हाईकोर्ट का कड़ा निर्देश: कहा- तारीख पर तारीख की संस्कृति पर अंकुश लगाना जरूरी
प्रयागराज, अमृत विचार। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बलिया की एक अदालत में पिछले 7 वर्षों से लंबित एक शिकायत मामले में संबंधित मजिस्ट्रेट को उचित आदेश पारित करने का निर्देश देते हुए कहा कि न्याय के उद्देश्यों को सुरक्षित करने और 'तारीख पर तारीख' की संस्कृति पर अंकुश लगाने के लिए संबंधित मजिस्ट्रेट को ऐसा निर्देश देना आवश्यक है।
कोर्ट ने पाया कि वर्तमान मामले को कई बार सूचीबद्ध किये जाने और याची के अधिवक्ता द्वारा स्थगन की मांग न किये जाने के बावजूद शिकायत मामले पर कोई आदेश पारित नहीं किया गया। अतः कोर्ट ने इस आवेदन का निस्तारण इस निर्देश के साथ किया कि अगली तारीख पर संबंधित मजिस्ट्रेट याची के अधिवक्ता के तर्कों को सुनने के बाद एक सप्ताह के भीतर सीआरपीसी की धारा 203 या 204 के तहत उचित आदेश पारित करेंगे। इस मामले को 'न्याय का उपहास' करार देते हुए न्यायालय ने संबंधित मजिस्ट्रेट को उपरोक्त निर्देश जारी किया। इसके साथ ही कोर्ट ने संबंधित जिला न्यायाधीश को अनुपालन रिपोर्ट और इस संदर्भ में जानकारी तलब की कि वर्तमान मामले में इतनी देरी क्यों हुई।
यह आदेश न्यायमूर्ति सौरभ श्याम शमशेरी की एकलपीठ ने अंजनी कुमार यादव द्वारा सीआरपीसी की धारा 482 के तहत दाखिल याचिका पर सुनवाई करते हुए पारित किया। मामले के अनुसार याची (शिकायतकर्ता) ने 24 अप्रैल, 2017 को सिविल जज (सीनियर डिवीजन)/फास्ट ट्रैक कोर्ट, बलिया की न्यायालय में सीआरपीसी की धारा 156 (3) के तहत एक आवेदन दाखिल किया था। शिकायत दर्ज होने के बाद से इस मामले में 50 से अधिक तारीखें सूचीबद्ध हो चुकी हैं, लेकिन अभी तक इस पर निर्णय नहीं हुआ है।
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