रमजान मुबारक : दरगाह आला हजरत से सहरी में माइक के शोर से बचने का पैगाम
आज शनिवार को पहली तरावीह है और कल-रविवार को होगा पहला रोजा
बरेली, अमृत विचार। रमजान मुबारक। चांद नजर आ गया। आज शनिवार को पहली तरावीह है। मस्जिदों से इसका ऐलान हो गया। दरगाह, खानकाहों के जिम्मेदार, मस्जिदों के इमामों ने रमजान की मुबारकबाद पेश की है। रविवार को पहला रोजा होगा। सुन्नी-बरेलवी मुसलमानों के मरकज (केंद्र) दरगाह आला हजरत के सज्जादानशीन मुफ्ती अहसन रजा कादरी (अहसन मियां) ने इस मौके पर एक पैगाम आम किया है। उन्होंने मस्जिद कमेटी और इमामों से कहा कि सहरी के वक्त बार-बार माइक से ऐलान न किया जाए। ताकि उन लोगों की नींद में खलल (व्यवधान) न पड़े जो बीमार हैं या फिर जिन्हें रोजे से छूट हासिल है और गैर-मजहब के लोग। माइक के शोर से उनकी नींद खराब न हो। इसका ख्याल रखा जाए।
दरगाह से जुड़े नासिर कुरैशी ने सज्जादानशीन के हवाले से जारी संदेश में कहा कि सहरी खाना सुन्नत है। उसका पालन करें। शरीयत की रौशनी में रमजान का महत्व बताते हुए मुफ्ती अहसन मियां ने कहा कि "जो शख्स बगैर बीमारी या बेवजह रोजा छोड़ दे। फिर चाहे वह सारी उम्र भी रोजा रखे तो उस रोजे का सवाब हासिल नहीं कर सकता।"
इसलिए खुशदिली के साथ पूरे महीने रोजे रखें। आगे कहा कि रमजान में जन्नत के दरवाज़े खोल दिये जाने का मतलब है कि नेक अमल की तौफीक (पुण्य का प्रतिफल)। जहन्नम के दरवाजे बंद किये जाने का अर्थ है-रोजेदारों को शरीयत ने जिन बातों से रोका है। उनसे खुद को बचाकर रखना।
मुफ़्ती सलीम नूरी बरेलवी ने रमजान का महत्व पर रौशनी डालते हुए कहा कि यह फर्ज नमाजें वक्त पर अदा करने, कुरान की तिलावत करने के साथ अच्छाई-भलाई का हर वो काम करें, जिससे खुदा राजी रहे। रोजा भूखे-प्यासे रहने का नाम नहीं बल्कि आत्मनियंत्रण है। अच्छाई की राह पर चलने और बुराईयों से बचना है।
नासिर कुरैशी ने बताया कि पहला रोजा सबसे छोटा होगा। जिसकी मियाद यानी अवधि 13 घंटे चार मिनट होगी। जबकि आखिरी रोजा सबसे बड़ा होगा। उसकी अवधि 13 घंटे 52 मिनट की होगी। सुर्योदय से पहले और सुर्यास्त तक रोजा रहता है। एक महीने तक ये सिलसिला चलेगा। और ईद के जश्न के साथ रमजान समापन होगा।
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