जीडीपी वृद्धि में कमी

जीडीपी वृद्धि में कमी

भारतीय अर्थव्यवस्था ने पिछले दशक में बड़ी वृद्धि प्रदर्शित की है, जहां यह विश्व स्तर पर 10वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था से आगे बढ़ती हुई 5वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गई है। हालांकि कृषि समेत कई क्षेत्रों में समान रूप से प्रगति नहीं हुई है। सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की रफ्तार 15 महीने में सबसे कम, 2024-25 की पहली तिमाही में 6.7 फीसदी रही। जबकि  जीडीपी पिछले वित्त वर्ष 2023-24 की पहली तिमाही में 8. 2 फीसदी से दर से बढ़ी थी।

कहा जा सकता है कि वास्तविक आंकड़े निराशाजनक हैं और आर्थिक रफ्तार में गिरावट का संकेत देते हैं। शनिवार को रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास ने कहा कि लोकसभा चुनाव 2024 के चलते आचार संहिता के लागू रहने से पहली तिमाही के दौरान सरकारी खर्च पर असर पड़ा। आचार संहिता के चलते सार्वजनिक खर्च में कमी आई, जिसका असर पहली तिमाही के आर्थिक आंकड़ों पर पड़ा। इससे पहले सरकार के मुख्य आर्थिक सलाहकार भी जीडीपी ग्रोथ रेट कम होने के लिए चुनाव को जिम्मेदार बता चुके हैं। महत्वपूर्ण है कि निजी उपभोग व्यय बढ़कर 7.4 फीसदी के छह-तिमाही के उच्चतम स्तर पर पहुंच गया है, जिसकी आंशिक वजह हेडलाइन मुद्रास्फीति में कमी है। 

भारत अभी भी इस साल 6.5 फीसदी से सात फीसदी तक की दर से विकास कर सकता है, लेकिन आशंका है कि 2025-26 में विकास दर घटकर 6.5 फीसदी रह जाएगी और मध्यम अवधि की संभावनाएं भी इसी आंकड़े के आसपास रहेगी। मानसून के अच्छा रहने से इसमें भी सुधार की उम्मीद है। कुल मिलाकर आने वाली तिमाहियों में आर्थिक वृद्धि दर सुधरने की उम्मीद है। शोध संस्थान ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव (जीटीआरआई) ने यह जानकारी दी कि भारत को कच्चे तेल और कोयले के आयात से होने वाले व्यापार घाटे के बारे में चिंता करने की जरूरत नहीं है।

देश को औद्योगिक वस्तुओं के आयात को कम करने पर ध्यान देना चाहिए। भारत के आर्थिक सुधार और विकास को लेकर शुरू किए गए कार्यक्रम की गति को बनाए रखने के लिए सरकार की ओर से प्रयास किए जा रहे हैं, ताकि 2047 तक भारत को विकसित राष्ट्र बनाने के लिए काम तेजी से हो सके। आर्थिक नीति में भारत के आर्थिक परिदृश्य में आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देना शामिल है। भारतीय अर्थव्यवस्था को ऊपर उठाने के लिए सरकार को निवेश वृद्धि पुनरुद्धार को प्राथमिकता देनी चाहिए। नीति निर्माताओं को अर्थव्यवस्था के सभी पहलुओं में तत्काल सार्थक सुधार करने और इसके संस्थानों की दक्षता में सुधार करने की जरूरत है।