हैं।
बुजुर्गों के साथ दुर्व्यवहार को संबोधित करना
साल 2019 और 2030 के बीच 60 साल या उससे ज्यादा उम्र के व्यक्तियों की संख्या 38 प्रतिशत से बढ़कर 1 बिलियन से 1.4 बिलियन तक हो सकती है। यह वैश्विक स्तर पर युवाओं की संख्या से काफी अधिक है। जैसे-जैसे साल आगे बढ़ रहा है, वैसे-वैसे ओल्ड एज होम की संख्या भी बढ़ रही है। बुजुर्गों के साथ दुर्व्यवहार की समस्या बढ़ती ही जा रही है, फिर चाहे वो विकसित देश हो या विकासशील देश सबमें आम ही हो गई है। कई बार माता-पिता इसकी शिकायत अपने बच्चों की चाह में कम ही करते हैं और कई बार चुपचाप सह भी लेते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, निया भर में लगभग 16 फीसदी बुजुर्ग लोग दुर्व्यवहार के शिकार हैं। उनकी चिंता करने वाला कोई है ही नहीं। बुजुर्ग होने पर बच्चो के लिए मापा-पिता बोझ बन जाते हैं।
