श्राद्ध से जीवित बनी रहती श्रद्धा, पितरों के प्रति प्रकट करें कृतज्ञता, दिवंगत आत्माओं से आशीर्वाद लेने का महापर्व पितृपक्ष
श्राद्ध तर्पण अति पवित्र शुभ प्राचीन परंपरा है। इसमें देह त्याग के बाद भी जीवात्मा के विकास एवं परस्पर भावपूर्ण आदान-प्रदान की व्यवस्था है। वर्ष में पितृ पक्ष के 15 दिन इसी के कार्य के लिए नियत किए गए हैं। श्राद्ध शब्द का अर्थ श्रद्धापूर्ण व्यवहार से है, जबकि तर्पण का अर्थ तृप्त करना है। इस तरह श्राद्ध तर्पण का मतलब दिवंगत पितरों को तृप्त करने की श्रद्धा या समर्पण है। सबसे पहले पितृ पक्ष यानि श्राद्ध का उल्लेख महाभारत काल में मिलता है, जहां भीष्म पितामह ने युधिष्ठिर को श्राद्ध के बारे में जानकारी दी। उन्होंने बताया कि महर्षि निमी को श्राद्ध का उपदेश देने वाले प्रथम व्यक्ति महा तपस्वी अत्री थे। उस उपदेश को सुनने के बाद महर्षि निमि ने श्राद्ध करना शुरू किया। उन्हें देखकर अन्य ऋषियों ने भी श्राद्ध शुरू कर दिया। लगातार श्राद्ध का भोजन प्राप्त करने से उनके सभी पूर्वज संतुष्ट रहने लगे।
श्राद्ध का भोजन पहले अग्निदेव फिर पूर्वजों को
ऋग्वेद के अनुसार, अग्नि मृतकों को पितृलोक तक पहुंचाने में सहायक होती है। श्राद्ध के दौरान अग्नि से प्रार्थना की जाती है कि वह वंशजों के दान और भोजन को पितृगणों तक पहुंचाकर मृतात्मा को भटकने से रक्षा करें। ऐतरेय ब्राह्मण में अग्नि का उल्लेख उस रज्जु के रूप में है जिसकी सहायता से मनुष्य स्वर्ग तक पहुंचता है। वहीं, पुराणों के अनुसार, पितृ पक्ष या श्राद्ध से मिल रहे भोजन से जब देवताओं और पूर्वजों को अपच हो गई, तो वह ब्रह्माजी के पास गए। ब्रह्माजी ने कहा कि अग्निदेव ही उनका कल्याण करेंगे क्योंकि अग्नि तत्व भोजन के पचाने के लिए बेहद जरूरी है। जब वो अग्निदेव के पास गए, तो अग्निदेव ने देवताओं और पूर्वजों से कहा कि अब से हम सभी श्राद्ध में एक साथ भोजन करेंगे। मेरे साथ रहने से तुम्हारा अपच दूर हो जाएगा, तब से श्राद्ध का भोजन पहले अग्निदेव फिर पूर्वजों को दिया जाता है। श्राद्ध में अग्निदेव को देखकर दैत्य और राक्षस भी भोजन दूषित नहीं कर पाते, और कभी हो भी जाये, तो अग्नि सब कुछ शुद्ध कर देती है।
श्राद्ध पक्ष 7 से शुरू होगा 21 सितंबर को समापन
पितृ पक्ष भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा से शुरू होकर आश्विन मास की अमावस्या तक चलता है। इसे महालय अमावस्या भी कहा जाता है। इस साल श्राद्ध पक्ष 7 सितंबर से शुरू हो रहा है और 21 सितंबर को समाप्त होगा।
श्राद्ध कब से कब तक
पूर्णिमा- 7 सितम्बर, रविवार
प्रतिपदा- 8 सितम्बर, सोमवार
द्वितीया - 9 सितम्बर, मंगलवार
तृतीया- 10 सितम्बर, बुधवार
चतुर्थी- 10 सितम्बर, बुधवार
पंचमी- 11 सितम्बर, गुरुवार
षष्ठी- 12 सितम्बर, शुक्रवार
सप्तमी- 13 सितम्बर, शनिवार
अष्टमी- 14 सितम्बर, रविवार
नवमी- 15 सितम्बर, सोमवार
दशमी- 16 सितम्बर, मंगलवार
एकादशी- 17 सितंबर, बुधवार
द्वादशी- 18 सितम्बर, गुरुवार
त्रयोदशी- 19 सितम्बर, शुक्रवार
चतुर्दशी- 20 सितम्बर, शनिवार
सर्वपितृ अमावस्या- 21 सितम्बर, रविवार
पूर्वज की मृत्यु तिथि याद नहीं तो अमावस्या पर सर्वपितृ श्राद्ध
ऐसी मान्यता है कि मृत्यु के बाद जीवात्मा चंद्रलोक से आगे पितृ लोक में पहुंचती है। मृतात्मा को अपने नियत स्थान तक पहुंचने की शक्ति प्रदान करने के लिए मरणोपरांत पिंडदान और श्राद्ध की व्यवस्था की गई है। श्राद्ध कर्म मृत्यु तिथि के आधार पर किया जाता है। जिस दिन व्यक्ति की मृत्यु हुई थी, पितृ पक्ष के उसी दिन उसका श्राद्ध किया जाता है। अगर किसी को अपने पूर्वज की मृत्यु तिथि याद नहीं है, तो वे अमावस्या के दिन सर्वपितृ श्राद्ध कर सकते हैं। यह तिथि उन सभी पितरों के लिए होती है जिनकी मृत्यु तिथि मालूम न हो।
श्राद्ध वाले दिन जरूर कराएं ब्राह्मण भोज
धार्मिक शास्त्रों में श्राद्ध पूजा का सबसे अच्छा समय दोपहर को है। दोपहर के समय योग्य ब्राह्मणों की सहायता से मंत्रोच्चारण कर श्राद्ध पूजा करें। पूजा के बाद जल से तर्पण करें और भोजन में गाय, कुत्ते, कौवे आदि का भाग अलग करके पहले उन्हें खिलाएं। अगर संभव हो तो गंगा नदी के किनारे जाकर श्राद्ध कर्म करें। यह सर्वाधिक फलदायी होता है। ऐसा न कर पाएं तो घर पर भी विधिपूर्वक श्राद्ध कर सकते हैं। जिस दिन श्राद्ध करें, उस दिन ब्राह्मण भोज जरूर कराएं और उन्हें दान-दक्षिणा दें।
शाहजहां ने पत्र लिखकर औरंगजेब को धिक्कारा था
श्राद्ध तर्पण की परंपरा को याद करके मुगल बादशाह शाहजहां अपने अंतिम यातना भरे दिनों में रोया था। क्रूर पुत्र औरंगजेब ने उसे जेल में बंद कर रखा था। शाहजहां ने मार्मिक पत्र लिखा था कि ‘बेटा, तू कितना निर्दयी और विचित्र मुसलमान है, जो अपने जीवित पिता को बूंद-बूंद पानी के लिए तरसा रहा है, जबकि हिंदुओं की तरफ देख, जो अपने मृत पिता को भी पानी देते हैं। इस पत्र का उल्लेख आकिल खां की किताब वाके आलमगीरी में मिलता है। -आचार्य पवन तिवारी, संस्थापक अध्यक्ष, ज्योतिष सेवा संस्थान
