लखनऊ: अस्थमा से नहीं होनी चाहिए एक भी मौत, फिर भी हर साल मर रहे दो लाख लोग

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Published By Virendra Pandey
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लखनऊ, अमृत विचार। अस्थमा को लेकर लोगों में जागरूकता की भारी कमी है, जिसके चलते पूरी दुनिया में 4 लाख से अधिक लोगों की मौत हो जाती है। मरने वालों में 50 फीसदी लोग भारत के होते हैं। यानी कि करीब दो लाख लोग प्रतिवर्ष भारत में अस्थमा से अपनी जान गंवा देते हैं। जबकि अस्थमा से एक भी मौत नहीं होनी चाहिए, फिर भी लोग मर रहे हैं।

इतना ही नहीं, अस्थमा के चलते जीवन की गुणवत्ता पर गंभीर असर पड़ रहा है। अस्थमा पीड़ित बच्चों को स्कूल और बड़े लोगों को अपना काम तक छोड़ना पड़ता है। इस बीमारी से सबसे अधिक समस्या महिलाओं को उठानी पड़ती है, इससे आप समस्या का अंदाजा स्वत: लगा सकते हैं। यह कहना है किंग जार्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय स्थित पल्मोनरी एवं क्रिटिकल केयर मेडिसिन विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो. वेद प्रकाश का। उन्होंने यह बातें विश्व अस्थमा दिवस की पूर्व संध्या पर आयोजित पत्रकार वार्ता के दौरान कहीं। उन्होंने कहा कि इस बीमारी का निदान समय रहते बीमारी की जानकारी होना है।

उन्होंने बताया कि दुनियाभर में इस बीमारी से पीड़ित लोगों की संख्या इसकी गंभीरता बताने के लिए काफी है। पूरी दुनिया में 26.2 करोड़ लोग अस्थमा से प्रभावित हैं, वहीं पूरी दुनिया में प्रतिवर्ष लगभग 4.55 लाख लोगों की इस बीमारी से मौत हो जाती है। वहीं भारत में करीब 2 लाख लोगों की मौत इस बीमारी से होती है। ऐसे में यह कहा जा सकता है कि इस बीमारी की रोकथाम को लेकर किए जा रहे प्रयासों में और तेजी लाने की जरूरत है। यूपी में करीब 50 लाख लोग अस्थमा से पीड़ित हैं, इस बीमारी की चपेट में करीब 10 प्रतिशत बच्चे भी हैं। डॉ. वेद के मुताबिक इनहेलेशन उपचार तक पहुंच सभी अस्थमा रोगियों की आवश्यकता है, तो आइए हम सभी मिलकर प्रत्येक अस्थमा रोगी को खुलकर सांस लेने में मदद करें। उन्होंने बताया कि दमा को अगर हराना है, सांसों को बचाना है, तो इन्हेलर अपनाना है।

एलर्जी की वजह से अधिक होता है अस्थमा

डॉ. वेद प्रकाश ने बताया कि अस्थमा एलर्जी की वजह से अधिक होता है, जनसंख्या में एक तिहाई लोग जीवन में कभी न कभी एलर्जी का शिकार होते हैं। बड़े शहरों में हवा की गुणवत्ता खराब होते ही इसका सबसे बुरा असर अस्थमा पीड़ितों पर ही पड़ता है। ऐसे में हमें पर्यावरण की स्वच्छता बनाए रखने का प्रयास करना चाहिए। उन्होंने बताया कि बहुत से लोगों में अस्थमा का अटैक धूम्रपान, परफ्यूम से भी होता है। इसके अलावा कुछ मौकों पर कसरत के दौरान भी लोगों को अस्थमा का अटैक हो सकता है। ऐसे में अस्थमा के कारणों और लक्षणों की पहचान और विशेषज्ञ डॉक्टर से सलाह इस बीमारी से बचा सकती है।

इस अवसर पर डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने बताया कि एलर्जी, संक्रमण, वायु‑प्रदूषण, ठंडी हवा, शारीरिक व्यायाम, मानसिक तनाव आदि अस्थमा के ट्रिगर (बढ़ाने वाले तत्व) का कार्य करते हैं। अस्थमा लाइलाज बीमारी नहीं है, उचित उपचार व जीवन‑शैली में बदलाव से इसे पूरी तरह नियंत्रित कर सामान्य जीवन जिया जा सकता है।

बच्चों को 3 साल की उम्र में भी हो सकता है अस्थमा

केजीएमयू स्थित बाल रोग विभाग के प्रो. राजेश कुमार यादव ने बताया कि यदि किसी बच्चे में निमोनिया के लक्षण साल में तीन बार से अधिक बार दिखाई पड़ते हैं। यदि बच्चा बड़ा है और बोलने में भी यदि वह हांफता है, ऐसी किसी भी स्थिति में माता-पिता को सावधान हो जाना चाहिए और डॉक्टर से सलाह लेनी चाहिए। उन्होंने बताया कि ग्लोबल इनिशिएटिव फॉर अस्थमा (GINA) ने इस बार विश्व अस्थमा दिवस 2025 की थीम “इनहेलेशन उपचार सभी के लिए सुलभ बनाएं” निर्धारित की है। यह थीम विशेष रूप से इनहेलेड कॉर्टिको‑स्टेरॉयड्स (ICS) जैसी प्रभावी औषधियों को सुनिश्चित करने के महत्व को रेखांकित करती है। भारत में, यद्यपि ICS को आवश्यक औषधि सूची में शामिल किया गया है, फिर भी जागरूकता की कमी, अधिक व्यय और आपूर्ति‑श्रृंखला समस्याओं के कारण इनका उपयोग अपेक्षाकृत कम है। इन चुनौतियों का समाधान अस्थमा संबंधित समस्याओं और मृत्यु दर को घटाने के लिए जरूरी है।

अस्थमा के प्रमुख लक्षण:

-घरघराहट (छाती से सीटी की ध्वनि)।
-सांस फूलना या सांस लेने में कठिनाई।
-विशेषकर रात में या सुबह होने वाली खांसी।
-छाती में जकड़न, दर्द या घुटन‑सा महसूस होना।                                                                                   

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