क्षमा करना और मांगना दोनों ही सर्वश्रेष्ठ : दिगंबर जैन मंदिर में सम्पन्न हुआ पर्युषण पर्व

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Published By Vinay Shukla
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बाराबंकी, अमृत विचार । कस्बे के श्री पार्श्वनाथ दिगम्बर जैन मंदिर में पर्युषण पर्व की समाप्ति व क्षमावाणी पर्व  भक्त प्रभवना पूर्वक मनाया गया। श्री जी का पंचामृत अभिषेक व भक्त मई धुनों के साथ चौबीसी विधान की पूजा का समापन हुआ।

जैन मंदिर में भगवान पार्श्वनाथ का पंचामृत अभिषेक शांतिधारा, आरती व क्षमावाणी की पूजन की गई। उसके बाद जयमाल का कार्यक्रम आयोजित किया गया। इस अवसर पर प्रवचन करते हुए चिंतक इंद्र कुमार जैन ने कहा कि भगवान महावीर ने कहा था क्षमा वीरस्य भूषणम। अर्थात क्षमा बीरो का आभूषण है। क्षमा करना व क्षमा मांगना दोनों ही सर्वश्रेष्ठ होते है। जैन धर्म में पुरातन से चली आ रही परम्परा आज भी जीवंत है। हम सभी भाद्रपद के महीने में पर्युषण पर्व मनाते हैं। जिसमे अनेक पर्व आते है। जैसे दसलक्षण धर्म, रत्नात्रय आदि है।

पूरे माह हम सभी धर्म प्रभवना पूर्वक भगवान की आराधना करते हैं। आज हम सभी क्षमावाणी पर्व मना रहे हैं। जिसमें पूजा के बाद सभी एक दूसरे के गले मिलकर जाने अन्जाने में हुई गलतियों की क्षमायाचना करते हैं। इससे जहां आपस के गिले शिकवे दूर होते हैं। वहीं समाज में एकता आती है। शाम को गुरुबन्दना व दस, पांच,तीन व दो दिनों तक लगातार उपवास करने वाले भक्तों को समाज द्वारा पुरुस्कार देकर सम्मानित किया गया। जैन समाज अध्यक्ष सचिन जैन ने बताया कि गुरुवार को बेलहरा के जैन मंदिर में क्षमावाड़ी पर्व मनाया जायेगा।

 

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