प्रयागराज : आपराधिक मामले से बरी होने पर अभ्यर्थी को नियुक्ति का स्वाभाविक अधिकार नहीं मिलता

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Published By Vinay Shukla
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प्रयागराज : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक भर्ती विज्ञापन के सापेक्ष ऑनलाइन आवेदन पत्र जमा करते समय तथ्यात्मक त्रुटि के संबंध में एक महत्वपूर्ण फैसला देते हुए कहा कि किसी कर्मचारी के चरित्र और इतिहास का सत्यापन नियोक्ता द्वारा सुनिश्चित किया जाना चाहिए। सरकारी पद पर नियुक्त किए जाने वाले उम्मीदवार का चरित्र ईमानदार और बेदाग होना चाहिए और उसका इतिहास साफ होना चाहिए। यदि कोई व्यक्ति, जिसकी ईमानदारी संदिग्ध है तो वह ऐसे पद पर नियुक्ति का दावा नहीं कर सकता, क्योंकि इससे संस्थान पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।

आपराधिक मामले में बरी होने से भी याची को पद पर नियुक्ति के लिए स्वाभाविक अधिकार नहीं मिल जाता है। नियोक्ता के लिए उसके पूर्ववृत्त पर विचार करना आवश्यक है और यह जांचना उसका कर्तव्य है कि याची पद पर नियुक्ति के लिए उपयुक्त है या नहीं। याची द्वारा आवेदन पत्र में लंबित आपराधिक मामले के संबंध में जानबूझकर तथ्य छिपाने और झूठी सूचना देना अपने आप में महत्वपूर्ण है, जिसके आधार पर नियोक्ता उम्मीदवार की उम्मीदवारी को रद्द कर सकता है। वर्तमान मामले में अभ्यर्थी द्वारा नियोक्ता को गुमराह करने की कोशिश की गई थी। दस्तावेज सत्यापन के दौरान आपराधिक मामले की पूरी जानकारी होने के बाद भी याची ने रोजगार प्राप्त करने के समय शपथ-पत्र में महत्वपूर्ण तथ्यों को छिपाया। उक्त आदेश न्यायमूर्ति सौरभ श्याम शमशेरी की एकलपीठ ने चंद्रेश कुमार की याचिका को खारिज करते हुए पारित किया।

मामले के अनुसार याची के खिलाफ आईपीसी की विभिन्न धाराओं के तहत आपराधिक मुकदमा दर्ज था, लेकिन वर्ष 2018 में जिला न्यायालय में विज्ञप्ति ग्रुप डी के पद पर नियुक्ति हेतु ऑनलाइन आवेदन पत्र भरते समय एक कॉलम में अंकित प्रश्न "क्या आपके पास कोई आपराधिक कार्यवाही का विवरण है" के जवाब में याची ने 'नहीं' शब्द का उल्लेख किया। चयनित होने के बाद रिकॉर्ड के सत्यापन के चरण में वर्ष 2019 में एक नोटरीकृत हलफनामे के माध्यम से उसने उपरोक्त त्रुटि को ठीक करने का प्रयास किया, लेकिन जब याची को नियुक्ति नहीं दी गई तो उन्होंने शिकायत समिति का दरवाजा खटखटाया।

हालांकि जिला न्यायाधीश, प्रयागराज द्वारा वर्ष 2024 में याची की प्रार्थना को इस आधार पर खारिज कर दिया कि याची ने सही समय पर सही जानकारी का खुलासा नहीं किया और 6 वर्ष पूर्व समाप्त हो चुकी चयन प्रक्रिया पर दोबारा विचार नहीं किया जा सकता है। उसके बाद याची ने हाईकोर्ट के समक्ष वर्तमान याचिका दाखिल की और याची के अधिवक्ता ने तर्क दिया कि आपराधिक मुकदमे में बरी होने के बाद भी याची की अभ्यर्थिता पर विचार नहीं किया जा रहा है। अंत में कोर्ट ने चयन प्रक्रिया को जीवित न मानते हुए वर्तमान मामले में भौतिक तथ्यों को छिपाने के कारण याचिका खारिज कर दी।

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