अगले चरण की ओर

अगले चरण की ओर

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी बुधवार को ब्रुनेई की अपनी पहली द्विपक्षीय यात्रा समाप्त करने के बाद दक्षिण पूर्वी एशियाई राष्ट्र सिंगापुर पहुंचे। व्यापार और निवेश के लिहाज से प्रधानमंत्री का सिंगापुर दौरा काफी अहम है। सिंगापुर दुनिया भर में भारत का छठा सबसे बड़ा व्यापार भागीदार और पिछले वित्तीय वर्ष के दौरान एफडीआई का सबसे बड़ा स्रोत है। पिछले साल सिंगापुर से एफडीआई 11.77 बिलियन डॉलर था। प्रधानमंत्री करीब छह साल बाद सिंगापुर गए हैं।

सिंगापुर की उनकी आखिरी यात्रा प्रधानमंत्री के रूप में उनके पहले कार्यकाल में थी। उनके तीसरे कार्यकाल के दौरान की यात्रा का सिंगापुर ने विशेष रूप से स्वागत किया है। प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि वे सिंगापुर के साथ विशेष रूप से उन्नत विनिर्माण, डिजिटलीकरण और सतत विकास के नए एवं उभरते क्षेत्रों में रणनीतिक साझेदारी को गहरा करने के उपायों पर बातचीत को लेकर उत्सुक हैं। दो दिवसीय यात्रा का उद्देश्य सिंगापुर के साथ रणनीतिक साझेदारी को गहरा करना और निवेश आकर्षित करना है।

2015 में, भारत और सिंगापुर ने रणनीतिक साझेदारी पर हस्ताक्षर किए। अब लगभग एक दशक हो गया है, दोनों देश व्यापक रणनीतिक साझेदारी में हुई प्रगति की समीक्षा करके संबंधों को अधिक उन्नत करने की दिशा में आगे बढ़ेंगे। आसियान देशों के साथ भारत का मुक्त व्यापार समझौता है और उस पर समीक्षा चल रही है। महत्वपूर्ण है कि आसियान के साथ संबंधों के आर्थिक पहलुओं पर चर्चा के लिए सिंगापुर हमारा समन्वयक है। भारत उत्सुक है कि 2025 तक उस समीक्षा को समाप्त कर ले। इस मुद्दे की दृष्टि से भी यात्रा को महत्वपूर्ण माना जा रहा है।

गौरतलब है कि सिंगापुर वैश्विक सेमीकंडक्टर पारिस्थितिकी तंत्र में अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। इस क्षेत्र में उसका 20 वर्षों से अधिक का अनुभव है। यह एक ऐसा क्षेत्र है जहां भारत प्रवेश करने के लिए उत्सुक है। दोनों प्रधानमंत्री सेमीकंडक्टर विनिर्माण केंद्र का दौरा करेंगे। सेमीकंडक्टर क्षेत्र में जनशक्ति कौशल की दिशा में सहयोग के लिए समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए जाएंगे। उम्मीद है कि इस यात्रा से इस विशेष क्षेत्र को वास्तव में बल मिलेगा।

सिंगापुर और भारत के सेमीकंडक्टर पारिस्थितिकी तंत्र में तालमेल बढ़ेगा। कुल मिलाकर भारत और सिंगापुर के संबंध पिछले 10-15 वर्षों में आगे बढ़े हैं। यह रिश्ता अगले चरण की ओर बढ़ रहा है। क्योंकि दोनों देश अब द्विपक्षीय सहयोग के क्षेत्रों की पहचान करने के अगले स्तर पर चले गए हैं, चाहें वह खाद्य सुरक्षा, नवीकरणीय ऊर्जा, हरित हाइड्रोजन, अर्धचालक में हो। ये सभी ऐसे क्षेत्र हैं जहां वास्तव में दोनों देश एक दूसरे के पूरक हो सकते हैं।

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