आजादी के बाद विलुप्त हो गईं 10 हजार नदियां, अब 500 बची

Amrit Vichar Network
Published By Anjali Singh
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लखनऊ, अमृत विचार: दुनिया की 6 अरब आबादी में 18 प्रतिशत हिस्सा भारत में रहता है, लेकिन दुनिया में मौजूद जल संसाधन का सिर्फ एक प्रतिशत यहां उपलब्ध है। देश की आजादी के समय 10,500 नदियां सदानीरा थीं, अब इनकी संख्या 500 बची है। ये जानकारी जलयोद्धा के नाम से प्रसिद्ध पद्मश्री नागरिक पुरस्कार प्राप्त उमाशंकर पांडेय ने लखनऊ विवि में इंडिया रूरल कोलोकी 2025 के पांचवें संस्करण में दी।

लखनऊ विश्वविद्यालय में ग्रामीण उद्यमिता, युवाओं के रोज़गार और महिला नेतृत्व वाले परिवर्तन के प्रति प्रतिबद्धता कार्यक्रम आयोजित किया गया। इसमें ग्रामीण क्षेत्र को आत्मनिर्भर और आर्थिक समृद्ध बनाने का आह्वान किया गया। इसके लिए नीति-निर्माताओं, शैक्षणिक नेताओं, जमीनी नवप्रवर्तकों और ग्रामीण उद्यमियों को एक साथ लाने की अपील की गई। 

इस कार्यक्रम में उमाशंकर ने कहा कि हमें पारंपरिक जल प्रणालियों को खेती का पानी खेत में, मिट्टी भी खेत में सिद्धांत को पुनर्जीवित करना होगा। आज भी हमारे शैक्षणिक संस्थानों में जल साक्षरता की भारी कमी है। हमें अगली पीढ़ी को धन नहीं, जलधन देना चाहिए, क्योंकि भविष्य का सबसे बड़ा संघर्ष तेल पर नहीं, जल पर होगा।

3 लाख करोड़ का उत्पादन प्रतिवर्ष होता है नष्ट

लखनऊ विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र के शिक्षक डॉ. अरविंद मोहन ने कहा कि देश की ग्रामीण अर्थव्यवस्था उसकी व्यापारिक और आर्थिक क्षमता को उजागर करने की कुंजी है। यह कुंजी भारत-अमेरिका जैसे अंतरराष्ट्रीय संबंधों में भी अहम भूमिका निभा सकती है। ग्रामीण क्षेत्र भारत की बहुट्रिलियन डॉलर अर्थव्यवस्था के लिए इंजन बन सकता है। हर साल 2.5 से 3 लाख करोड़ रुपए के कृषि उपज खराब भंडारण और लॉजिस्टिक्स के कारण बर्बाद हो जाते हैं। जिसका सबसे ज्यादा नुकसान गरीबों को होता है।

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