प्रयागराज : आर्य समाज द्वारा जारी विवाह प्रमाण पत्र बेकार कागज नहीं

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Published By Vinay Shukla
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प्रयागराज : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने आर्य समाज मंदिर में हुए विवाह की वैधता के संबंध में अपने महत्वपूर्ण निर्णय में कहा कि हिंदू विवाह अधिनियम,1955 की धारा 7 के तहत आर्य समाज में हुए विवाह वैध हैं। अगर वे वैदिक या अन्य प्रासंगिक हिंदू रीति- रिवाजों और समारोहों के अनुसार करवाए गए हों।

उक्त आदेश न्यायमूर्ति अरुण कुमार सिंह देशवाल की एकलपीठ ने महाराज सिंह की याचिका खारिज करते हुए पारित किया।याची ने अपनी पत्नी द्वारा आईपीसी की धारा 498-ए और  506 के तहत दर्ज मामले को रद्द करने की मांग की थी। याची की पत्नी ने दहेज उत्पीड़न के मामले में उसके खिलाफ आईपीसी की उक्त धाराओं के तहत पुलिस स्टेशन हाफिजगंज, बरेली में मामला दर्ज करवाया था। याची के अधिवक्ता ने तर्क दिया कि उसका विवाह विपक्षी के साथ आर्य समाज मंदिर में हुआ था। अतः इसे वैध विवाह नहीं माना जा सकता है, इसलिए उस पर आईपीसी की धारा 498-ए और 506 के तहत आरोप नहीं लगाए जा सकते हैं।

इसके अलावा उसने अपनी पत्नी द्वारा प्रस्तुत विवाह प्रमाण पत्र को भी जाली और मनगढ़ंत बताया तथा विवाह के पंजीकृत ना होने की बात भी कही। कोर्ट ने माना कि आर्य समाज मंदिर में विवाह वैदिक पद्धति के अनुसार संपन्न होते हैं, जिसमें कन्यादान, पाणिग्रहण, सप्तपदी तथा सिंदूरदान के समय मंत्रोच्चार होता है। अतः आर्य समाज द्वारा जारी प्रमाण पत्र को बेकार कागज नहीं कहा जा सकता है।

 अंत में कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि गैर पंजीकरण वैध विवाह को अमान्य नहीं बनाता है, साथ ही कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 7 के तहत पारंपरिक रीति-रिवाज और समारोहों के अनुसार विवाह संपन्न होने पर वैध ही रहेगा, भले ही वह किसी भी स्थान पर संपन्न हुआ हो।

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