हाईकोर्ट : अलग घर में रहने वाली जेठानी परिवार का हिस्सा नहीं

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Published By Virendra Pandey
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प्रयागराज, अमृत विचार। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने आंगनबाड़ी कार्यकर्ता की नियुक्ति रद्द करने का आदेश निरस्त करते हुए स्पष्ट किया कि जेठानी को परिवार का हिस्सा तभी माना जाएगा, जब दोनों भाई एक ही घर और रसोई का उपयोग करते हों। उक्त आदेश न्यायमूर्ति अजीत कुमार की एकलपीठ ने कुमारी सोनम की याचिका को स्वीकार करते हुए पारित किया, जिनकी नियुक्ति 13 जून, 2025 को जिला कार्यक्रम अधिकारी, बरेली ने यह कहते हुए रद्द कर दी थी कि उनकी जेठानी पहले से उसी केंद्र में आंगनबाड़ी सहायिका के रूप में कार्यरत हैं। 

याची ने इस आदेश को चुनौती देते हुए कहा कि उनकी जेठानी अलग मकान नंबर वाले घर में रहती हैं और इसलिए उन्हें “एक ही परिवार” की परिभाषा में नहीं गिना जा सकता। इस संदर्भ में उन्होंने परिवार रजिस्टर दस्तावेज भी पेश किए। याची के अधिवक्ता ने यह भी तर्क दिया कि 21 मई, 2023 के शासनादेश के खंड 12(iv) में जो यह प्रतिबंध लगाया गया है कि “एक ही परिवार की दो महिलाओं को एक ही केंद्र पर आंगनबाड़ी कार्यकर्ता और आंगनबाड़ी सहायिका के रूप में नियुक्त नहीं किया जाएगा” उसकी व्याख्या इस तरह नहीं की जा सकती कि अलग-अलग घरों में रहने वाली देवरानी और जेठानी को भी एक ही परिवार मान लिया जाए।

इसके समर्थन में अधिवक्ता ने आगे सरकारी कर्मचारियों के लिए चिकित्सा सुविधा की पात्रता में दी गई “परिवार” की परिभाषा तथा सिविल प्रक्रिया संहिता के आदेश XXXII-ए, नियम 6 का भी हवाला दिया, जिसमें 'परिवार' की कानूनी परिभाषा में भाभी/जेठानी का स्वतः समावेश नहीं किया गया है। कोर्ट ने प्रारम्भिक रूप से ही इस आदेश को अस्थिर माना, क्योंकि इसे याची को बिना नोटिस और सुनवाई का अवसर दिए पारित किया गया था, जिससे याची के अधिकारों का हनन हुआ। खंड 12(iv) की व्याख्या करते हुए कोर्ट ने कहा कि बहू या जेठानी को परिवार का सदस्य तभी माना जाएगा, जब दोनों भाई एक साथ रहते हों और उनके घर और रसोई साझा हों। 

अंत में कोर्ट ने नियुक्ति रद्द करने के आदेश को प्राकृतिक न्याय का उल्लंघन मानते हुए जिला कार्यक्रम अधिकारी को निर्देश दिया कि याची को आंगनबाड़ी कार्यकर्ता के पद पर पुनः नियुक्त किया जाए और उस अवधि के बकाया वेतन का लाभ भी प्रदान किया जाए, जिससे उसे विवादित आदेश के कारण वंचित किया गया था।

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