बोधकथा : आत्मा की अमरता
कठोपनिषद् में नचिकेता बालक की कहानी है। नचिकेता पांच साल का बड़ा ही बुद्धिमान और जिज्ञासु बालक था। नचिकेता के पिता ऋषि वाजश्रवा ने महायज्ञ का आयोजन किया। उन्होंने घोषणा कर दी कि इस यज्ञ की समाप्ति पर वह अपनी सबसे अच्छी और प्रिय वस्तुओं के साथ सारी संपत्ति ब्राह्मणों को दान में देंगे। लेकिन जब दान देने का समय आया तो उन्होंने बूढ़ी गायें दान में देनी शुरू कर दी। ये गायें काफी कमजोर थीं और दूध भी नहीं देती थीं।
ब्राह्मणों के किसी काम की नहीं थीं। नचिकेता यह देखकर परेशान हो गया और पिता का संपत्ति मोह उसे बर्दाश्त नहीं हुआ। वह बोला, आपको अपनी सबसे प्रिय चीजें दान करनी हैं, आपको सबसे प्रिय तो मैं हूं तो आप मुझे किसे दान में देंगे। नचिकेता के बार-बार यही हठ करने पर पिता झुंझलाकर बोले, तुम्हारे मन में हमेशा सवाल उठते रहते हैं, इसलिए मैं तुम्हें यमराज को दान करता हूं जो तुम्हारे सारे सवालों के जवाब दे देंगे।
नचिकेता ठहरा दृढ़ निश्चयी, पिता ने बहुत समझाया पर वह बोला, मैं आपकी आज्ञा का पालन करूंगा। वह यम से मिलने उनके घर पहुंच गया। द्वारपालों ने बताया कि यम अभी नहीं हैं। तीन दिन बाद लौटेंगे। अपने इरादे का पक्का नचिकेता बिना कुछ खाए-पिए, तीन दिन तक दरवाजे पर यम की प्रतीक्षा में बैठा रहा।
जब यमराज लौटे, तो छोटे से बालक को घर के दरवाजे पर बैठा देखकर हैरान हो गए। वह नचिकेता के निश्चय और पितृभक्ति से प्रसन्न हुए और तीन दिन इंतजार के बदले तीन वरदान मांगने को कहा। नचिकेता ने यमराज से पहला वरदान मांगा कि जब मैं घर जाऊं तो पिता का क्रोध शांत हो जाए और वह मुझे प्यार से गले लगा लें। यमराज ने कहा, जाओ ऐसा ही होगा, अब दूसरा वरदान मांगो।
नचिकेता को याद आया कि पिता ने स्वर्ग की कामना से महायज्ञ किया था, वह बोला ऐसी विधि बताएं, जिससे स्वर्ग की प्राप्ति हो जाए। इस पर यमराज ने नचिकेता को एक यज्ञ विधि बताई जिसका नाम बाद में नचिकेता यज्ञ विधि रखा गया। बारी तीसरे वरदान की आई तो काफी सोचने के बाद नचिकेता ने कहा कि आत्मा या मृत्यु का रहस्य क्या है, इसे समझाएं। यमराज सोच में पड़ गए और बोले, नचिकेता तुम मुझसे धन-दौलत, राजपाट कुछ भी मांग लो, पर इस सवाल का जवाब मत मांगो। ये ऐसा रहस्य है, जिसे देवता भी नहीं जानते।
लेकिन नचिकेता अड़ गया कि उसे तो सिर्फ अपने सवाल का जवाब चाहिए। इसके बाद यमराज ने नचिकेता को जीवन का रहस्य समझाया। हमारा शरीर एक रथ के समान है, हमारी इन्द्रियां इस रथ के घोड़े हैं और ये घोड़े जिस रस्सी से बंधे हैं, उसे मन कहते हैं। यह मन रूपी रस्सी जिस सारथी के हाथ में है, उसे बुद्धि कहते हैं।
इस बुद्धि रूपी सारथी की स्वामी है आत्मा। जो आत्मा को समझ लेता है वो जीवन को समझ लेता है। नचिकेता की कथा बताती है कि सच्ची जिज्ञासा और ज्ञान की आकांक्षा भौतिक वस्तुओं से बड़ी है। जब आप दृढ़ निश्चयी होते हैं तो किसी मार्ग की जरूरत नहीं होती है। ज्ञान के जरिए आत्मा की अमरता को समझा जा सकता है। -डॉ विजयप्रकाश त्रिपाठी
