इलाहाबाद हाईकोर्ट का बड़ा फैसला, बरेली नगर निगम की अधिसूचित उपविधि को किया निरस्त
विधि निर्माण में बरेली नगर निगम ने नियमों का नहीं किया था पालन
प्रयागराज, अमृत विचार। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने नगर निगम, बरेली द्वारा निर्धारित अधिनियम के अनिवार्य प्रावधानों का उल्लंघन करते हुए उपविधि 2020 अधिसूचित किए जाने के मामले में कहा कि जब किसी कानून में किसी कार्य को करने का एक विशेष तरीका बताया जाता है तो उस कार्य को उसी तरीके से किया जाना चाहिए या बिल्कुल नहीं किया जाना चाहिए।
हाईकोर्ट ने कहा है कि वर्तमान मामले में उपविधि बनाने तथा लागू करने की शक्ति विशुद्ध विधायी कार्य है। इस प्रत्यायोजित विधि निर्माण कार्य में विधानमंडल ने यह पूर्व निर्धारित कर रखा है कि नगर निगम सबसे पहले प्रस्तावित उपविधि पर आपत्तियां आमंत्रित करे और यह भी निर्धारित किया गया है कि आपत्तियां किस प्रकार आमंत्रित की जा सकती हैं तथा उपविधि लागू होने से पहले उन पर विचार करना अनिवार्य बताया गया है, लेकिन नगर निगम के अधिवक्ता ने रिकॉर्ड पर ऐसा कोई दस्तावेज उपलब्ध नहीं कराया, जिससे यह सिद्ध होता हो कि उपविधि पर आपत्तियां आमंत्रित की गई थीं और उठाई गई आपत्तियों पर विचार किया गया था।
इसके अलावा इस संबंध में सरकारी राजपत्र में कोई नोटिस प्रकाशित नहीं किया गया। अधिनियम की धारा 543(ए) के अनुसार ना तो कोई राजपत्र प्रकाशित किया गया और ना ही समाचार पत्र में वह तिथि निर्दिष्ट की गई, जिसके बाद नगर निगम द्वारा उपविधि पर विचार किया जाना था। आधिकारिक राजपत्र में प्रकाशित न होने के कारण पूरी कार्यवाही अवैध मानी जाती है। दरअसल नगर निगम, बरेली द्वारा विज्ञापन उपविधि 2020 नगर निगम अधिनियम, 1959 के विरुद्ध जाकर निगम के पूर्व अधिकारियों में मनमाने ढंग से आपत्तियों की सुनवाई किए बिना अधिसूचित कर ली और शासन से गजट कराकर लागू भी कर दी, जिसे वर्तमान याचिका में चुनौती दी गई है, जिस पर कोर्ट ने सुनवाई करते हुए स्पष्ट किया कि नगर निगम द्वारा उपविधि बनाने में उचित प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया है। कोर्ट ने नगर निगम को यह भी निर्देश दिया कि अधिनियम का अनुपालन करते हुए नई विज्ञापन उपविधि बनाई जाए। उक्त आदेश न्यायमूर्ति सौमित्र दयाल सिंह और न्यायमूर्ति डोनाडी रमेश की खंडपीठ ने ए ए आर पब्लिसिटी और सात अन्य की याचिका को स्वीकार करते हुए पारित किया।
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