Sawan Purnima 2025 : वाराणसी में पूर्णिमा पर प्रायश्चित के लिए श्रावणी उपाकर्म, गंगा के तट पर है स्नान दान का विशेष महत्व 

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Published By Anjali Singh
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वाराणसी। सावन माह की पूर्णिमा के अवसर पर शनिवार को वाराणसी के विभिन्न स्थानों पर कृत-अकृत कर्मों के प्रायश्चित के लिए श्रावणी उपाकर्म का आयोजन किया गया। इस दौरान दशविध स्नान, ऋषि तर्पण, गंगा पूजन, पितृ तर्पण और संकल्प के साथ भगवान भास्कर को जल अर्पित किया गया। पापों की निवृत्ति के लिए श्रावणी उपाकर्म का विशेष महत्व बताया गया है। 

डॉ. पवन कुमार शुक्ल ने बताया कि अहिल्याबाई घाट पर सैकड़ों ब्राह्मण उपस्थित थे। यह संस्कार जनेऊ बदलने और नया जनेऊ धारण करने का कर्म है। गंगा तट पर स्नान व तर्पण के पश्चात सभी द्विज ब्राह्मण दशाश्वमेध स्थित शास्त्रार्थ महाविद्यालय के सरस्वती सभागार में एकत्रित हुए। वहां गणपति व ऋषि पूजन के साथ पुराने जनेऊ को त्यागकर नया जनेऊ धारण किया गया। 

कठिन संकल्प के बाद शुद्धि के लिए गाय के गोबर, मिट्टी, भस्म, दूर्वा, अपामार्ग और कुशा से मार्जन किया गया। साथ ही पंचगव्य, जिसमें गोमय (गाय का गोबर), गोदधि (गाय के दूध से बनी दही), गोघृत (गाय का शुद्ध घी), गोदुग्ध (गाय का दूध) और गोमूत्र (गाय का मूत्र) शामिल हैं, से स्नान व प्राशन किया गया। 

डॉ. शुक्ल ने बताया कि विद्वान ब्राह्मणों द्वारा श्रावणी उपाकर्म किया जाता है। जो ब्राह्मण पूजा-पाठ आदि कराते हैं, उनके द्वारा जाने-अनजाने में हुई त्रुटियों और कृत-अकृत कर्मों का प्रायश्चित वर्ष में एक बार गंगा नदी, सरोवर या अन्य पवित्र स्थल पर श्रावणी उपाकर्म के माध्यम से किया जाता है। 

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