पुलिस भर्ती-2020 : चयन प्रक्रिया की अनियमितताओं पर हाईकोर्ट का कड़ा रुख

Amrit Vichar Network
Published By Virendra Pandey
On

प्रयागराज, अमृत विचार। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश पुलिस भर्ती 2020-21 में अनुचित साधनों के प्रयोग के आरोप पर अभ्यर्थियों की उम्मीदवारी रद्द करने की कार्रवाई को अवैध करार देते हुए कहा कि बिना नियम बनाए, बिना कोई आपत्ति या शिकायत प्राप्त हुए और बिना किसी आपत्तिजनक सामग्री के बरामद हुए, केवल संदेह के आधार पर अभ्यर्थियों को चयन प्रक्रिया से बाहर करना प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन है। 

कोर्ट ने आगे कहा कि अभ्यर्थियों को यह नहीं बताया गया कि उन्हें प्रश्नपत्र को किसी विशेष समय-सीमा में हल करना है। इसके साथ ही अभ्यर्थियों को उनके अभ्यर्थन रद्द करने की प्रक्रिया की कोई जानकारी भी नहीं दी गई, जबकि सभी याचियों ने लिखित परीक्षा, दस्तावेज सत्यापन एवं शारीरिक मानक परीक्षण सफलतापूर्वक पूरा किया था और अंतिम चरण शारीरिक दक्षता परीक्षा के लिए चयनित भी हो चुके थे। कोर्ट ने राज्य सरकार को फटकार लगाते हुए कहा कि सिर्फ शक के आधार पर किसी का भविष्य दांव पर नहीं लगाया जा सकता। कोर्ट ने परमादेश जारी कर तीन माह के भीतर पीईटी या शेष परीक्षा कराकर चयन प्रक्रिया पूर्ण करने का निर्देश दिया, साथ ही आदेश दिया कि यह फैसला उन सभी अभ्यर्थियों पर लागू होगा, जिन्हें इसी आधार पर पीईटी से वंचित किया गया था, चाहे वे इस याचिका में पक्षकार हों या न हों।

उक्त आदेश न्यायमूर्ति नीरज तिवारी की एकलपीठ ने तनु चौधरी और 41 अन्य के साथ दर्जनों याचिकाओं को निस्तारित करते हुए पारित किया। गौरतलब है कि भर्ती बोर्ड ने 24 फरवरी 2021 को उपनिरीक्षक सिविल पुलिस, प्लाटून कमांडर व फायर स्टेशन सेकेंड ऑफिसर के कुल 9534 पदों के लिए विज्ञापन जारी किया था। लिखित परीक्षा नवंबर-दिसंबर 2021 में 13 जिलों के 92 केंद्रों पर आयोजित हुई। कटऑफ जारी होने के बाद अभ्यर्थियों को दस्तावेज सत्यापन एवं शारीरिक मानक परीक्षण में बुलाया गया, जिसमें वे सफल हुए और पीईटी के लिए चयनित हुए। इसी बीच बोर्ड ने कैंडिडेट रिस्पॉन्स लॉग (सीआरएल) रिपोर्ट के आधार पर उन्हें अनुचित साधनों के प्रयोग का आरोपी ठहराते हुए एफआईआर दर्ज कराई गई और जेल भेज दिया, जबकि पुलिस भर्ती बोर्ड, लखनऊ के अध्यक्ष ने यह कहकर कोर्ट को गुमराह करने का प्रयास किया कि अभ्यर्थी स्वयं ही चयन प्रक्रिया से बाहर हो गए, जबकि 15 सितंबर 2022 के प्रति उत्तर हलफनामे में उन्होंने स्वीकार किया कि याचियों के विरुद्ध प्राथमिकी दर्ज की गई है और उन्हें परीक्षा के अगले चरण में सम्मिलित होने से रोका गया है। कोर्ट ने इसे सरकार और विभाग का गंभीर भ्रामक आचरण बताया।

यह भी पढ़ेंः GST council meeting: जीएसटी काउंसिल की मीटिंग शुरू... जानें क्या होगा सस्ता, क्या होगा महंगा, कहां राहत और कहां बढ़ेंगी मुश्किले

संबंधित समाचार