impact of news : जांच करने पहुंचा जलनिगम, अधिकारियों ने माना सीवर बहा 

impact of news : जांच करने पहुंचा जलनिगम, अधिकारियों ने माना सीवर बहा 

अमृत विचार में खबर छपने के बाद मौके पर पहुंचे जलनिगम के अधिकारी, केआरएमपीएल कंपनी को बुलाया

Effect of news: परमट में गंगा नदी के किनारे बरसाती नाले के जरिये सीवर का गंदा पानी बहाया जा रहा है। अमृत विचार में छपी खबर पर गुरुवार को मौके पर पहुंचे जलनिगम अधिकारियों की जांच में सामने आया कि स्थानीय लोगों ने सीवर लाइन से कनेक्शन को काटकर बरसाती नाले में घरों के कनेक्शन जुड़वा दिया है। इससे गंगा नदी के मुहाने पर जाने वाले बरसाती नाले से हर 7तवें दिन वॉल खोलकर सीवर व मंदिर प्रांगण की छोटी नालियों के जरिये बहकर आने वाले पानी को गंगा नदी में छोड़ा जा रहा है। अधिकारियों ने कहा कि यह पूरी तरह से गलत है। इससे गंगा नदी दूषित हो रही है। परमट में ऐसे घरों की सर्वे कर जांच की जाएगी। सीवर लाइनों के कनेक्शन को पहले से पड़ी सीवर लाइन में ही जोड़ा जाएगा, ताकि परमट पंपिंग स्टेशन के जरिये पानी को ट्रीट करने के लिये जाजमऊ भेजा जा सके।

बुधवार रात परमट घाट पर वॉल खोलकर गंदे पानी को गंगा नदी में छोड़ा गया। स्थानीय लोगों ने कहा कि ऐसा कर्मचारी रोज करते हैं। बुधवार की रात ऐसा करते कर्मचारी लाइव कैमरे में कैद हो गये। खबर छपी तो गुरुवार को जलनिगम, ग्रामीण के अधिशासी अभियंता व परियोजना प्रबंधक मोहित चक ने मौके पर जलनिगम के असिस्टेंट प्रोजेक्ट इंजीनियर विपिन कुमार, केआरएमपीएल के शशि तिवारी के साथ पूरी टीम को जांच के लिये भेजा। इस दौरान टीम ने परमट मुख्य गेट से घाट तक जाने वाले एक-एक मेनहोल की जांच की। इस दौरान टीम ने पाया कि कुछ घरों के लोगों ने सीवर लाइन में अपने घरों का कनेक्शन काटकर बरसाती नाले में जोड़ दिया। अधिकारियों ने बिना बताए ऐसा करने पर फटकार भी लगाई। इसके बाद अधिकारी टेफ्को नाले के टेपिंग प्वाइंट पर भी गई। विपिन कुमार ने कहा कि घरों का सर्वे कर इस समस्या को दूर किया जायेगा। गंगा नदी में किसी भी तरह का अशोधित पानी डालना मना है। मॉनीटरिंग की जा रही है। 

सीवर लाइन पहले से पंपिंग स्टेशन से जुड़ी
जलनिगम के असिस्टेंट प्रोजेक्ट इंजीनियर विपिन कुमार ने बताया कि टैफ्को नाला पूरी तरह टेप है। परमट में एक सीवर लाइन 900 डाया की पड़ी है जो हमारे 56 एमएलडी पंपिंग स्टेशन से जुड़ी है। परमट प्रांगण का पानी, आस-पास लगने वाली दुकानों का पानी व बरसाती पानी के लिये एक अलग 900 डाया की पाइपलाइन डाली गई है। जिसे वॉल के सहारे बंद किया गया है। जब बरसात होती है तो वॉल खोलकर बरसाती पानी को गंगा नदी में बहाया जाता है। 

बिना बरसात के रोजाना कहां से आ रहा पानी
जब जलनिगम अधिकारियों से पूछा गया कि बिना बरसात के पानी कहां से आ रहा है तो जलनिगम के अधिकारियों ने बताया कि यह बात सच है कि सीवर लाइनों को कुछ घरों से जोड़ दिया गया है। स्थानीय लोगों का कहना है कि सीवर लाइन चोक है, इससे घर में सीवर बैकफ्लो हो रहा है इसलिये बरसाती नाले में लाइन को जोड़ दिया गया है। जो पूरी तरह से गलत है। इसकी जानकारी उच्च अधिकारियों को देंगे। जलनिगम, ग्रामीण के परियोजना प्रबंधक मोहित चक का कहना है कि  टीम मौके पर भेजकर जांच कराई है। टैफ्को नाला पूरी तरह टेप है। अगर बरसाती नाले में सीवर लाइने घरों से जोड़ी गई है तो इसको रोका जाएगा। सीवर लाइन पंपिंग स्टेशन से जुड़ी है। बताया जा रहा है कि सीवर लाइन चोक है, इसे साफ कराने की जिम्मेदारी जलकल की है। नाले का पानी गंगा नदी में नहीं प्रवाहित किया जा रहा है।

सीवर का गंदा पानी गंगा में बहाया जा रहा

छत्रपति शाहूजी महाराज विश्वविद्यालय, कानपुर के शोधकर्ताओं की ओर से किए गए एक ताज़ा अध्ययन में गंगा नदी के जल और उसमें पाई जाने वाली मछलियों में कई प्रकार की भारी धातुओं की उपस्थिति पाई गई है। यह अध्ययन विशेष रूप से जल गुणवत्ता, जलीय जैव विविधता और मानव स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण माना जा रहा है।

इस अध्ययन को नलिनी द्विवेदी, शिखा सिंह, डॉ. सीमा परोहा और डॉ. वर्षा गुप्ता द्वारा मिलकर किया गया। डॉ. वर्षा गुप्ता के नेतृत्व में इस अध्ययन में इंडक्टिवली कपल्ड प्लाज्मा–ऑप्टिकल एमिशन स्पेक्ट्रोस्कोपी  तकनीक का उपयोग कर दस भारी धातुओं का विश्लेषण किया गया। इनमें आर्सेनिक, कैडमियम, कोबाल्ट, क्रोमियम, तांबा, मैंगनीज, निकल, सीसा, थैलियम और जिंक शामिल थे। हाल ही में हुए अध्ययन में इनमें से नदी जल में आर्सेनिक, कैडमियम, कोबाल्ट, क्रोमियम, सीसा और थैलियम की सांद्रता अधिक पाई गई, जो औद्योगिक अपशिष्टों की उपस्थिति का संकेत देती है। ये धातुएं जैव संचयी होती हैं और लंबे समय तक पर्यावरण व जीवों में बनी रह सकती हैं। विवि की ओर से बताया गया कि शोध के दौरान (रोहू) मछली के विभिन्न अंगों जैसे यकृत, गुर्दा, आंत और गिल्स में भी इन धातुओं का संचय पाया गया।

गर्मियों में इन धातुओं का स्तर अधिक था, जो संभवतः कम जल प्रवाह और उच्च वाष्पीकरण दर के कारण होता है। गुर्दे और यकृत में सर्वाधिक संचय देखा गया, क्योंकि ये अंग विषाक्त पदार्थों के निष्कासन व संग्रहण में प्रमुख भूमिका निभाते हैं। मुख्य शोधकर्ता डॉ. वर्षा गुप्ता ने बताया कि हमारा उद्देश्य भय उत्पन्न करना नहीं, बल्कि यह वैज्ञानिक रूप से समझना है कि जल स्रोतों में मौजूद धातुएं किस प्रकार जीवों के शरीर मंस प्रवेश करती हैं और आगे खाद्य श्रृंखला को प्रभावित कर सकती हैं। शोध में यह भी स्पष्ट किया गया कि भारी धातुओं की उपस्थिति केवल जल की सतही गुणवत्ता से आंका नहीं जा सकती। ऐसे प्रदूषकों को जल निगरानी कार्यक्रमों में सम्मिलित किया जाना आवश्यक है।

यह भी पढ़ें:-कानपुर : बिजली की आंख-मिचौली से उद्यमी परेशान, करोड़ो का नुकसान