संपादकीय: वेतनवृद्धि और प्रश्न

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Published By Monis Khan
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आठवें वेतनमान की शर्तों को सरकार द्वारा स्वीकृति मिलना सरकारी कर्मचारियों या पेंशनधारियों के लिए खुशखबरी है, तो देश की अर्थव्यवस्था, समाज, बाजार और निर्माण क्षेत्र के लिए भी व्यापक प्रभाव वाला कदम है। भारत में सरकारी क्षेत्र प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से लगभग पांच करोड़ लोगों की आय और जीवन स्तर को प्रभावित करता है। 50 लाख केंद्रीय कर्मचारियों और लगभग 70 लाख पेंशनधारियों को इससे आर्थिक लाभ तो होगा ही, भविष्य में राज्य सरकारें भी इसके आधार पर कार्रवाई करेंगी, तो ऐसे में प्रभावितों की संख्या बीसियों करोड़ तक बढ़ जाएगी। वेतनमान की नई व्यवस्था से आने वाला आर्थिक प्रवाह देश के आर्थिक ढांचे को नई गति देने वाला साबित हो सकता है। सिफारिशें समयबद्ध रूप से लागू होंगी, तो इसका असर अगले वित्त वर्ष से दिखेगा। 

पूरी प्रक्रिया के लागू होने पर कर्मचारियों और पेंशनधारियों को औसतन 30 प्रतिशत तक का आर्थिक लाभ मिलेगा, तो इसका सीधा असर उनकी क्रयशक्ति पर पड़ेगा। स्वाभाविक तौर पर उपभोग में वृद्धि होगी, जिससे खुदरा व्यापार, बचत, निवेश, उपभोक्ता वस्तु उद्योग, वाहन, आवास और निर्माण जैसे क्षेत्रों में नई जान आएगी। बाजार और निर्माण क्षेत्र को प्रोत्साहन मिलेगा। सातवें वेतन आयोग के बाद बाजारी मांग में तकरीबन 10 प्रतिशत की वृद्धि आंकी गई थी। ऐसा ही रुझान फिर संभावित है। रियल एस्टेट, ऑटोमोबाइल सेक्टर, ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर भी इसका सकारात्मक प्रभाव होगा, क्योंकि बड़ी संख्या में कर्मचारी छोटे शहरों और कस्बों में रहते हैं। इस वृद्धि से आर्थिक बोझ भी बढ़ेगा। केंद्रीय कर्मचारियों के वेतन वृद्धि के अनुरूप राज्य सरकारें भी वेतन बढ़ाती हैं, तो पहले से ही भारी कर्जे में दबे राज्यों की वित्तीय स्थिति इस बोझ से चरमरा सकती है। केंद्र पर इसका यदि सालाना 1.5 लाख करोड़ रुपये तक का बोझ बढ़ेगा, तो राज्यों को मिलाकर कुल तीन लाख करोड़ रुपये तक। बेशक यह बोझ वित्तीय अनुशासन के लिए चुनौतीपूर्ण होगा। संभव है कि सरकारें अन्य कल्याणकारी योजनाओं के बजट में कटौती करें या नए कर लगाएं।

नैतिक और प्रशासनिक प्रश्न है कि क्या वेतन वृद्धि से कर्मचारियों का कार्य निष्पादन भी बेहतर होगा? काम काज का स्तर सुधरेगा? जिम्मेदारी का बोझ बढ़ेगा? अभी तक का अनुभव बताता है कि वेतन वृद्धि से इसका कोई रिश्ता नहीं है। सरकार को चाहिए कि वह जवाबदेही और पारदर्शिता के साथ प्रदर्शन आधारित मूल्यांकन प्रणाली बनाए, तभी उच्च वेतन का लाभ उत्पादकता में परिवर्तित होगी। कर्मचारी के वेतन में उसकी दक्षता और कार्यनिष्ठा का प्रत्यक्ष संबंध हो, इसके लिए वेतन वृद्धि के साथ-साथ ‘परफॉर्मेंस लिंक्ड इंसेंटिव’ प्रणाली मजबूत करनी होगी। अधिक वेतन से रिश्वतखोरी की प्रवृत्ति घट सकती है, यह उम्मीद बेमानी है। इसके लिए वेतन वृद्धि के समानांतर ई-गवर्नेंस, ऑडिटिंग और सार्वजनिक निगरानी को नियंत्रण एवं पारदर्शिता प्रणाली को सशक्त बनाना होगा। आठवां वेतनमान केवल वेतन का सवाल नहीं है, यह जवाबदेही, उत्पादकता और सुशासन को नई दिशा देने का अवसर है।