राष्ट्रीय सुरक्षा पर मंथन

राष्ट्रीय सुरक्षा पर मंथन

तेजी से बदलती भू-राजनीतिक परिस्थितियों में हमें किसी भी स्थिति से निपटने के लिए पूरी तरह से तैयार रहने की आवश्यकता है। हमें न केवल अपने राष्ट्रीय हितों को सुरक्षित रखना है, बल्कि साइबर युद्ध और आतंकवाद जैसी नई राष्ट्रीय सुरक्षा चुनौतियों के लिए भी तैयार रहना है। देश आगे बढ़ रहा है और रक्षा सहित विभिन्न क्षेत्रों में भारत के विकास को दुनिया स्वीकार कर रही है।

परंतु भारत की भू-राजनैतिक स्थिति, इसके पड़ोसी कारक, विस्तृत एवं जोखिम भरी स्थलीय, वायु और समुद्री सीमा के साथ देश के ऐतिहासिक अनुभव इसे सुरक्षा की दृष्टि से अतिसंवेदनशील बनाते हैं। आज हालात ऐसे हैं कि बाह्य और आंतरिक सुरक्षा में भेद करना कठिन हो गया है। हमारी सुरक्षा को वास्तविक खतरा गुप्त कार्रवाइयों, विद्रोही और आतंकवादी गतिविधियों से है।

ऐसे में भुवनेश्वर में शुक्रवार से शुरू हुआ अखिल भारतीय पुलिस महानिदेशकों और महानिरीक्षकों का सम्मेलन देश के आंतरिक सुरक्षा और सार्वजनिक सुरक्षा को बढ़ाने पर केंद्रित होगा। महत्वपूर्ण है कि तीन दिवसीय सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भाग ले रहे हैं। आंतरिक सुरक्षा का सामान्य अर्थ एक देश की अपनी सीमाओं के भीतर की सुरक्षा से है। आंतरिक सुरक्षा बहुत पुरानी शब्दावली है, लेकिन समय के साथ ही इसके मायने बदलते रहे हैं। 

स्वतंत्रता से पूर्व जहां आंतरिक सुरक्षा के केंद्र में धरना-प्रदर्शन, रैलियां, सांप्रदायिक दंगे, धार्मिक उन्माद थे तो वहीं स्वतंत्रता के बाद विज्ञान एवं तकनीकी की विकसित होती प्रणालियों ने आंतरिक सुरक्षा को अधिक संवेदनशील और जटिल बना दिया है।

आज भारत में आंतरिक सुरक्षा के लिए आतंकवाद, उग्रवाद, सांप्रदायिक हिंसा, साइबर हमले, संगठित अपराध व अलगाववादी आंदोलन जैसी कई चुनौतियां हैं।  निश्चित ही सरकार ने इस दिशा में आंशिक प्रयास जरूर किए हैं, जैसे राष्ट्रीय सुरक्षा एजेंसी की स्थापना, भारतीय राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद की स्थापना, रक्षा नियोजन समिति की स्थापना आदि, लेकिन ये सभी निकाय अपने-अपने स्तरों पर कार्यरत हैं। आवश्यकता है ऐसी नीति और संरचना की जो इन सभी को एक साथ लेकर चले।

आंतरिक सुरक्षा को बेहतर करने के लिए सर्वप्रथम राष्ट्रीय स्तर से लेकर स्थानीय स्तर तक खुफिया तंत्र में तत्काल सुधार की आवश्यकता है। राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद और सुरक्षा पर गठित कैबिनेट समिति को पाकिस्तान खुफिया एजेंसी आईएसआई से उत्पन्न सुरक्षा खतरों के खिलाफ एक प्रभावी जवाबी रणनीति तैयार करनी चाहिए।

हमारी रणनीति प्रतिक्रियाशीलता के बजाय अधिक सक्रियता की होनी चाहिए। संगठित अपराध से निपटने के लिए अंतर्राज्यीय व अंतर्राष्ट्रीय सहयोग प्राप्त करने की दिशा में कार्य करना चाहिए। केंद्र सरकार को सभी राज्य सरकारों को उनके द्वारा सुरक्षा प्रबंधन के विषय को प्राथमिकता देने की आवश्यकता के संदर्भ में जागरूक किया जाना चाहिए।