ब्रह्मपुत्र पर बांध

Amrit Vichar Network
Published By Vishal Singh
On

चीन की ओर से तिब्बत में ब्रह्मपुत्र नदी पर भारतीय सीमा के करीब बांध निर्माण के लिए दी गई मंजूरी से भारत का चिंतित होना स्वाभाविक है। बांध ब्रह्मपुत्र के पारिस्थितिकी तंत्र को कमजोर कर देगा। बांध को लेकर भारत की चिंता का एक कारण यह भी है कि इस बांध के बनने की स्थिति में भारत को पानी के लिए चीन पर निर्भर रहना पड़ सकता है, जिससे चीन को भारत पर दबाव बनाने का मौका मिलेगा। विशेषज्ञों के मुताबिक यह बांध ब्रह्मपुत्र नदी पर बनेगा जो अरुणाचल प्रदेश की ओर मुड़ती है। इससे भारत में पानी की आपूर्ति की समस्या पैदा हो सकती है।

भारत और चीन ने सीमा पार नदियों से संबंधित विभिन्न मुद्दों पर चर्चा करने के लिए वर्ष 2006 में विशेषज्ञ स्तरीय तंत्र (ईएलएम) की स्थापना की थी, जिसके तहत चीन बाढ़ के मौसम के दौरान भारत को ब्रह्मपुत्र और सतलुज नदी पर जल विज्ञान संबंधी जानकारी प्रदान करता है मगर इस मामले में चीन ने भारत को कोई सूचना प्रदान नहीं की। भारत चीन को अपनी चिंताओं से अवगत करा चुका है।

राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल और चीन के विदेश मंत्री वांग यी के बीच पिछले दिनों हुई बैठक के दौरान, जल विज्ञान संबंधी डेटा साझा करने पर चर्चा हुई, जो स्थिति की तात्कालिकता को दर्शाता है। विशेषज्ञों का कहना है कि यह परियोजना भारत और चीन के बीच तनाव बढ़ा कर दोनों देशों के बीच जलयुद्ध को जन्म दे सकती है। चीन का यह कदम एक चेतावनी है। 

गौरतलब है कि चीन ने तिब्बत के जल पर स्पष्ट स्वामित्व का दावा किया है, जिससे वह दक्षिण एशिया की सात सबसे शक्तिशाली नदियों -सिंधु, गंगा, ब्रह्मपुत्र, इरावदी, साल्विन, यांग्त्ज़ी और मेकांग का अपस्ट्रीम नियंत्रक बन गया है। ये नदियां पाकिस्तान, भारत, बांग्लादेश, म्यांमार, लाओस और वियतनाम में बहती हैं और किसी भी एक स्थान से सबसे बड़ी नदी अपवाह बनाती हैं यह अनुमान लगाया गया है कि तिब्बती पठार और झिंजियांग और इनर मंगोलिया के चीनी प्रशासित क्षेत्रों से हर साल 718 बिलियन क्यूबिक मीटर सतही पानी बहकर पड़ोसी देशों में चला जाता है।

इसका लगभग आधा पानी अर्थात 48 प्रतिशत सीधे भारत में आता है। ऐसे में भारत को यह आकलन करने की आवश्यकता है कि चीन उन देशों पर अपने लाभ को किस तरह  हथियार बना सकता है। हालांकि यह अनिश्चित है कि ब्रह्मपुत्र बांध एक नया विवाद बनेगा या नहीं, लेकिन एक बात स्पष्ट है कि दीर्घकालिक संघर्ष से बचने और साझा जल संसाधनों के सतत प्रबंधन को सुनिश्चित करने के लिए संवाद, सहयोग और पारदर्शिता महत्वपूर्ण होगी।