सेहत का खजाना है माइक्रोग्रीन्स फूड्स, अन्न से भरी पूरी थाली खाने के मुकाबले पौधे बनेंगे सुपरफूड, दुनियाभर में तेजी से बढ़ रही इस स्टार्टअप की मांग

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Published By Muskan Dixit
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घर पर उगा सकते हैं ताजे और जैविक माइक्रोग्रीन्स

मार्कण्डेय पाण्डेय, लखनऊ, अमृत विचार: आने वाले दिनों में भोजन से भरी थाली की जगह घर में लगे पौधे सुपरफूड बन जाएं तो आश्चर्य नहीं करना। यानि डाईनिंग टेबल पर ट्रे में सजावटी पौधे रखे दिखेंगे। दरअसल, बीजों से उगने वाले नन्हे हरे पौधे सिर्फ सजावटी पौधे नहीं हैं, इनमें सेहत का खजाना छिपा है। ये कई खतरनाक बीमारियों से बचा सकते हैं। इस खजाने को माइक्रोग्रीन्स कहते हैं, जो निकट भविष्य में सुपरफूड के तौर पर इस्तेमाल किए जाएंगे।

बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय (बीबीएयू) लखनऊ के जैव प्रौद्योगिकी विभाग में हुए शोध ने इन सूक्ष्म पौधों की चिकित्सीय संभावनाओं और पोषण शक्ति को उजागर किया गया है। बीबीएयू बायोटेक विभाग की शिक्षक डॉ. संगीता सक्सेना, छात्रा अनाम्ता रिज़वी और शैलेंद्र कुमार का यह शोध न्यूट्रिशन, विटामिन्स और बीमारियों के इलाज में क्रांतिकारी साबित हो सकता है।

सबसे खास बात है कि ऐसे पौधों को घर में ट्रे में उगाया जा सकता है। वैज्ञानिक शोध में माइक्रोग्रीन्स को सुपरफूड के रूप में पाया गया है, जिसमें परिपक्व पौधों की तुलना में कई गुना अधिक पौष्टिकता का खजाना छिपा है। जड़ी-बूटियों, सब्ज़ियों, अनाज या फूलों से प्राप्त होने वाले नन्हें अंकुरित पौधे होते हैं जो दो कोटिलेडन (बीज पत्र) पत्तियां करीब 2 से 7 सेंटीमीटर लंबी एक नाजुक तना के तौर पर विकसित होते हैं तभी इनको काट लिया जाता है। इन्हें सब्ज़ियों की रंग-बिरंगी बौछार या वेजिटेबल कंफेटी कहा जाता है, इनमें मौजूद उच्च पोषण मूल्य और संभावित स्वास्थ्य लाभों के कारण भी इनकी मांग दुनिया भर में तेजी से बढ़ने वाली है।

सीड्स से सुपरफूड की क्रांति

प्रो. संगीता सक्सेना बताती है कि अमेरिकी कृषि विभाग के आंकड़ों के अनुसार इन अंकुरों में परिपक्व पौधों की तुलना में जैव सक्रिय यौगिकों की मात्रा कहीं अधिक होती है। जिससे ये सुपरफूड्स बन जाते हैं। भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद ने 2024 की अपनी आहार संबंधी दिशा निर्देशों में माइक्रोग्रीन्स को स्वास्थ्यवर्धक खाद्य पदार्थ के रूप में मान्यता दी है।

अंकुरित अनाज से सौ गुना फायदेमंद

शोध में माइक्रोग्रीन्स को अंकुरित अनाज की तुलना में उनके बायोएक्टिव फाइटोकेमिकल्स जैसे कैरोटेनॉयड्स और पॉलीफेनॉल्स की उच्च सांद्रता के कारण अधिक श्रेष्ठ पाया गया है। ल्यूटिन, कैरोटीन, बीटाकैरोटीन और वायोलैक्सैन्थिन जैसे यौगिक माइक्रोग्रीन्स में कहीं अधिक मात्रा में पाए जाते हैं। इसके अलावा ब्रैसिका माइक्रोग्रीन्स (जैसे ब्रोकली, सरसों, आदि) में परिपक्व ब्रैसिका सब्ज़ियों की तुलना में कहीं अधिक समृद्ध पॉलीफेनोलिक प्रोफ़ाइल देखी गई है, जिससे ये एंटीऑक्सिडेंट्स के बेहतरीन स्रोत बनते हैं।

माइक्रोग्रीन्स स्वास्थ्य का टॉनिक

माइक्रोग्रीन्स में एंटीडिप्रेशेंट (उदासी कम करने वाला), एंटीकैंसर (कैंसररोधी), एंटीमाइक्रोबियल (सूक्ष्मजीव-रोधी), एंटीइंफ्लेमेटरी (सूजनरोधी), एंटीऑक्सीडेंट, मोटापारोधी और मधुमेहरोधी (एंटीडायबेटिक) गुण मौजूद होते हैं। तुलसी और अमरनाथ (राजगिरा) के माइक्रोग्रीन्स में अधिक फाइलोक्विनोन (विटामिन के) की मात्रा देखी गई है। ब्रैसिकेसी में उल्लेखनीय कैंसररोधी क्षमताएं देखी गई हैं, जिनमें कैंसर कोशिकाओं की वृद्धि को रोकने और अपोप्टोसिस (कोशिका मृत्यु) को प्रोत्साहित करने की क्षमता शामिल है। स्तन कैंसर, यकृत (हेपाटोसेलुलर) कैंसर, और बृहदान्त्र (कोलन) कैंसर से लड़ने की उल्लेखनीय क्षमता दर्शाई है। ब्रोकोली माइक्रोग्रीन्स शरीर के वजन और चर्बी के जमाव को घटाने में सक्षम पाया गया है, जबकि मेथी (फेनुग्रीक) माइक्रोग्रीन्स में आयरन की कमी (एनीमिया) के लिए एक संभावित प्राकृतिक उपचार है।

कैसे करें खेती

माइक्रोग्रीन्स को रसोई की शेल्फ, खिड़की की सिल या बालकनी जैसे सीमित स्थानों में भी उगाया जा सकता है। प्लास्टिक की ट्रे, गमले या ऐसे किसी भी कंटेनर में उगाया जा सकता है, जिसके नीचे छोटे छेद हों ताकि पानी जमा न हो। घरेलू उपयोग के लिए डिस्पोज़ेबल फूड कंटेनर भी इस कार्य के लिए उपयुक्त होते हैं। इसमें किसी रासायनिक खाद जरूरत नहीं होती। कंटेनर में लगभग 2–3 इंच उगाने वाले बीजों को भरें। समान रूप से फैलाएं, दिन में दो बार साफ पानी से हल्की फुहार दें। ये पौधे लगभग 25 डिग्री तापमान और 65 प्रतिशत आर्द्रता में सबसे अच्छी तरह से विकसित होते हैं। अधिकतर किस्मों के लिए दिन में लगभग 12 घंटे की प्राकृतिक धूप पर्याप्त होती है।

माइक्रोग्रीन्स से जैसे ही दुनिया परिचित होगी इसकी मांग तेजी से बढेगी। इसकी खेती युवाओं के लिए बेहतर स्टार्टअप साबित हो सकता है। माइक्रोग्रीन्स को सुपरमार्केट, स्टोर्स, मॉल और ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म्स के माध्यम से बेच सकते हैं। इसके अलावा प्रीमियम रेस्तरां, फाइव-स्टार होटलों और कैफे के साथ साझेदारी की जा सकती है।

-प्रो. संगीता सक्सेना, बायोटेक विभाग, बीबीएयू

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