प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट का बड़ा फैसला, दुर्भावना से प्रेरित कार्रवाई की जा सकती है रद्द

प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट का बड़ा फैसला, दुर्भावना से प्रेरित कार्रवाई की जा सकती है रद्द

प्रयागराज, अमृत विचार। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने एक महत्वपूर्ण आदेश में कहा कि एक ही तथ्य के आधार पर कई कार्यवाहियों को आगे नहीं बढ़ाया जा सकता है और अगर यह स्पष्ट हो कि दुर्भावना से प्रेरित होकर और केवल आरोपियों को परेशान करने के लिए कार्रवाई शुरू की गई है तो उन्हें रद्द भी किया जा सकता है। उक्त आदेश न्यायमूर्ति सौरभ श्याम शमशेरी की एकलपीठ ने प्रेमनाथ मिश्रा और दो अन्य की याचिका पर सुनवाई करते हुए एसीजेएम, जौनपुर द्वारा आईपीसी की विभिन्न धाराओं के तहत थाना जाफराबाद, जौनपुर में दर्ज मामले में पारित आदेश को रद्द कर दिया और मामला संबंधित ट्रायल कोर्ट को वापस भेज दिया, जिससे शिकायतकर्ता द्वारा गैर-संज्ञेय अपराध पर दर्ज एनसीआर में दाखिल चार्जशीट के बारे में तथ्य और सीआरपीसी की धारा 2(डी) के तहत आदेश को देखते हुए एक नया आदेश पारित किया जा सके।

दरअसल, मामले में शिकायतकर्ता ने पहले ही एक एनसीआर दर्ज की थी, जिसमें जांच के बाद गैर-संज्ञेय अपराध के लिए आरोप पत्र दाखिल किया गया और ट्रायल कोर्ट ने सीआरपीसी की धारा 2(डी) के तहत एक शिकायत का मामला माना। शिकायतकर्ता ने एनसीआर के तथ्यों का खुलासा करते हुए एक आपराधिक शिकायत दर्ज की कि आवेदकों ने संज्ञेय अपराध किया है और ट्रायल कोर्ट ने सीआरपीसी की धारा 200 और 202 के बयान पर विचार करने के बाद आक्षेपित आदेश के तहत आईपीसी की धाराओं के अंतर्गत अपराध के लिए समन जारी कर दिया। इस पर कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए कहा कि तथ्यों के समान रूप के साथ-साथ  आरोपों और कार्रवाई के भी समान होने पर पुलिस रिपोर्ट और शिकायत मामले की कार्रवाई एक साथ आगे नहीं बढ़ सकती है और अगर ऐसा होता है तो यह असहाय वादियों को परेशान करने जैसा तथा कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग होगा।

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